मुँह लटकाना का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

मुँह लटकाना मुहावरे का अर्थ होता है muh latkana muhavare ka arth – निराश होना या उदास होना ।

दोस्तो ‌‌‌किसी भी बेटे पर अपने पिता की डाट का बहुत असर ‌‌‌होता है । जिसके कारण से बेटा जीतना अपनी मां से किसी वस्तु की मांग करता है पिता नही करता‌‌‌ मगर कभी कभी ऐसा हो जाता है की बेटे को अपने पिता से किसी चिज की मांग करनी होती है । मगर उस समय पिता उस चिज के लिए मना कर देते है तो वह बेटा निराश हो जाता है और उदासी के साथ एक स्थान पर बैठ जाता है ।

तब बेटे की इस हालत को देख कर कहा जाता है की यह तो मुह लटकाकर बैठ गया है । इस तरह से जहां पर ‌‌‌निराश होना या उदाश होने की बात होती है वही इस मुहावरे का वाक्य प्रयोग किया जाता है ।

मुंह लटकाना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग

  • ‌‌‌महेशी की गलती पकडी जाने के कारण से उसकी मां ने उसे बहुत डांटा जिसके कारण से महेशी मुंह लटकाकर बैठ गई है ।
  • राहुल पूरे वर्ष अच्छी तरह से पढाई कर रहा था मगर पैपर में पास न होने के कारण से मुह लटकाकर बैठा हुआ है ।
  • इतनी अधिक तैयारी करने के बाद भी जब महेश 10 वी
    कक्षा में पास नही हुआ तो वह मुंह लटका‌‌‌कर बैठ गया ।
  • जब घनश्याम की जमीन पर सेठ ने कब्जा कर लिया तो घनश्याम अपनी जमीन को छुटाने की बजाए मुह लटकाकर बैठ गया ।
  • गाव के भले आदमी की मृत्यु का समाचार पा कर सभी लोगो ने मुह लटका लिया ।
  • ‌‌‌किशोर ने पहले तो अपने मित्र राहुल से झगडा कर लिया और जब से अहसास हुआ की उसे यह नही करना चाहिए था तो मुंह लटकाकर बैठ गया ।
  • ‌‌‌अपनी बहन के विवाह पर आनन्दी को मनपसंद कपडे नही मिले तो वह दो दिनो तक मुह लटकाकर बैठी रही ।

‌‌‌मुंह लटकाना मुहावरे पर कहानी (ज्ञानी राजा का मुर्खपन)

दोस्तो एक समय की बात है किसी जटनापूर नामक राज्य में एक राजा हुआ करता था । जिसका नाम ही जटननाथ था । राजा जटननाथ बडा ही ज्ञानी था और अपने ज्ञान के बल पर किसी भी राजा को अपने राज्य पर राज करने का मोका नही देता था।

मगर ‌‌‌राजा के पास ज्ञान के अलावा सेना की कमी थी जो की उसके पास पूरी नही थी जिसके कारण से जब भी राजा पर हमला होता तो वह अपने पडोसी राजा से सहायता मागता था और पडोसी राजा उसकी मदद कर भी देता था क्योकी पडोसी राजा राजा जटननाथ का प्रम मित्र था ।

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इस तरह से दोनो की दोस्ती के कारण से दोनो को ही फायदा ‌‌‌होता था क्योकी राजा जटननाथ के पास जहां ज्ञान था और बल की कमी थी वही उसके मित्र के पास बल अधिक था मगर ज्ञान की कमी थी । जिसके कारण से दोनो का काम एक दूसरे से चल रहा था । यहां तक की अगर कभी दोनो कही घुमने के लिए जाते तो एक साथ जाते थे ।

इस तरह से देख कर उन दोनो का नाम दूर दूर तक था । इसी तरह ‌‌‌से एक बार की बात है राजा जटननाथ अपने राज्य से दूर किसी काम के लिए जा रहा था तो अपने मित्र से भी इस बारे में बात कर ली । तब उस राजा ने सोचा क्यो ने इसके काम के साथ साथ मैं भी कही घुम कर आ जाउ ।

इस तरह से फिर दोनो राजा एक दूसरे का साथी बन कर चले गए । दो दिनो के बाद में वे अपनी मंजील पर जा ‌‌‌पहुंचे मगर यहा पर देखने के लिए बहुत कुछ था क्योकी वह नगर पूरा का पूरा सोने के आभूषणो से चमक रहा था यह देख कर राजा ने राजा जटननाथ से कहा की मित्र यह क्या है ।

