पगड़ी उछालना मुहावरे का अर्थ  और वाक्य में प्रयोग

पगड़ी उछालना मुहावरे का अर्थ pagdi uchalna muhavare arth— बेइज्जत करना या अपमानित करना ।

दोस्तो पगड़ी जो होती है वह भारत के अंदर बहुत से लोग अपने सिर पर पहनते है और इसे समानता का प्रतिक माना जाता है । तो अगर कोई पड़ी को पहने हुए होता है तो इसका मतलब है की उसका लोगो के बिच में सम्मान होता है ।

मगर वही पर पगड़ी कोई उछालता है तो यह सम्मान को नष्ट करना या सम्मान को उछाने के समान होता है ।क्योकी सम्मान को उछालने के कारण से बेइज्जत या अपमानित महसुस होता है । तो इस तरह से कह सकते है की पगड़ी उछालने पर अपमानि यार बेइज्जती होती है। और इस तरह से पगड़ी उछालना मुहावरे का अ​र्थ होता है  बेइज्जत करना या अपमानित करना ।

पगड़ी उछालना मुहावरे का अर्थ  और वाक्य में प्रयोग

पगड़ी उछालना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग   || pagdi uchalna use of idioms in sentences in Hindi

1.        तुमने एक नेक आदमी की पगड़ी उछाली है भगवान तुम्हे कभी माफ नही करेगे ।

2.        वह एक सिधा साधा आदमी है तभी तुम जैसे लोग उनकी पगड़ी उछालते रहते है ।

3.        विवाह के समय में लड़की के पिता ने दूल्हे को गाडी नही दी तो लड़के वालो ने लड़की के पिता की पगडी उछाल दी ।

4.        अगर उनको विवाह में गाडी नही मिली तो वे पगडी उछालने से पीछे नही हटेगे ।

5.        अरे दुष्ट आज भी तुम्हारे जैसे लोग है मुझे पता नही था जो दहेज न मिलने पर पगड़ी उछालने में देर नही लगाते है ।

6.        समय पर उधार दिए रूप वापस नही मिले तो सेठ ने शर्मा जी की पगड़ी उछाल दी ।

पगड़ी उछालना मुहावरे पर कहानी  || pagdi uchalna story on idiom in Hindi

दोस्तो आज का वह समय है जब दहेज पूरी तरह से बंद हो चुका है न तो लड़का दहेज देता है और न ही लड़की का पिता दहेज देता है । मगर फिर भी बहुत से लोग है जो की अपनी मन पसंद चीज मागते है और कहते है की यह मत समझना की हम दहेज ले रहे है जो की कुछ दे रहे हो वह अपनी बेटी को ही दे रहे हो ।

और ऐसा ही कुछ एक बार शर्मा जी की बेटी के समय हुआ था और यह कुछ शर्मा जी के लिए काफी बुरा दिन रहा था । जहां पर बेटी केविवाह में खुशिया मिलनी चाहिए थी वहां पर बईज्जती मिल गई थी ।

दरसल शर्मा जी गाव में रहने वाले एक सिधे साधे पढे लिखे आदमी थे जो की कियर स्कूल में बच्चो को पढाने का काम करते थे और इस तरह से काम करने के कारण से उनका जीवन चल जाया करता था ।

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मगर वे कोई सरकारी अध्यापक नही थे बल्की प्राईवेट काम करते थे जिसके कारण से उन्हे महिने के ज्यादा नही बल्की 8 हजार के करीब रुपय ही मिल पाते थे । और आप ही बताओ की आज के इस जमाने में कोई इतने ही रूपय देता है तो भला यह कैसे सही है और घर भी फिर कैसे चलता है ।

मगर फिर भी शर्मा जी ने अपने बेटी और बेटे को वह सब कुछ लाकर दिया जिसकी उन्हे जरूरत थी । मगर कहते है की घर मे बेटी है तो फिर उसके विवाह की फिकर भी पिता को करनी चाहिए और शर्मा जी ने भी इस बात को शिरियस लिया था और अपनी बेटी के विवाह के लिए पहले ही पैसे जमा करने लगे  थे और दूसरा की एक एलआईसी करवा रखी थी जो की अभी इसी वर्ष मिलने वाली थी ।

