मन के लड्डू खाना मुहावरे का अर्थ और वाक्य

मन के लड्डू खाना मुहावरे का अर्थ man ke laddu khana muhavare ka arth  – कल्पना कर कर पसन्न होना ।

दोस्तो मन के बारे में आप अच्छी तरह से जानते है यह इच्छा या अंतःकरण या चाहत को दर्शाता है । इसके अलावा वह मन ही होता है जिसके कारण से तरह तरह की कल्पना चलती रहती है । जैसे की किसी का विवाह होने वाला है तो वह विवाह के बारे में कल्पना करता रहता है और यह मन के कारण से होता है।

अब जो लड्डू जो होते है वे खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते है और पहले के समय का सबसे अच्छी मिठाई लड्डू ही थी । तो लड्डू जब भी खाया जाता है तो बहुत ही खुशी मिलती है या कह सकते है की मन बहुत ही प्रसन्न हो जाता है ।

अब मुहावरे के बारे में बात करे की मन के लड्डू खाना तो आपको बता दे की मन का कल्पना को दर्शाता है और लड्डू खाना प्रसन्न होने को दर्शाता है और इस तरह से मन के लड्डू खाना मुहावरे का सही अर्थ कल्पना कर कर प्रसन्न होना होता  है ।

मन के लड्डू खाना मुहावरे का अर्थ और वाक्य

मन के लड्डू खाना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग || man ke laddu khana  use of idioms in sentences in Hindi

1.        जैसे ही सुरजीत ने सुना की उसका विवाह होने वाला है तो सुरजीत मन के लड्डू खाने लगा ।

2.        अभी विवाह होने की बात ही हुई है ओर इसे देखो मन के लड्डू खाना भी शुरू कर दिया ।

3.        मन के लड्डू खाने से कुछ नही होगा, जो सोचा है वैसा कर पाओगे तब बात बनेगी ।

4.        आखिर बात क्या है कंचन क्यो मन के लड्डू खा रही हो हमे भी बताओ ।

5.        सुनिता को कॉलेज के लड़के से प्रेम क्या हो गया जब देखा मन के लड्डू खाती रहती है ।

6.        अभी सफलता हासिल हुई नही है और तुम अभी से मन के लड्डू खाने लगे हो ।

7.        जब तक जीवन में नोकरी हासिल नही हो जाती तब तक मन के लड्डू खाने से भी कोई फायदा नही ।

मन के लड्डू खाना मुहावरे पर कहानी || man ke laddu khana story on idiom in Hindi

दोस्तो एक बार की बात है एक नदी के किनारे पर एक छोटा सा गाव रहा हुआ करता था जहां पर रहने वाले लोग जो थे वे ज्यादातर खेती कर कर ही अपना जीवन बिताते थे । वे काफी मेहनती थे इस कारण से वे खेती कर कर भी काफी अच्छा धन हासिल कर लेते थे ।

और धन होने के कारण से उनके पास एक महल के जैसा घर होता था मगर फिर भी वे धन पर घमंड न कर कर स्वयं ही अपने ही खेत मे खेती करते थे और ही कारण रहा था की वहां पर रहने वाले लोग जो थे वे जल्दी जल्दी जीवन में आगे बढ रहे थे ।

उस गाव में एक किसान था जिसका नाम नंदपाल था और यह जो नंदपाल था वह काफी मेहनती था जो की अपनी पत्नी और अपने बेटे बेटी के साथ रहा करता था । उसके घर में एक बेटा और एक ही बेटी थी । और बेटा बड़ा था जिसका नाम सुरजीत था ।

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अब सुरजीत जो था वह काफी मेहनत करने वाला था इस कारण से हर कोई गाव का व्यक्ति उसकी तारिफ किया करता था गाव के लोग कहते थे की सुरजीत पूरे गाव में ऐसा है जो की अपने पिता की बराबर मदत करता है ।

और ऐसा कहना भी सही था क्योकी उस गाव में जो अन्य लोग थे वे अपने माता पिता की कम ही मदद करते थे बल्की ऐसे ही आराम से अपना जीवन बिता रहे थे । सुरजीत जैसे जैसे बड़ा हुआ उसकी विवाह की उम्र भी होती जा रही थी और यह सब देख कर गाव के कुछ अच्छे लोगो ने सुरजीत के पिता के पास आकर इस बारे में बात करनी चाहिए ।

मन के लड्डू खाना मुहावरे का अर्थ

और इसी तरह से एक दिन की बात है गाव का हनुमानाराम नाम का एक आदमी नंदपाल के पास आया और कहा की आपके बेटे के लिए एक अच्छा रिश्ता है अब सुरजीत भी वही पर था और उसने हनुमानाराम से यह सुना तो वह चुप चाप अपने कमरे में चला गया और जाकर मन ही मन सोचने लगा ।

अब कुछ ही समय में सुरजीत की जो बहन थी वह भी अपने पिता के पास चली गई तो उसे पता चला की भाई के विवाह की बात हो रही है और यह सुन कर बहन खुश हुई और अपने भाई के पास गई ।