 तब राजा जटननाथ ने कहा की ‌‌‌यह एक ऐसा स्थान है जिसके बारे में ज्यादा लोगो को पता तक नही है और यहां पर सोने की खादाने है जिसके कारण से ‌‌‌सोना लोहे ‌‌‌की किमत पर बिक जाता है । और आज मै इसे ही खरीदने के लिए आया हूं । यह सुन कर राजा जटननाथ से उसके मित्र ने कहा की यह बात पहले बतानी थी ताकी मैं भी कुछ धन लेकर आ जाता और सोना खरीद लेता था ।

मगर अब जटननाथ क्या कहे क्योकी यह उसक गलती थी मगर वह यह भी नही चाहता था की मैं अपना धन इसे दे दू । ‌‌‌क्योकी इस राज्य तक पहुंचने में ही दो दिन लगे है तो वापस जाने में तीन दिन लगेगे क्योकी सोने का भार भी होगा । जिसके कारण से समय का बचाव नही है और इस समय धन देना सही नही है।

 ऐसा सोचते हुए राजा जटननाथ ने अपने मित्र राजा से कहा की अगली बार तुम यहां आकर सोना खरीद लेना । मगर अब राजा जटननाथ की बात ‌‌‌उसका मित्र नही मान रहा था क्योकी उसे भी पता था की यहां आने और जाने में काफी समय बित जाएगा । तब उसके मित्र ने कहा की नही जटननाथ तुम्हे आधा ‌‌‌सोना मुझे देना होगा और बदले में जीतना धन लगता है राज्य में ले लेना ।

यह सुन कर एक बार तो जटननाथ ने मना किया मगर फिर से अपने मित्र के कहने पर वह मान गया ‌‌‌। अब दोनो मित्र सोना लेकर वापस अपनी नगरी को लौट चले थे । दो दिन बित गए तब जाकर उनका राज्य शुरू हुआ था मगर अब भी काफी अधिक दूरी थी जिसमे पूरा एक दिन लग जाता था ।

‌‌‌मुंह लटकाना मुहावरे पर कहानी (ज्ञानी राजा का मुर्खपन)

मगर बिच में ही जटननाथ ने अपनी चालाकी दिखाते हुए अपने मित्र को सोना देने को मना कर दिया । तब उसके मित्र ने कहा की हमने वहां ‌‌‌जो बात की थी उसे तुम्हे माननी होगी । मगर जटननाथ को लग रहा था की यह ऐसे ही कह रहा है इसकी बात मैं क्यो मानू । इस तरह से फिर जटननाथ ने अपने मित्र राजा की बात नही मानी ।

जिसके कारण से राजा को बडा बुरा लगा और उसने जटननाथ से कहा की मित्र अगर ऐसा हुआ तो फिर मैं तुम्हारी भी मदद नही करूगा । ‌‌‌मगर अब जटननाथ ने जोस जोस मे बोल दिया की मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही है । तभी उन दोनो का राज्य आ गया था जिसके कारण से दोनो झगडा कर कर अपने अपने राज्य पहुंच गए थे ।

इस बात को दो ही दिन बिते थे की बात हवा की तरह चारो और फैल गई की राजा जटननाथ और उसके मित्र में झगडा हो गया है । ‌‌‌मगर झगडा किस बात के लिए हुआ था यह किसी को नही मालूम पडा । तभी कुछ दिनो के बाद में राजा जटननाथ पर एक अन्य राजा ने हमला कर दिया ।

जिसके कारण से जटननाथ अपने मित्र राजा के पास मदद के लिए गया तो उसने देखा की राजा ‌‌‌ने मुझे देखने मात्र अपना मुंह फैर लिया है । और मदद मागने पर मदद न करने की कही । ‌‌‌जिसके कारण से राजा जटननाथ मुह लटकाकर युद्ध लडने के लिए चला गया ।

मगर बल की कमी होने के कारण से युद्ध तो हारना ही था जिसके कारण से राजा जटननाथ युद्ध में हारने लगा और यह देख कर वह वहां से अपने प्राण बचा कर भाग गया । अब जो सेना युद्ध कर रही थी वह धिरे धिरे राजा जटननाथ के महल की और घूस रही थी मगर ‌‌‌फिर राजा जटननाथ के मित्र ने सहयता की और उस सेना को वापस हरा कर भेज दिया ।

इस बारे मे राजा जटननाथ को ‌‌‌कुछ पता नही था । जिसके कारण से वह दूर किसी नगर में अपना मुह लटका कर बैठा था और सोच रहा था की आज वह अपने राज्य ‌‌‌को हार गया है । इस तरह से वह बहुत ही दूखी हो गया था । मगर कुछ दिनो के बाद में पता चला ‌‌‌की उसके मित्र ने उसकी हिफाजत न की थी मगर राज्य को बचा लिया है ।

