यथा राजा तथा प्रजा का मतलब और वाक्य में प्रयोग

यथा राजा तथा प्रजा मुहावरे का अर्थ yatha raja tatha praja muhavare ka arth – जैसा मालिक वैसा सेवक होना

दोस्तो राजा और प्रजा का बहुत ही अच्छा रिस्ता होता है । क्योकी जो राजा अपनी प्रजा को कहता है उसकी प्रजा भी वैसा ही करती है । साथ ही राजा अगर अच्छा व्यक्ति है और दुसरो के साथ ‌‌‌अच्छा करता है तो उसकी प्रजा भी इसी तरह की अच्छी होगी ।

मगर जब राजा बुरा होता है तो उसकी प्रजा भी बुरी ही होती है । इसी तरह से कह सकते है की जैसा मालिक होता है वैसा ही उसका सेवक होगा । इस तरह से जब कभी किसी कारण से जैसा मालिक वैसा ही सेवक होने की बात होती है वही इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता ‌‌‌है ।

यथा राजा तथा प्रजा का मतलब और वाक्य मेंप्रयोग

यथा राजा तथा प्रजा मुहावरे का वाक्य में प्रयोग yatha raja tatha praja muhavare ka vakya mein prayog

  • रामलाल तुम तो बडे ही निर्दय हो तभी तुम्हारे सारे घर के लोग तुम्हारी तरह है सच ही है यथा राजा तथा प्रजा ।
  • कुलदिप का तो कहना ही क्या वह अपने मालिक की तरह बहुत ही नेक दिल्ल आदमी है और दुसरो की मदद करने से पिछे नही हठता सच ही है यथा राजा तथा प्रजा ।
  • जब से लवणदास इस गाव का मुखिया बना है तब से गाव के सभी लोग गलत कार्य करने लगे है क्योकी यथा राजा तथा प्रजा ।
  • राहुल को देख कर यह मैं कह सकता हूं की यह गाव को डुबाकर ही दम लेगा क्योकी यथा राजा तथा प्रजा ।
  • महावीर अपने सेवको के साथ अच्छी तरह से पेस आता है तभी उसके सेवक उसका ‌‌‌काम बहुत बडिया करते है सच है यथा राजा तथा प्रजा ।
  • महेशदास का तो कहना ही क्या सभी के साथ इमानदारी रखता है तभी गाव के लोग उसका कभी बुरा नही ‌‌‌सोचते है सच है यथा राजा तथा प्रजा ।
  • अगर तुम्हे जीवन मे सफल होना है तो पहले स्वयं इमानदार बन जाओ बाकी अपने आप सही हो जाएगा क्योकी यथा राजा तथा प्रजा ।

‌‌‌यथा राजा तथा प्रजा मुहावरे पर कहानी yatha raja tatha praja muhavare par kahani

प्राचिन समय की बात है एक बहुत ही बडा राज्य हुआ करता था । राज्य में अनेक लोग रहते और अपने जीवन के अनमोल कार्य किया करते थे । साथ ही उस राज्य का जो राजा था वह बहुत ही इमानदार था । वह कभी भी किसी व्यक्ति के साथ गलत तरह से पैस नही आता था ।

यहां तक की अगर ‌‌‌कोई व्यक्ति सजा का हकदार होता तो राजा उसे सजा तो देता था परन्तु कभी उसके साथ क्रोध से पेश नही आता था । जिसके कारण से वह व्यक्ति भी राजा को अच्छा मानने ‌‌‌लग जाता था । इसी तरह से राजा अपने राज्य के बाकी लोगो के साथ करता था ।

उनकी हर प्रकार से सेवा करता यहां तक की उनकी मदत के लिए स्वयं कार्य ‌‌‌करने लग जाता था । राजा के नेक दिल्ल को देख कर राज्य की प्रजा भी बहुत खुश होती और राजा को अपने राज्य की हिफाजत करने के लिए कहा करती थी ।

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राजा के दो बेटे थे जिनमे से एक का पैर कटा ‌‌‌हुआ था । जब राजा वृद्ध हो गया तब राजा ने अपने एक बेटे को नया राजा घोषित कर दिया था । ‌‌‌अब जो राजा बना था वह पैर कटा हुआ नही था यनि राजा का दूसरा छोटा बेटा था । जिसका नाम रणावतसिंह था ।

