अपना सा मुँह लेकर रह जाना मुहावरे का अर्थ

अपना सा मुँह लेकर रह जाना मुहावरे का अर्थ apna sa muh lekar rah jana muhavare ka arth – शर्मिंदा होना ।

दोस्तो जब आप किसी मित्र के पास जाते हो । मगर वह मित्र किसी कारण से आपसे नाराज होता है  तो वह आपको बिना कुछ सोचे समझे अपमानित करने लग जाता है । मगर आपको पता है की इसके सामने बोलने से बात बढेगी ‌‌‌इस कारण से आप चुप रहते हो ।

मगर ‌‌‌आपका मित्र चुप होने का नाम ही नही लेता है और लोगो के सामने आपको काफी अधिक अपमानित कर देता है । तो आप मुंह लटकाते हुए वहां से वापस अपने घर आ जाते हो । तो इस तरह से जब भी कोई व्यक्ति अपमानित होकर निराश हो जाता है या शर्मिदा हो जाता है तो इसे अपना सा मुंह लेकर ‌‌‌रह जाना ही कहा जाता है ।

अपना सा मुँह लेकर रह जाना मुहावरे का अर्थ

अपना सा मुंह लेकर रह जाना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग

  • सेठजी को गाव के लोगो ने इतना भला बुरा कहा की सेठजी अपना सा मुंह लेकर रह गए ।
  • जब महेश ने रामू के पैसे समय पर वापस नही दिए तो रामू ने महेश को काफी भला बुरा कहा जिससे महेश अपना सा मुंह लेकर रह गया ।
  • कंचन ने चाचाजी ‌‌‌को ऐसी चुभने वाली बाते कह दी जिसके कारण से चाचाजी अपना सा मुंह लेकर रह गए ।
  • कंचन बार बार बहाना बनाकर पैसे उधार ले लेती थी मगर एक दिन इस बारे में सभी को पता चल गया जिसके कारण से कंचन को अपना सा मुंह लेकर रहना पड़ा  ।
  • मैं तो भाईसाहब सच कहुंगा अगर किसी को अपना सा मुंह लेकर रहना हो रहो ।
  • ‌‌‌अपने बड़े भाई को इस तरह से कोई भला बुरा कहता है बिचारे अपना सा मुंह लेकर रह गए ।
  • सरला बार बार घर की बाते दुसरो को बता देती थी मगर एक दिन सरला के घर के सदस्यो को इस बारे में पता चल गया फिर क्या था सरला को अपना सा मुंह लेकर रहना पड़ा ।

‌‌‌अपना सा मुंह लेकर रह जाना मुहावरे पर कहानी

‌‌‌कई वर्षों पहले की बात है किसी नगर में नारायण दास नाम का एक व्यक्ति हुआ करता था । नारायण दास जी बहुत ही अच्छे और नेक आदमी हुआ करते थे । वे हमेशा से ही लोगो का भला करते थे । जिसके कारण से नारायण जी ने अपने खर्च पर गाव में हॉस्पिटल, स्कूल जैसी अनेक सेवाए प्रदान की थी । मगर यह सब उसके बेटे ‌‌‌को जरा भी अच्छा नही लगता था ।

क्योकी वह चाहता था की वह अपना धन उपयोग कर कर खुब पैसे कमाए । मगर नारायण जी यह सब सुविधा गाव के लोगो में फ्रि में बाट रहे थे । जिसके कारण से नारायण दास के बेटे ने अपने बेटे को यहां पर रहने को नही कहा और उसे छोटी सी उम्र में शहर में अकेले को रहने के लिए भेज दिया ‌‌‌।

ताकी वह लोगो की और न देखे बल्की अध्ययन करते हुए अपने एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सके । साथ ही वह अधिक से अधिक धन कमा सके । मगर नारायण दास जी के बेटे को यह पता नही था की इससे क्या होगा । दरसल नारायण दास जी के पौते का नाम रघुवीर था

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‌‌‌जो की शहर में अध्ययन करने के लिए गया हुआ था । रघुवीर अपनी छोटी सी उम्र में यह देखने लगा था की उसे अधिक से अधिक पैसो की जरूर है । और वह इसी उम्र से भटकने लगा था । क्योकी जैसे जैसे उम्र बढती जाती थी रघुवीर पैसो को कही न कही से लेकर आने लगा था ।

