अंतर के पट खोलना मुहावरे का मतलब और वाक्य व कहानी

अंतर के पट खोलना मुहावरे का अर्थ antar ke pat kholna muhavare ka arthचतुराई से काम करना या चतुराई से काम लेना

दोस्तो मनुष्य के जीवन मे आज ऐसा कोई भी कार्य नही रहा है जिसे समझदारी के साथ न किया जा सके । यानि सभी कार्य समझदारी से करने जरूरी होते है । तब जाकर वह अपने कार्य में सफल हो पाता है ।‌‌‌इसी तरह से जब कोई क्यक्ति किसी कार्य को समझदारी से करता है तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है और कहा जाता है की यह तो अंतर के पट खोलकर हर कार्य करता है ।

अंतर के पट खोलना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग antar ke pat kholna muhavare ka vakya mein prayog ka arth

  • अगर तुम सेठ के पास किसी कार्य को करते हो तो अंतर के पट खोलकर करना क्योकी सेठ ‌‌‌एक बहुत बडा ठगाखोर है ।
  • महेश हमेशा अंतर का पट खोलकर ही काम करता है ।
  • लखवीरसिंह भला आदमी है अगर उसकी जगह मैं होतो तो आप मुझे किसी हाल मे नही ठग सकते क्योकी मै हर समय अंतर के पट खोलकर रखता हूं ।
  • पिता मरा हुआ था फिर भी रामू को अंतर के पट खोलकर काम करते देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा ।
  • बेटी ‌‌‌की शादी मे अगर मैं ही अंतर के पट खोलकर काम नही करूगा तो विवाह कैसे होगा ।
  • रामलाल ने अंतर के पट खोल रखा था तब ही तु उसे उसके बेटे के विवाह मे भला बुरा कह कर आ गया वरना तुम्हारी हिम्मत उसके सामने खडे होने की भी न थी ।
  • अध्यापक ने समझाया की बुरा समय हमे कमजोर बना देता है इस कारण से कष्टो ‌‌‌में भी जो अंतर के पट खोलकर काम करता है वही अपने जीवन मे सफल हो पता है ।
  • मुझे पता था की महावीर किस तरह का घुस्सेलू आदमी है परन्तु मैंने अंतर के पट खोल कर उसके पास नोकरी कर ली और आज मैं धनवान बन गया ।
  • राजवीर को तुम लूटेने की बात कर रहे हो तुम उससे एक फुटी कोडी तक नही ले सकते क्योकी वह ‌‌‌सभी कार्य अंतर के पट खोल कर करता है ।

अंतर के पट खोलना मुहावरे पर कहानी antar ke pat kholna muhavare par kahani

‌‌‌प्राचिन समय की बात है धिरनगर नाम का एक गाव हुआ करता था । गाव मे बहुत अधिक धनवान लोग रहा करते थे । वे लोग एक दुसरे को सही तरह से जानते तक नही थे । इसके अलावा ‌‌‌हर समय पैसो के बारे मे ही सोचते रहते थे ।

धिरनगर के गाव मे महेशराव नाम का एक आदमी रहा करता था । जो उस गाव का राजा था यानि ‌‌‌पुरा गाव महेशराव का ही कहना मानता था । इसके अलावा महेशराव के पास धन की कोई कमी नही थी । यानि वह अपने गाव मे सबसे धनवान था ।

साथ ही वह ज्ञानी आदमी था जो हर समय अपने ज्ञान के गुण गाता रहता था । महेशराव के घर मे उसके दो बेटे थे जो शहर मे बहुत बडा काम करते थे । महेशराव को जब भी क्रोध आता तो वह ‌‌‌अपनी समझदारी को भुलकर कुछ भी कह देता था ।

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मगर बादमे उसे पता चलता की मुझे ऐसा नही कहना चाहिए था । इसी तरह से एक बार की बात है उसी गाव मे एक साधू आया था । साधू को जरा भी क्रोध नही आता था । इसके अलावा साधू ज्ञानी था । उस गाव मे आने पर साधू को गाव के किसी भी व्यक्ति ने ‌‌‌भोजन के लिए नही पुछा था । ‌‌‌यह देख कर साधू को बहुत ही बुरा लगा ।

तब साधू को पता चला की गाव मे धनवान ही लोग है इस कारण से सभी अपने बारे मे ही सोचते है दूसरो के बारे मे साचेते भी नही है । तब साधू को यह भी पता चला की गाव मे का एक राजा भी जिसकी बात सभी गाव के लोग मानते है ।

तब साधू को लगा की मुझे वही खाना दे सकता है । क्योकी ‌‌‌साधू काफी दूर से आया था और अपने साथ भोजन के लिए कुछ लेकर नही अया था । जिसके कारण से साधू को भुख भी लगी थी।

अपनी भुख मिटाने के लिए साधू गाव के मुखिया या राजा के पास चला गया और उसके पास जाकर मदत मागने लगा । जब राजा ने साधू को देखा तो वह सोचने लगा की यह पाखंडी कहा से आ गया । ऐसा सोच कर उसने ‌‌‌साधू को कुछ नही दिया ।

बल्की अपने घर से ऐसे ही निकला दिया था । जिसके कारण से साधू बहुत ही निरास हो गया । तभी साधू रास्ते से अगले गाव मे जा ही रहा था की उसे एक ‌‌‌बुडिया मिली जिसे उसके बेटे ने घर से निकला दिया था ।