क्योकी राजा रणावतसिंह को राजा का तख्त आराम से हासिल हो ‌‌‌गया । जिसके कारण से वह अपने राज्य के लोगो के साथ सही तरह से न्याय नही करता था और उनके साथ बुरा कर कर हंसने लगता था ।

जब रणावतसिंह ‌‌‌के इस तरह की आदत को राजा देखने लगा तो वह बहुत ही चिंतित होने लगा और सोचने लगा की इसके कारण से मेरी प्रजा भी इसी तरह की बन जाएगी । जिसके कारण से अपने बेटे को सही तरह का राजा ‌‌‌बनाने के लिए राजा ने बहुत ही कोशिश की परन्तु राजा की कोशिश सफल न हो सकी ।

तब एक दिन राजा ने अपने कुछ गुप्तचरो को पास ‌‌‌के राज्य में भेजा जहां पर बहुत ही सिद्ध संत रहा कराता था । जिसे राजा अच्छी तरह से जानता था और गुप्तचरो से राजा की दुविधा सुन कर वह गुरू महात्मा तुरन्त राजा की नगरी आ गए । महात्मा को देख कर राज्य के लोग उन्हे नमन करने लगे ।

यह देख कर महात्मा बहुत ही प्रसन्न हुआ । धिरे धिरे जब संत महात्मा ‌‌‌चल कर राजा के महल मे पहुंचे तो उन्हे पाखंडी संत बता कर सेनिको ने वही द्वार पर रोक लिया । क्योकी संत महात्मा को इस बारे मे पहले ही बता दिया था जिसके कारण से उन्हे बिल्कुल बुरा नही माना । कुछ समय बात जब रणावतसिंह का मंत्री आया तो उसने संत को महल मे आने की आज्ञा दे दी ।

तब संत ‌‌‌महात्मा रणावत के पास चला गया और उसके पास जाकर उसे शिक्षा देने लगा की अगर वह सही तरह से नही चला तो उसकी हालत बहुत बुरी होगी । परन्तु वह उस संत की नही सुन रहा था और अंत मे संत की बात सुन कर रणावतसिंह को क्रोध आ गया और संत को तहखाने मे डालने का आदेश दे दिया ।

आदेश पा कर सेनिको ने संत को तहखाने ‌‌‌में बन्द कर दिया । जब राजा को इस बारे मे पता चला तो वह संत से मिलने के लिए तहखाने मे गया । और संत के पास जाकर कहा की महाराज मैंने आपको कहा था की उसे सही तरह से समझाना इस तरह से सिधे प्रवचन देने से वह क्रोधित हो जाएगा ।

राजा की बात सुन कर संत ने कहा की रणावत अब किसी की नही सुनेगा । जब तक ‌‌‌प्रजा उसे सबक नही सिखा देगी । संत की यह बात सुन कर राजा कुछ डर गया तब राजा ने संत से कहा की आखिर प्रजा क्या करने वाली है । संत ने कहा की यथा राजा तथा प्रजा

यह बात सुन कर राज समझ गया की मेरे बेटे रणावत के इस तरह के आचरण के कारण से प्रजा भी इसी तरह की हो जाएगी । जिसके कारण से मेरे बेटे‌‌‌ को सजा मिलेगी सो मिलेगी परन्तु प्रजा भी एक दुसरे ‌‌‌के साथ सही तरह से नही रहेगी ।

जब इस दुविधा को राजा ने संत के सामने रखी तो संत ने कहा की अगर तुम्हारा बडा बेटा राजा बनेगा तो प्रजा भी वापस पहले की तरह होगी । इस तरह की बात सुन कर राजा ने कहा की वह तो विकलाग है वह राज्य को कैसे चला पाएगा ।

तब ‌‌‌संत ने राजा को समझाया की विकलाग होना कोई बडी बात नही है बल्की सच्चा और नेक दिल ही राज्य को चला पाता है । इस तरह से अंत मे राजा ने संत को वापस तहखाने से महल मे आने को कहा तो संत ने कहा की अब तो रणावत ही यहां से मुझे निकालेगा ।

