साँच को आँच नहीं मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

साँच को आँच नहीं मुहावरे का अर्थ sanch ko aanch nahi muhavare ka arth सच्च को किसी से डर नही लगता

दोस्तो प्रहलाद के बारे मे आपको पता होगा की उसके पिता ने उसे अनेक बार मारने की कोशिश की थी । परन्तु प्रहलाद एक सच्चा भगत होने के कारण से वह भगवान विष्णु पर पुरा विश्वास ‌‌‌करता था और उसे पता था की उसे कुछ नही होगा । इस तरह से प्रहलाद अपने पिता से बिल्कुल नही डरता था । इसी तरह से जब कोई व्यक्ति सच्चा होता है तो उसे डरने की कोई जरूरत नही है । और जब किसी सच्चे व्यक्ति को डर नही लगता तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है ।

साँच को आँच नहीं मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

‌‌‌सांच को आंच नही मुहावरे का वाक्य में प्रयोग sanch ko aanch nahi muhavare ka vakya mein prayog

  • जब पुलिस ने रामू पर चोरी का आरोप लगाया तब रामू ने कहा की साहब मैंने तो चोरी की नही और आप कारवाई कर के देख लेना मुझे किसी से डर नही क्योकी सांच को आंच नही ।
  • पुलिस को देख कर जैसे ही किशोर भागने लगा तब पुलिस समझ गई की जरूर किशोर ने कोई गुन्हा ‌‌‌किया है वरना यह भागता नही क्योकी सांच को आंच नही ।
  • मैंने उस दिन देखा था की रामू ने ही आपके घर से चोरी की थी तो मैं भला आपसे क्यो डरूगा क्योकी सांच को आंच नही ।
  • ‌‌‌जब मेरे बेटे ने यह काम किया ही नही तो उसे डरने की क्या जरूरत क्योकी ‌‌‌सब को पता है सांच को आंच नही ।
  • महेश जैसा निज आदमी ही इतनी गरी हुई हरकत कर सकता है तभी वह इतना डर रहा है वरना मैंने तो कुछ नही किया और न ही मैं किसी से डरता नही हूं क्योकी सांच को आंच नही ।

‌‌‌सांच को आंच नही मुहावरे पर कहानी sanch ko aanch nahi muhavare par kahani

प्राचिन समय की बात है धिरपुर नाम की एक छोटी सी नगरी हुआ करती थी । जो चारो और से देखने में बहुत ही सुन्दर दिखाई देती थी । उस नगरी मे एक लम्बा और हट्ठा कट्ठा नोजवान लकडहारा रहा करता था । उसके घर मे उसके माता पिता और लकडहारे की पत्नी रहा करती थी । लकडहारा बहुत ‌‌‌ही होसियार था ।

परन्तु वह एक लकडहारा था जिसके कारण से सुबह होते ही पानी पी कर लकडिया काटने के लिए जंगल जाता था । और जंगल से लकडिया काट कर उसे अपने राज्य के लोगो को बेचता था । इस तरह से लकडहारा जो लकडिया काटकर लाता था वह बहुत ही सुन्दर तरीके से कटती थी ।

साथ ही वह लकडिया बहुत मजबुत ‌‌‌होने के कारण से धिरपुर नगरी के लोग उन लकडियो से अपने उपयोग की वस्तु बनाने के लिए उन्हे अच्छे दामो मे खरीदते थे । क्योकी लकडहारा होसियार और उसे कई वर्ष लकडिया काटते हुए हो ‌‌‌गए थे ।

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जिससे वह ऐसी उच्च क्वालटी की लकडिया आसानी से पहचान लेता था । इस तरह से लोग उसका इन्तजार करते रहते की कब ‌‌‌लकडहारा आए और कब हम लकडिया खरीदे । क्योकी जो भी कोई लकडहारे की लकडियो के लिए ऊंची से ऊंची बोली लगाता लकडी उसकी की होती थी ।

इससे लकडहारे की बाहुत कमाई हो जाती थी । इसी तरह से कई वर्ष हो गए लकडहारे को यह काम करते हुए । अब लकडहारे के माता पिता बहुत बुड्डे हो गए थे और लकडहारे के घर मे एक ‌‌‌छोटे बेटे का जन्म हो गया था ।