तो उसने देखा की भाई जो है वह पता नही क्या सोच रहा है और उसकी और ध्यान तक नही दे रहा है। करीब 10 मीनट तक सुरजीत की बहन उसके पास खड़ी रही मगर सुरजीत ने उसकी ओर ध्यान न दिया  । तब सुरजीत की बहन ने कहा की भाई अभी विवाह की बात ही हुई है और आप मन के लड्डू खाना शुरू कर चुके हो ।

यह सुन कर सुरजीत को पता चला की उसकी बहन उसके पास खड़ी है और तब सुरजी ने कहा की तुम कब आई । तब सुरजीत की बहन ने कहा की मैं तो कब से यही पर खड़ी थी मगर आप जो हो मन के लड्डू खाने में व्यथ थे तो मैंने आपसे बात न की । यह सुन कर सुरजीत कुछ न बोला ।

अब कुछ समय के बाद में जब हनुमानाराम नंदपाल के घर से चला गया तो नंदपाल ने अपनी पत्नी से कहा की बेटे के लिए रिश्ता आया है और यह बात हो रही थी उसी समय सुरजीत भी वही पर था और वह फिर से कुछ सोचने लगा था ।

और तभी बहन मजा लेने के लिए कहने लगी की देखो मां भाई तो मन के लड्डू खाने लगे है और इस तरह से कहने पर नंदपाल ओर उसकी पत्नी हंसने लगे और सुरजती भी वहां से चला गया ।

अब कुछ समय के बाद में इस रिश्ते को पक्का किया गयाऔर फिर सुरजती का विवाह तय किया गया और अंत मं सुरजती का विवाह किया गया था। जैसे ही दुल्हन घर पर आई और एक दिन बिता तो दुल्हन को सुरजीत की बहन ने बताया की किस तरह से सुरजीत विवाह का नाम सुन कर मन के लड्डू खा रहा था और इस तरह से फिर दुल्हन और सुरजीत की बहन की बाते हुई और सुरजीत का विवाह हुआ था ।

तोदोस्तो इस तरह से बहुत बार होता है की विवाह की बाते सुन कर लोग कल्पना कर कर प्रसन्न होते रहते है । और इस कहानी से आप मुहावरे के अर्थ को समझ सकते है । अगर कुछ पूछना है तो कमेंट कर देना ।

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आपे से बाहर होना  माथे पर बल पड़ना   
आग में घी डालना  हाथ के तोते उड़ना
आँखों में धूल झोंकना  मिट्टी पलीद करना  
आँखें बिछाना  हाथ का मैल होना
आकाश पाताल एक करना  रंगे हाथों पकड़ना
अगर मगर करना  सीधे मुँह बात न करना
पहाड़ टूट पड़ना  प्रतिष्ठा पर आंच आना
आग लगने पर कुआँ खोदना  आँखे फटी रह जाना  
श्री गणेश करना  सिर ऊँचा करना
टस से मस न होना  ‌‌‌चोर चोर मौसेरे भाई
छोटा मुँह बड़ी बात  मर मिटना  
चोली दामन का साथ  ‌‌‌सहम जाना
गुदड़ी का लाल  घास खोदना  
गागर में सागर भरना  रफू चक्कर होना
कान पर जूं न रेंगना  अंतर के पट खोलना
आँखें फेर लेना  चादर से बाहर पैर पसारना
घाट घाट का पानी पीना  उन्नीस बीस का अंतर होना
बालू से तेल निकालना  सिर पर पाँव रखकर भागना  
अंग अंग ढीला होना  काठ की हांडी होना   
अक्ल के घोड़े दौड़ाना  एक लाठी से हाँकना
आवाज उठाना  भानुमती का पिटारा
मक्खी मारना  अंकुश रखना  निबंध व
चैन की बंशी बजाना  अंधी पीसे कुत्ता खाए
आग बबूला होना  का वर्षा जब कृषि सुखाने
भीगी बिल्ली बनना  नीम हकीम खतरे जान
जान हथेली पर रखना  अधजल गगरी छलकत जाए
लाल पीला होना  जैसा देश वैसा भेष मुहावरे
अंधे की लाठी  नौ दिन चले अढ़ाई कोस
अंगूठा दिखाना  नेकी कर, दरिया में डाल का मतलब  वाक्य
नौ दो ग्यारह होना  चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए
 चौकड़ी भरनाआव देखा न ताव
 हरी झंडी दिखानाथोथा चना बाजे घना  
 हथेली पर सरसों जमानातेल देखो, तेल की धार देखो   
 हाथ को हाथ न सूझना  छाती पर मूँग दलना
 चेहरे पर हवाइयाँ उड़नाकंगाली में आटा गीला
 हाथ लगनाभूखे भजन न होय गोपाला
 हवा हो जानासाँच को आँच नहीं  
 हाथ खींचनाऐरा – गैरा नत्थू खैरा का
 हक्का-बक्का रह जानापर उपदेश कुशल बहुतेरे

Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।