मगर इस बारे में रघुवीर ने किसी को नही बताया था । ‌‌‌और यही पर रघुवीर अपने दादा नारायण दास जी के नियमो से बिछड़ गया था । क्योकी जैसे नारायण दास जी थे वैसा रघुवीर नही था । मगर इस बारे में किसी को कुछ पता नही था । दरसल रघुवीर अपने आस पास के इलाको में चोरी करने लगा था । मगर जैसे जैसे रघुवीर बड़ा होता गया वह एक पक्का चोर बन गया और अध्ययन करने का ‌‌‌नाटक करने लगा था और अधिक से अधिक चोरी करता रहता था ।

 इस तरह से कई वर्षां तक चलता रहा । मगर किसी को रघुवीर के बारे में भनक नही पड़ी थी । मगर रघुवीर जीस शहर में रहता था वहां के लोगा काफी अधिक परेशान होने लगे थे ।

‌‌‌क्योकी बार बार चोरी होने का मतलब है की उन ‌‌‌पर काफी अधिक सकंट आ गया है । ओर उनकी जो मेहनत के पैसे है वे चोरी होने लगे है । मगर रघुवीर यह नही सोच रहा था की जब इस बारे में उसके दादा और उसके गाव के लोगो को पता चलेगा तब क्या होगा ।

धिरे धिरे समय के साथ रघुवीर उस शहर में इतना अधिक चोरी का डर फैलाने ‌‌‌चुका था । जिसके कारण से लोग सोते भी थे तो घर के बाहर ताला होता था । इस तरह से तब तक रघुवीर की पढाई भी पूरी हो गई थी । जिसके कारण से रघुवीर अपने घर अपने गाव में चला गया था ।

तब रघुवीर ने गाव का ‌‌‌माहोल देखा । तब उसे कुछ समझ में नही आया था । क्योकी सभी रघुवीर को आदर दे रहे थे । यह केवल नारायण दास ‌‌‌के कारण से ही हो रहा था । क्योकी लोग नारायण दास के द्वारा की गई मदद के प्रति सभी को आदर देते थे जो की उनके घर से होता था । मगर जैसे ही रघुवीर अपने दादा नारायण के पास गया तो दादाजी ने गाव के लोगो की मदद करने के लिए ज्ञान बाटने लगे थे ।

‌‌‌मगर रघुवीर ठहरा चोर वह किसी ‌‌‌का भला कैसे मदद कर पाएगा । यह रघुवीर को समझ में आ रहा था मगर वह किसी को कैसे बताए की वह चोर है । क्योकी इसमें रघुवीर की ही हानि होती थी ।मगर कहते है न चोर अपनी आदतो से आसानी से छुटकारा नही पा सकते है । और यही कारण था की ‌‌‌रघुवीर धिरे धिरे गाव के लोगो के घरो में चोरी ‌‌‌करने लगा था ।

इस तरह से गाव के लोगो में भी डर बैठ गया की उनके घरो में चोरी होने लगी है । जिसके कारण से सबसे पहले गाव के लोग रघुवीर के दादा यानि नारायण जी के पास इसका हल निकालने के लिए गए । तब नारायण दास जी ने यह काम अपने पौते रघुवीर को सोप दिया था ।मगर अब चौर कैसे चोर को पड़ेगा ।

मगर फिर ‌‌‌रघुवीर ने अच्छा नाटक किया और एक महिने तक किसी को भनक नही पड़की जो हमारे चोर को पकड़ रहा है वही चोर है । मगर एक दिन क्या हुआ की रघुवीर रात को आराम से सो रहा था । तभी उसकी आंख खुल गई और वह रात को ही अपने कमरे से बाहर आ गया । इस बिच किसी को कुछ पता नही चला था । धिरे धिरे रघुवीर चलता हुआ गाव ‌‌‌के बिच में पहुंच गया । तभी एक व्यक्ति की उस पर नजर पड़ गई । तब उस व्यक्ति ने रघुवीर से बात करने की सोची मगर फिर उसने सोचा मेरे को क्या है यह किसी काम के लिए गाव में आया होगा ।

मगर उस व्यक्ति के देखते ही देखते रघुवीर एक घर में घुस गया और वहा से धन लेकर निकल गया  । यह देख कर वह चोक ‌‌‌उठा की नारायण दास जी के जैसे भले आदमी का पोता ही चोर है । यह बात उसको हजम नही हुई और उसने अपनी पत्नी को बता दिया । और पत्नी ने आस पड़ोस में बता दिया । मगर किसी ने इस बारे में नारायण दास को नही बताया । क्योकी सभी को लगा की अगर बात सही नही हुई तो फिर क्या होगा ।