तब एक दिन की बात है लकडहारा जिस बाजार मे अपनी लकडिया बेचता था वहा के सेठ का सारा रूपया चोरी हो गया । इस कारण से वह राजा के पास अपने न्याय के लिए चोर को पकडाने के लिए गया । क्योकी उस नगरी का एक राजा था जो लोगो की हर समस्या बहुत ही आसानी से सुलझा सकता था ।

जब ‌‌‌सेठ ने राजा को अपनी समस्या बताई तो राजा कहने लगा की मेरे राज्य मे चोरी होर ही है । यह जानने के बाद राजा ने अपने कुछ सेनिको को चोर का पता लगाने के लिए बाजार भेज दिया ।

तब राजा के सेनिको ने काफी समय तक चोर के बारे मे पूछताछ की परन्तु उन्हे पता नही चला की आखिर चोरी किसने की है । इस कारण ‌‌‌से अगले दिन सेनिको ने अपना भेष बदला और काफी सारी मुद्रा लेकर बाजार मे चले गए । साथ ही इस बारे मे बाजार मे बात फैला दी ।

जिसके कारण से चोर ने सेनिको से सावधानी के साथ चोरी कर ली । चोरी करने के बाद मे चोर ने उन्ही पैसो से लकडहारे से लकडिया खरीद ली । जब सेनिको को पता चला की उसकी मुद्रा चोरी ‌‌‌हो गई तो उन्होने बाजार मे उपस्थित सभी लोगो की तलासी लेनी चाही ।

परन्तु इतने मे तो वह चोर वहां से जा भी चुका था । जब सेनिको ने तलासी ली तो उनकी मुद्रा उन्हे लकडहारे के पास मिली । क्योकी सेनिको ने अपनी मुद्रा पर कुछ निसानी कर दी । जिसके कारण से सेनिक को लगने लगा की लकडहारा ही चोर है । ‌‌‌

इस कारण से उस लकडहारे को पकड कर सेनिक राजा के पास ले गए और राजा से कहा की महाराज यही चोर है । यह सुन कर राजा ने चोर से पूछा की क्या तुमने चोरी की है । तब लकडहारे ने कहा की नही मैंने चोरी नही की बल्की यह मुद्रा तो गाव के एक व्यक्ति ने लकडिया खरीदते समय दी थी ।

लकडहारे की बात सुन कर राजा ने ‌‌‌उस व्यक्ति (चोर) को बुला लिया और उससे पूछने लगा की तुमने आज लकडहारे से लकडिया खरीदी थी क्या । यह सुनते ही चोर को पता चल गया की मेरी चोरी का पता लगाया जा रहा है । इस कारण से उसने कहा की नही महाराज मैंने इससे कोई लकडिया नही खरीदी ।

जब राजा ने यह सुना तो उन्हे लगा की जरूर लकडहारा झुठ बोल रहा ‌‌‌है, चोरी इसी ने की है । यह सोच कर राजा ने लकडहारे को सच बोलने को कहा । परन्तु लकडहारे ने फिर से कहा की मैंने चोरी नही की ।

तब राजा ने लकडहारे से सच उगलवाने के लिए उस पर कोडे मारने के लिए अपने सेनिको से कहा । यह सुनकर लकडहारा मुस्कुराने लगा । जब राजा ने यह देखा तो उसे कुछ समझ मे नही आया। ‌‌‌इस तरह से जब लकडहारे पर एक कोडा पडा तो वह फिर से मुस्कुराने लगा ।

तब राजा ने पुछा की तुमने चोरी की है और अब कोडे पडने पर मुस्कुरा रहे हो । इतना कह कर राजा को लगा की जरूर इसने चोरी नही की है । तभी राजा ने अपने सेनिको को उस व्यक्ति पर कोडे मारने को कहा ।

यह सुनते ही ‌‌‌वह व्यक्ति घबराने लगा और ‌‌‌उसने राजा ‌‌‌से कहा की मैंने चोरी नही की है आप मुझे क्यो मार रहे हो ‌‌‌ । इसी तरह से वह व्यक्ति कह रहा था । परन्तु सेनिको ने उसकी एक सुने बिना ही उस पर एक कोडा मारा । जब दुसरा कोडा पडने वाला था तभी ‌‌‌वह चोर बहुत डर गया और डर के मारे पसीना पसीना होने लगा ।

