ढोल पीटना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग और कहानी

ढोल पीटना मुहावरे का अर्थ dhol pitna muhavare ka arth — प्रचार करना।

दोस्तो पहले क्या होता था की जब भी कोई राजा महाराज किसी बात को प्रजा तक पहुंचाना चाहता था तो एक व्यक्ति होता था जो की ढोल को पीटता हुआ ​उस बात को लोगो तक पहुंचा देता था । जिसके कारण से लोगो के पास बात पहुंच जाती थी । क्योकी अगर आज ऐसा किया जाता है तो इसे प्रचार करना कहा जाता है ।

क्योकी अब प्रचार करने के लिए ढोल को पीटा जा रहा है तो इसका मतलब हुआ ढोल पीटना मुहावरे का अर्थ प्रचार करना होता है । और जहां परप्रचार करने की बात होती है वही पर इस मुूहावरे का वाक्य में प्रयोग किया जाता है ।

ढोल पीटना मुहावरे का अर्थ

ढोल पीटना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग  || dhol pitna  use of idioms in sentences in Hindi

1.        आज राजा साहब ढोल पीट रहे है की कल उनके बेटे का विवाह होने वाला है तो सभी को भोजन करने के लिए आना है ।

2.        युवराज का राजतिलक होने वाला है और इसी बात का आज पुरे राज्य में ढोल पीटा जा रहा है ।

3.        कल ही शहर में मिठाई की नई दुकान खोली गई थी और तभी आज पूरे शहर में ढोल पीटा जा रहा है ।

4.        कंचन का विवाह एक डॉक्टर से हो गया तो उसकी मां पूरे गाव में ढोल पीटने लगी ।

5.        बेटी कलेक्टर की नोकरी लग गई तो उसका पिता पूरे गाव में ढोल पीटता फिर रहा है ।

6.        इस दिपावली के मोके पर मुबाईल की किमत कम कर दी गई है और इसी बात का ढोल पीटा जा रहा है ।

7.        कल सरकार ने सोसल मिडिया पर खुब ढोल पीटा की जल्द ही 2000 का नोट बंद होगा जिसके पास है वे बैंक से बदलवा ले ।

8.        एक सरकारी बाबू के पास करोडी की संख्या में 2000 के नोट मिले और वह पकडा गया और यह बात आग की तरह पूरे राज्य में फैल गई जैसे मानो किसी ने ढोल पीटा हो  ।

ढोल पीटना मुहावरे पर कहानी || dhol pitna story on idiom in Hindi

दोस्तो हाल ही के वर्ष की बात है एक छोटा सा गाव हुआ करता था और उस गाव में जो भी कोई रहता था उसे खाना बहुत ही अच्छा लगता था । हालाकी पेट भरने के लिए तो सभी भोजन खाते रहते है । मगर उस गाव के जो लोग थे वे अपना पेट भरने के लिए न खा कर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए खाते थे ।

दरसल गाव के लोग मीठाईयो के दिवाने थे । और सभी अच्छी अच्छी मिठाईया खाने की इच्छा रखता था । ​इस कारण से गाव में जब पता चलता की किसी के यहां पर विवाह है तो लोग बिना बुलाए ही पहुंच जाते थे और कोई उन्हे मना भी नही कर पाते थे। यहां तक की दुकान में जो कुछ मिलता था उसे कम से कम एक बार जरूर खाते थे ।

मगर कहते है की लोगो की जो जरूरत होती है उसका कुछ लोग फायदा उठा लेते है ।और आपको बता दे की लालूप्रसाद नाम का एक आदमी बिल्कुल ऐसा ही था जो की लोगो की जरूरत को अपने फायदे के लिए उपयोग कर चुका था ।

क्योकी हमने आपको बताया की लोग जो थे वे मिठाईयो के दिवाने थे । तो जो लालूयादव था वह मिठाई बनानी शहर से सिख कर आ गया और फिर अचानक से अपने गाव में ही दुकान खोल ली और लोगो को मिठाईया बैचने का काम करने लगा था ।

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मिठाई की दुकान खोली ही थी की दुसरे ही दिन एक गाढी ​गाव में फिरने लगी थी और वह बोल रही थी की आपके अपने शहर में नही आपके अपने ही गाव में एक अनोखी दुकान है जो की आपके दिल में एक अलग ही स्थान रखती है ।

वहां पर आपको मिलेगी ऐसी मिठाई जो आपको जन्नत का अहसास देने के लिए काफी है । आपके ही गाव के लालूयादव ने शहर में पूरे 1 वर्ष तक अभयास करने के बाद में खोली है दूकान और यहां पर मिलेगी देश की अनोखी मिठाई । तो इस तरह से पुरे गाव में प्रचार किया जा रहा था ।

 और यह प्रचार करने का तरिका भी अनोखा था और जो भी कोई सुनता था उसके दिमाग में एक ही बात बैठती थी आखिर ऐसी कैसी मिठाई बनाता है जो की जननत का अहसास दे सकती है और यही कारण था की तुरन्त लोगो के बिच में बाते होने लगी की लालूप्रसाद  ने मिठाई की दुकान खोली है और आज पूरे गाव में इस बात का ढोल पीटा जा रहा है ।

और साथ ही लोग बात करने लगे की ढोल पीटने का अनोखा तरिका है कम से कम मिठाई एक बार खानी जरूरी चाहिए । और इसी तरह से तुरन्त लालूप्रसाद की दुकान के सामने  लोगो की भिड बढ गई थी ।

यह सब देख कर लालू प्रसाद का काफी मुनाफा हो गया और उसके दिमगा में एक आइडीया आया की अगर आस पास के गावो में भी ढोल पीटवा दिया जाए तो हो सकता है की मेरी दुकान का नाम और मिठाई का नाम हो जाए और लोगो को यहां पर आना पड़े ।

और यही सोच कर लालूप्रसाद ने खुब पैसा लगा कर आस पास के गाव में भी ढोल पीटवा दिया और इसका फायदा भी हुआ था । दरसल लालूप्रसाद से मिठाई लेने के लिए आस पास के गाव के लोग भी आने लगे थे ।

जिसके कारण से लालूप्रसाद के गाव के लोगो को यह लगा की मिठाई अच्छी बनाता है जिसके कारण से ही लोग दूसरे गाव से खरीदने के लिए आते है । क्योकी लोगो को पता नही था की वहां पर भी प्रचार किया गया था ।

मगर तीन चार दिन ही बिते थे की लोगो को पता चला की लालूप्रसाद ने तो आस पास के गाव में भी ढोल पीटवाया था और यही कारण है की आज उसकी दुकान खुब चलने लगी है ।

ढोल पीटना मुहावरे का अर्थ

इसके बाद में लालूप्रसाद की जो दुकान थी वह खुब चलने लगी थी और अच्छा मुनाफा हासिल किया गया था । और यह सब देख कर लोगो के मन में यह बैठ गया की अगर कुछ व्यापार शुरू किया जाता है तो पहले उसका प्रचार करना भी जरूरी है तभी यह चल सकता है । और इसके बाद में सभी ऐसा करने लगे थे और लोगो को फायदा भी हुआ था ।

मगर लालूप्रसाद की बात ही अलग है वह इन सभी से अलग था जो की कुछ अलग अपने पास रखता था और इसी अलग होने के कारण से वह एक अलग पहचान बना लेता है । और उसे काफी मुनाफा होता रहता है ।

तो इस तरह से दोस्तो कहानी में बताया गया है की ढोल पीटने का मतलब जो है वह प्रचार करना है । अगर कुछ पूछना हो तो कमेंट कर देना ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।