 तब राजा ने बहुत कोशिश की परन्तु संत नही माना और वही पर रहा । ‌‌‌धिरे धिरे इस बात को एक वर्ष बित गया । अब रणावत जैसा था उससे भी बुरा बन गया था परन्तु प्रजा भी उसी तरह की बन गई जिसके कारण से प्रजा धिरे धिरे रणावत का आदेश मानने से मना करने लगी थी ।

जब रणावत अपने सेनिको से प्रजा को डरवाता तो प्रजा एक साथ होकर उनका विरोध करती थी । इस तरह से फिर ‌‌‌प्रजा रणावत को कोई भी फायदा नही देती थी । यानि जो रणावत को टेक्स दिया जाता था वह भी बद हो गया । जिससे रणावत की राजगद्दी हिलने लगी थी ।

‌‌‌यथा राजा तथा प्रजा मुहावरे पर कहानी yatha raja tatha praja muhavare par kahani

यानि रणावत के पास धन दोलत की कमी आने लगी और सेनिको की भी कमी आने गली थी । इस बात को छ महिने ही हुए थे की रणावत की हालत बहुत ही खराब हो गई थी । ‌‌‌क्योकी कोई भी महल का काम करने वाला नही था । यहां तक की खाना बनाने वाले नोकर भी रणावतसिंह से दूर हो गए ।

क्योकी वह उनके साथ भी सही तरह से नही रहता था । जिसके कारण से थक हार कर अंत मे रणावत ने अपनी राजा की ‌‌‌गद्दी को त्याग दिया और आम लोगो की तरह रहने लगा था । साथ ही जो भी लोग तहखाने मे ‌‌‌थे उन्हे छोड दिया था । इस तरह से वह संत भी छुट गया ।

जिसके कारण से संत ने रणावत से कहा की मैंने कहा था की अगर तुम सही तरह से नही रहोगे तो तुम्हारी हालत बहुत ही खराब होगी ‌‌‌क्योकी यथा राजा तथा प्रजा। संत की बात सुन कर रणावत को पुरानी बात याद आ गई । तब रणावत अपने किए पर पछताने लगा । ‌‌‌

इस तरह से फिर राजा ने अपनी राजा के सिहासन को अपने बडे बेटे को दे दिया और प्रजा से विनती की की अब से मेरा बडा बेटा आपका राजा है और मैं वादा करता हूं की यह रणावत जैसा नही होगा । राजा के 3 वर्षो के बाद ऐसा कहने के कारण से भी प्रजा राजा की बात मान गई ।

क्योकी राजा अच्छा था इस कारण से उसकी प्रजा ‌‌‌भी अच्छी थी । इसके बाद मे राजा का बडा बेटा जो विकलाग था वही अपने राज्य को अपने पिता की तरह चलाने लगा था । जिससे प्रजा भी काफी खुश थी । इस तरह से आपको समझ मे आ गया होगा की इस मुहावरे का अर्थ जैसा मालिक वैसा सेवक होना ही है ।

यथा राजा तथा प्रजा मुहावरे पर निबंध || yatha raja tatha praja essay on idioms in Hindi

दोस्तो हमेशा से लोगो के अंदर यह खासियत रही है की जो जैसा होता है उसे वैसा ही पसंद आता है । जैसे की आप अच्छे है और हमेशा नेक काम करते है तो आपको एक ऐसा ही व्यक्ति पसंद आता है जो की अच्छा हो और नेक काम करता हो ।

इसके विपरित आपको बुरा व्यक्ति कभी भी पसंद नही आता है ।

ठिक ऐसे ही एक शराबी हमेशा शराबी के पास ही बैठता है क्योकी इसमें भी उसे अपने जैसा पसंद आ रहा है । कहने का मतलब है की हमेशा लोग अपने गुणो वाले को ही पसंद करते है ।

ऐसे में अगर राजा और प्रजा दोनो एक तरह की होती है यानि जैसा राजा होता है और वैसी ही उसकी प्रजा होती है तो यह ठिक वैसे ही है जैसे की मालिक के जैसा ही सेवक का होना और इसी के लिए इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है और आप इससे समझ गए होगे की मुहावरे का अर्थ क्या होगा ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।