तब चोर ने अपना जुर्म कबूल कर लिया । तभी राजा ने लकडहारे से कहा की जब मैंने ‌‌‌तुम्हे एक कोडा ‌‌‌मारने की बात की तो तुम हंस क्यो रहे थे बल्की तुम्हे तो डरना चाहिए । तब लकडहारे ने कहा की महाराज जब मैंने चोरी की नही तो मैं क्यो डरू क्योकी सांच को आंच नही

यह सुन कर राजा समझ गया की लकडहारा चोर नही है क्योकी पहले ही चोर ने अपना जुर्म ‌‌‌कबूल कर लिया था । इस तरह से राजा को पता चला की अगर ‌‌‌कोई जुर्म करता है तो वह डरता है परन्तु जुर्म न करने वाला किसी से नही डरता ।

‌‌‌सांच को आंच नही मुहावरे पर कहानी sanch ko aanch nahi muhavare par kahani

इसी तरह से बादमे राजा ने उस लकडहारे को आजाद कर दिया जिसके कारण से लकडहारा आराम से अपना जीवन गुजारने लगा । ‌‌‌इस दिन के बाद से ही सांच को आंच नही मुहावरे का प्रयोग होने लगा । इस तरह से आपको समझ मे आ गया होगा की इस मुहावरे का अर्थ क्या है ।

सांच को आंच नही मुहावरे पर निबंध sanch ko aanch nahi muhavare par nibandh

साथियो ‌‌‌आज के समय मे अनेक लोग ऐसे है जो किसी न किसी मुसीबत मे फंस जाते है । इसी तरह से कभी कभी अगर कोई व्यक्ति अपनी जगह सच्चा होता है तब भी वह डरता है की कही उसे कुछ न हो जाए । जैसे अगर किसी ने चोरी की नही तब भी वह डरता है की कही वह चोर साबित न हो जाए ।

इसी के विपरीत डरना केवल असली चोर को चाहिए ‌‌‌क्योकी चोरी तो उसी ने की थी । मगर जब सच्चा व्यक्ति न घबराकर या डर कर वही पर डटा रहता है और चोर डरने लग जाता है । जिस तरह से कहानी मे बताया गया की लकडहारा न डरा क्योकी वह सच्चा था ।

मगर चोर डरने लगा और उसने अपना जुर्म ‌‌‌कबूल कर लिया । बिल्कुल इसी तरह से जब ‌‌‌सच्चे को किसी से डर नही लगता तब इसे सांच को आंच नही कहा जाता है । और इसी समय इस मुहावारे का प्रयोग किया जाता है । इस तरह से आपको इस मुहावरे के बारे मे पता चला होगा की इसका अर्थ क्या है और इसका कहा प्रयोग किया जाता है । कृपा कमेंट कर कर जरूर बताए ।

साँच को आँच नहीं मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है || What is the meaning of sanch ko aanch nahi in Hindi

दोस्तो वर्तमान के समय में ही नही बल्की पहले के समय से ही चला आ रहा है की हमेशा जो सत्य होता है उसकी जीत होती है । अरग आप अपने जीवन में सच्च बोल रहे है ओर आपके सामने अनेक तरह की परेशानी होती है मगर फिर भी आप सच बोल रहे है तो इसका मतलब है की एक समय आने पर आपकी जीत पक्की हो जाएगी ।

और यही कारण है की जो लोग अपने जीवन में सच्च बोलते है वे किसी से डरते नही है । अगर आपने कुछ गलत किया ही नही है तो आप फिर डरेगे क्यों, क्योकी यह तो आपको भी पता है की जिसने गलत किया है उसे ही डरना चाहिए न की जिसने कुछ गलत किया है उसे ही डरना चाहिए ।

तो पहले के समय में जो राजा महाराजा थे उनके द्वारा कहा जाता था की सच्च को किसी से डर नही लगता है और आज भी यह न्यायलय में कहा जाता है की सच्च को किसी से डर नही लगता और असल में यही इस मुहावरेका सही अर्थ है जो की आप समझ गए है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।