तो शर्मा जी ने अपनी बेटी का विवाह करने की योजना बना ली थी क्योकी बेटी का विवाह करने का समय भी आ गया था । तो शर्मा जीने लगे हाथ ही अपने बेटे का भी विवाह करने का फैसला ले लिया ।

ताकी एक ही समय में दो काम पूरे हो जाए । दोनो के लिए अच्छा घर मिल गया था मगर लोग अच्छे थे की नही यह बाद में पता लगने वाला था ।शर्मा जी की जो बेटी थी उसका विवाह एक बैंक मनेजर से होने वाला था जो की महिने के हजारो मे रूपय आसानी से कमा लेता था ।

 आपको बता दे की उसका नाम सुरेश था जो की शर्मा जी की बेटी से विवाह करने वाला था । सुरेश का जो पिता था वह लालची थी और सुरेश से बिना पूछे ही शर्मा जी से विवाह में बेटे के लिए गाडी माग ली और शर्मा जी ने भी गाडी देने का वादा कर दिया था और इस कारण से विवाह भी होने को तैयार था ।

इधर सुरेश के घर के लोग विवाह की तैयाी में जुट गए थे और इधर शर्मा जी भी दिन रात काम करते हुए अपने घर में विवाह की तैयारी कर रहे थे । करीब एक महिने के बाद मे शुभ मुहर्त निकला था जिस पर शर्माजी को अपनी बेटी का विवाह करना था

और इस कारण से सभी जोरो सोरो से तैयारी में लगे हुए थे और कब एक महिना बित गया किसी को पता तक नही चला था । अब विवाह का दिन था तो  सभ विवाह की तैयारी कर रहे थे की तभी बारात के आने का समय हो गया और सभी स्वागत करने लग गए थे ।

मगर इधर शर्मा जी जो थे वे काफी टेंसन में आ गए थे क्योकी उन्होने अभी तक कार नही ली थी तो जैसे ही बारात आती है तो शर्मा जी दूल्हे से बात कर कर कह देते है की कार का इतजाम नही हुआ है मैं बाद मे कर दूगा ।

यह सुन कर दुल्हा चौक गया और कहा की कार देने की क्या जरूरत है ओर यह सुन कर शर्मा जी वहां से टेंसन फ्रि होकर वहां से चले गए । मगर बाहर जाने के बाद में सुरेश के पिता ने शर्मा जी से पूछा की कार कहा है जरा देखे तो ।

मगर शर्मा जी ने कहा की कारण का इंतजाम नही हो पाया है और यह सुन कर सुरेश का​ पिता जो था वह आग बबूला हो गया और शर्मा की पगड़ी उछालने लगा था  कुछ समय बिता था की सुरेश ने आकर अपने पिता को संभाला और सब कुछ समझाया की दहेज लेना और देना दोनो अपराध है और पिता से कहा की अगर आप ऐसा करोगे तो अच्छा नही होगा ।

पगड़ी उछालना मुहावरे का अर्थ

और यह सुन कर सुरेश के पिता मान गए और फिर सुरेश और शर्मा जी की बेटी का विवाह हो पाया था । अब सभी विवाह से खुश थे और शर्मा जी भी खुश थे की कार नही देनी होगी । तब शर्मा जी ने दुल्हे से कहा की आपने तो मेरी मगडी उछालने से बचा ली आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

यह सुन कर सुरेश ने कहा की मैं आपके बेटे के जैसा हूं तो भला मेरा इतना तो फर्ज बनता ही है की आपकी इज्जत को अपनी इज्जत समझू और इस तरह से बाते हुए और फिर दोनो को विदा भी किया गया था । इस तरह से दोस्तो शर्मा जी की पगडी उछाली जा रही थी मगर बच गई ।

वैसे इस कहानी से मुहावरे के बारे में समझ सकते हे अगर कुछ पूछा है तो कमेंट कर देना

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।