यह जान कर राजा जटननाथ वापस उठा और अपने राज्य चला गया । वहां जाने पर उसने देखा की ‌‌‌मेरा का मित्र ‌‌‌मेरे राज्य के सिहासन पर बैठा है । यह देख कर राजा जटननाथ फिर से मुह लटका कर वहां से जाने लगा क्योकी उसे लग रहा था की अब इस ‌‌‌राज्य पर उसके ही मित्र ने राज करना शुरू कर दिया है ।

मगर तभी उस राजा ने उसे देख लिया और आवाज लगाई की राजा जटननाथ आ गए है । यह सुन ‌‌‌कर राजा जटननाथ की सेना उन्हे लेकर वापस महल मे आ गई । वहा जाने पर भी राजा जटननाथ उदास खडा था । तब उसके मित्र ने कहा की क्यो मुंह लटकाकर खडे हो यह राज्य तुम्हारा ‌‌‌है और तुम ही यहां के राजा हो । यह सुन कर राजा जटननाथ के मुंह पर खुशी छा गई ।

तब कुछ समय के बाद राजा जटननाथ ने कहा की मित्र पहले तुमने मेरी ‌‌‌सहायता नही की और फिर जब मैं हार गया तो मेरी ‌‌‌सहायता के लिए पहुंच गए ऐसा क्यो । तब राजा जटननाथ से उसके मित्र ने कहा की यह सब तुम्हारे सोने के खेल के ‌‌‌कारण से ही हुआ है ।

‌‌‌मुंह लटकाना मुहावरे पर कहानी (ज्ञानी राजा का मुर्खपन)

यह सुन कर राजा जटननाथ समझ गया और अपने मित्र से माफी मागने लगा था । तब राजा जटननाथ ने अपने मित्र से कहा की फिर कभी भी ऐसा नही ‌‌‌होगा । इस तरह से फिर से दोनो मित्र बन गए थे । ‌‌‌इस तरह से राजा जटननाथ की मुर्खता के कारण से उसका राज्य हाथ से छिन गया था ।

‌‌‌मुह लटकाना मुहावरे पर निबंध

साथियो मनुष्य एक ऐसा जीवन है जिसमें दूखो और सुखो का समय आता ही रहता है । और अपने दूखो के कारण से कुछ ऐसा हो जाता है की उसे निराश होना पड जाता है । इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है की जब कभी कोई व्यक्ति किसी भी चिज की इच्छा करता है तो ‌‌‌उसे पाने की कोशिश भी करता है ।

जिसके कारण से वह जब अपनी चिज को पा लेता है तो बहुत ही खुश होता है । मगर कभी कभार ऐसा समय भी आ जाता है की जब वह व्यक्ति उस चिज को पाने ‌‌‌मे असफल रह जाता है ।

इस तरह से असफल होने के कारण से वह बहुत ही उदाश हो जाता है और निराश हुआ दिखाई देने लग जाता है । जब इस ‌‌‌तरह से निराश हो जाता है या उदाश हो जाता है तो इसे मुह लटकाना कहा जाता है । इस तरह से इस मुहावरे का अर्थ निराश होना या उदास होना होता है । और यही कहानी में समझाया गया है और जहां पर निराश होने या उदाश होने की बात हुई है वहां पर इस मुहावरे का प्रयोग हुआ है ।

 इस तरह से आप समझगए होगे ।

मुँह लटकाना मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है || What is the meaning of muh latkana in Hindi

दोस्तो वैसे आपको पता होगा की मानव के जीवन में बहुत सी ऐसी स्थितियां आती रहती है जब मानव अपने आप को अलग तरह का समझता है । जैसे की एक समय ऐसा आता है जब मानव किसी कारण से निराश हो जाता है या फिर कहे की उदास हो जाता है और ऐसी स्थिति में जो कोई होता है उसका मुंह जो होता है वह लटका हुआ नजर आता है ।

और इसी कारण से दोस्तो यह मुहावरा बना है और इसी बात से आप समझ सकते है की  muh latkana muhavare ka arth – निराश होना या उदास होना होता है ।

क्योकी उदासी के समय में मानव अक्षर मुह को लटका लेता है और यह आपने भी बहुत बार देखा होगा और इसी कारण से हम कहते है की आप इस मुहावरे को काफी बेहतर तरीके से समझ सकते है। बस आपको केवल इतना चाहिए की आप मुहावरे को ध्यान से पढे और इसे पूरी तरह से याद करे ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।

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