‌‌‌मगर अब सभी सर्तक थे । की उनके घर में अरग रघुवीर आता है तो वे सोच मचा कर आस पड़ोस के लोगो को तुरन्त बुला लेगे । और यही हुआ । जिस व्यक्ति ने रघुवी को देखा था उसी के पास एक घर था वही पर रघुवीर चोरी करने के लिए आ गया और ‌‌‌यह सब उस घर में रहने वाले लोगो ने देख लिया ।

जिसके कारण से जैसे ही रघुवीर ने तिजोरी से धन निकाला पिछे से उस घर का एक सदस्य उठ गया और आस पास के लोगो को बुलाकर ले आया । अब जैसे ही रघुवीर घर से बाहर जाने लगा था तो उसने देखा की गाव के लोग तो उसके घर के बाहर है । यह देख कर रघुवीर अपना सा मुंह लेकर ‌‌‌रह गया ।

कुछ समय बित जाने पर नारायण दास और उसका बेटा भी वहां पर आ पहुंचे । तो उसने देखा की रघुवीर ही गाव में चोरी करता है । तभी एक ‌‌‌व्यक्ति ने नारायण दास से कहा की जहां यह रहता था वहां पर भी काफी अधिक चोरी होती थी और जैसे ही यह गाव में आया है यहां पर चोरी होने लगी है और वहां पर चोरी नही होती है ‌‌‌। यह सब बात सुन कर अब रघुवीर क्या बोले वह चुप चाप खड़ा था । और न ही कुछ नारायण दास जी बोलने के काबिल रहे थे । बल्की नारायण दास जी तो अपना सा मुंह लेकर वहां से चला गया ।

‌‌‌अपना सा मुंह लेकर रह जाना मुहावरे पर कहानी

‌‌‌मगर इन सब का सबसे अधिक नारायण दास जी पर असर देखने को मिला था । क्योकी जो लोग अब नारायण दास जी को मान समान देते थे उनमे से बहुत से लोग उनके साथ बात तक नही करते थे । और उनको देख कर वहां से चले जाते थे । तब नारायण दास जी को पता चल गया था की यह सब उसके पोते के द्वारा किए गए कार्यों के कारण से हुआ ‌‌‌है ।

तब नारायण दास जी ने अपने बेटे को उसी गाव में रह कर गाव के लोगो की सेवा कराने का काम करवाने लगा था । मगर क्या होता है जो ‌‌‌सम्मान नष्ट हो जाती है वह फिर अधिक जल्दी से वापस नही आती है । और नारायण दास जी को ऐसा फिर अपने जीवन में नही देखने को मिला की लोग उनके पौते की चोरी को भुल गए है ।

इस ‌‌‌तरह से पौते की गलती के कारण से नारायण दास जी जैसे महान आदमी को भी अपना सा मुंह लेकर रहना पड़ा था ।

अपना सा मुंह लेकर रह जाना मुहावरे पर निबंध

साथिया लोग हमेशा से ही अपने मान समान को बनाए रखना चाहते है । वे चाहते है उनका जो सम्मान हो रहा है वह उनकी उम्र भर में होता रहे । और यही कारण है की आज ‌‌‌लोग जो कुछ करते है वह मान सम्मान बढाने के लिए ही करते थे । मगर दोस्तो जब मानव से केवल एक छोटी सी गलती हो जाती है तो वह जो मान सम्मान बनाने के लिए पुरी उम्र लगाता है वह मिट जाता है । यानि पुरी उम्र में किए गए अच्छे कार्यों का कोई भी महत्व नही रहता है  ।

‌‌‌जैसे की नारायण दास जी ने अपने जीवन में काफी अच्छे अच्छे काम किए थे । मगर क्या हुआ की उनके पौते ने एक बुरा काम पकड़ लिया और जब इस बारे में लोगो को पता चला तो नारायण दास जी को भी शर्मिदा होना पड़ा था । और यहां पर अपना सा मुंह लेकर रह जाना कहा गया था ।

यानि शर्मिदा होने पर मनुष्य अपना मुंह ‌‌‌लटका लेता है । वह लोगो से सही तरह से नजर नही मिला पाता है । और अपनी नजर झुकाते हुए वह लोगो से बिच में से निकल जाता है । तो इस तरह से उस व्यक्ति ने केवल अपना ही मुंह अपने पास रखा है और किसी को देखा नही है या देख नही पाया है । क्योकी यह सब कुछ शर्मिदा होने के कारण से होता है तो यही इस ‌‌‌मुहावरे का अर्थ होता है ।

‌‌‌इस तरह से मैं आसा करता हूं की आप इस मुहावरे के अर्थ को आसानी से समझ गए होगे ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।