क्योकी उस ‌‌‌बुडिया के पास भी खाने के ‌‌‌लिए ज्यादा कुछ नही था फिर भी उस ‌‌‌बुडिया ने ‌‌‌अपने पास जो भी था उसे साधू को भोजन करने के लिए दे दिया ।यह देख कर साधू को लगा की इसकी मदत करनी चाहिए । इस तरह से अगले दिन जब गाव मे मीटिंग हो रही थी तो साधू वहां पर चला गया और राजा से उस ‌‌‌बुडिया के लिए न्याय मागने लगा ।

जिसके कारण से राजा उस बुडिया की बात सुन कर और उसके बेटे की बात सुनी । ‌‌‌तब बुडिया के बेटे ने साधू के बारे मे बुरा भला कह कर उसे बदनाम करने लगा और राजा से कहा की आप इस पाखंडी की बात मान रहे हो । यह सुन कर साधू हंसने लगा ।

मगर फिर भी वह साधू के बारे मे बुरा भला ‌‌‌कहता जा रहा था । इस तरह से कह कर राजा को उसने क्रोध दिला दिया । जिसके कारण से राजा ने साधू को गाव से जाने के ‌‌‌लिए कहा परन्तु साधू नही माना और कहा की जब तक इस बुडिया को न्याय नही मिल जाता तब तक मैं नही जाउगा ।

जब इसी तरह की साधू बार बार रट लगाने लगा तो राजा को क्रोध आ गया और क्रोध मे उसने अपने आप की समझदारी को खो दिया और साधू से कहा की तो मैं क्या करू तुम ही बता दो तुम जो कहोगे मैं ‌‌‌वह सब इस बुडिया के लिए करूगा ।

तब साधू ने राजा से फिर कहा की एक बार फिर सोच लो तुम्हे मैं कहुगा वह इस बुडिया के लिए करना होगा । मगर फिर राजा ने बिना सोचे समझे कह दिया की मैं वादा करता हूं की मैं तुम कहोगे वह इस बुडिया के लिए कर दूगा ।

मगर फिर से साधू ने कहा तो वह राजा क्रोध मे आ गया ‌‌‌और फिर से ऐसा ही कहा । जिसके कारण से साधू ने राजा से कहा की आपको इसे अपनी आधा धन देना होगा साथ ही यह अपने जीवन मे जब तक जीवित रहे इसके बेटे को बिना कुछ लिए इसकी सेवा करनी होगी ।

क्योकी राजा ने साधू से वादा किया था । जिसके कारण से राजा अब मना भी नही कर सकता था । मगर साधू की बात सुन कर राजा ‌‌‌ठंडा जरूर हो गया । तब राजा को समझ मे आया की साधू ने उसे तिन बार पूछा था मगर उसने बिना सोचे समझे ही साधू को उसका कहना मानने के लिए हां कहता जा रहा था ।

मगर अब क्या हो सकता था जिसके कारण से राजा का धन गया सो गया और बेटे को भी उसकी सेवा करनी पडी । तब अंत मे साधू ने गाव के लोगो को कहा की मैं ‌‌‌कोई पाखन्डी नही हुं फिर भी मैंने इनके ‌‌‌अपशब्द सुने और मैं चुप रहा ।

क्योकी मैं अपने अक्ल ‌‌‌से काम ले रहा था । तब साधू ने यह भी कहा की चाहे कैसी भी मुसीबत क्यो न हो सभी को ‌‌‌अपने अंतर के पट खोलकर कार्य करना चाहिए । क्योकी अगर आज राजा चतुराई रखता तो उसका धन नही जाता ।

अंतर के पट खोलना मुहावरे पर कहानी antar ke pat kholna muhavare par kahani

इस तरह से कह कर साधू तो वहां ‌‌‌से चला गया परन्तु पिछे गाव के लोगो को पता चल गया की अगर हर समय अंतर के पट ‌‌‌खुले होगे तो कोई भी हमे नुकसान नही पहुंचा सकता है । इस कारण से सभी जो भी कुछ करते सोच समझ कर करने लगे । इस तरह से आपको इस कहानी से मुहावरे के बारे मे पता चल गया होगा की इसका अर्थ क्या है ।

अंतर के पट खोलना ‌‌‌मुहावरे पर निबंध antar ke pat kholna muhavare par nibandh

साथियो ‌‌‌हमे जो बुद्धि या दिमाग मिला है अगर ‌‌‌हम इसका जितना अधिक इस्तेमाल करेगा तो ‌‌‌हमारा दिमाग उतना ही विकसित होता जाएगा । जिसके कारण से जो भी कार्य किया जाएगा ‌‌‌तब उसमे अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी ।

मगर यह तभी संभव होगा जब अंतर के पट खुले होगे क्योकी अंतर के पट खुले होने ‌‌‌पर ही चतुराई से काम किया जाता है । इस तरह ‌‌‌से चतुराई से काम करना ही इस मुहावरे का अर्थ होता है ।

अंतर के पट खोलना मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है || What is the meaning of in Hindi

दोस्तो सबसे पहले तो आपको बता दे की अंतर के पट से मतलब दिमाग से जुड़ा होता है और आपको पता है की दिमाग हमेशा चतुराई से भरा होता है जो की अपने अंदर कई तरह का ज्ञान रखता है और उसी ज्ञान के कारण से दिमाग जो करता है वह सही करता है ।

तो अगर किसी के अंतर के पट खुले होगे तो इसका मतलब है की वह ज्ञानी है और जो कुछ करता है वह तुराई से काम करता है । और असल में इसी को इस मुहावरे का अर्थ माना गया है ।

इसका मलतब यह होता है की antar ke pat kholna muhavare ka arth– चतुराई से काम करना या चतुराई से काम लेना होता है ओर जब भी कही पर तुराई से काम करने की बात होती है तो वहां पर इस मुहावरे का प्रयोग कर सकते है और यह आप अच्छी तरह से समझ सकते है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।