बारूद की पुड़िया होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

बारूद की पुड़िया होना मुहावरे का अर्थ barood ki pudiya hona muhavare ka arth – अत्यधिक खतरनाक होना ।

‌‌‌दोस्तो दिवाली के समय बनाए जाने वाले पटाखो में ‌‌‌जो धमाका करता है वह एक तरह का पाउडर होता है । जैसे बारूद कहा जाता है । और यह वही बारूद है जो की बड़े बड़े बम बनाने के लिए उपयोग होता है और अत्यधिक तबाही ला सकता है। ‌‌‌इस कारण से कहा जा सकता है की बारूद काफी अधिक खतरनाक होता है । और इससे भी अधिक खतरनाक तो एक स्थान पर बहुत अधिक मात्रा में बारूद का होना होता है ।

क्योकी वह बड़ा विस्फोट पैदा कर सकता है । ‌‌‌और इसी तरह से बारूद एक साथ अधिक मात्रा में होता है उसे बारूद की पुड़िया कहा जाता है । जो की अत्यधिक खतरनाक होगी । और इस तरह से जहां पर अत्यधिक खतरानाक होने की बात होती है वही पर बारूद की पुड़िया होना कहा जाता है ।

बारूद की पुड़िया होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

बारूद की पुड़िया होना ‌‌‌मुहावरे का वाक्य में प्रयोग

  • तुमने राम से झगड़ा कर कर अच्छा नही किया क्योकी वह बारूद की पुड़िया है ।
  • तुम्हारे चंद पैसो के लिए मैं धनपत से झगड़ा नही कर सकता हूं क्योकी वे बारूद की पुड़िया है ।
  • ‌‌‌अकेली लड़की को देख कर गुंडो ने उसे छेड़ना चाहा मगर वह बारूद की पड़िया थी जिसके कारण से गुंडो को खुब मार पड़ी ।
  • जैसे ही दुश्मन ‌‌‌ने देश के अंदर प्रवेश किया तो भारतिय सेनिको ने बारूद की पुड़िया ‌‌‌बन कर उनका खात्मा कर दिया ।
  • ‌‌‌अपने देश पर हमला होते देख कर फोजी भाई बारूद की पुड़िया बन गए ।
  • तुमने एक फोजी के साथ अन्याय किया है वह बारूद की पुड़िया है तुम्हे नष्ट कर कर ही मानेगा ।

‌‌‌बारूद की पुड़िया मुहावरे पर कहानी

प्राचीन समय की बात है किसी नगर में एक राजा हुआ करता था । जियके घर में उसकी दो रानिया थी । इसके अलावा बाकी राजा के सेवक थे जो की अपने राज्य के लिए राजा के पास काम करते थे । राजा बड़ा नेक आदमी था जिसके कारण से किसी को भी वह सेवक नही समझता था । बल्की राजा ‌‌‌कहता की आप जो करते हो वह आपका कर्तव्य है और मैं जो राज्य को चला रहा हूं यह मैरा कर्तव्य है ।

इसके साथ ही राजा प्रजा की हर तरह से साहयता करता था । जिसके कारण से प्रजा भी काफी खुश थी और राजा के सेवक भी काफी खुश थे । सभी को लगता की राजा एक देवता की तरह उनकी पूरी सहायता कर रहे है । मगर राजा अपने ‌‌‌आपको राजा नही कहता था बल्की कहता की मैं जन्ता का सेवक हूं जो की इस जन्म में राजा के पद पर बैठ कर जन्ता की हिफाजत करने के लिए आया हूं उनकी सेवा करने के लिए आया हूं ।

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इस तरह से राजा की बातो को सुन कर सभी को काफी अच्छा लगता था । कोई नही था जो की राजा के खिलाफ था । ‌‌‌मगर जन्ता राजा से एक प्रशन पूछती की महाराजा आपके बाद में इस राज्य को कोन चलाएगा । यह सुन कर राजा के पास किसी तरह का जबाब नही था । क्योकी उसके घर में किसी पुत्र ने अभी तक जन्म नही लिया था । मगर जब राजा ने अपने ईश्वर से काफी अधिक प्राथना की तो ईश्वर ने सुन लिया और राजा की बड़ी रानी के ‌‌‌गर्भ से किसी बच्चे का जन्म हुआ था । जो की पुत्र था ।

इस खबर ने राजा के चेहरे पर काफी अधिक खुशी ला दी । साथ ही जन्ता भी यह शुभ समाचार सुन कर काफी अधिक खुश हो गई थी। राजा ने अपने बेटे का नाम ‌‌‌बलवंत रखा था । मगर समय के साथ सब बदलता जा रहा था । क्योकी जैसे जैसे राजा का बेटा बड़ा (‌‌‌बलवंत) होता तो राजा देखता की ‌‌‌बलवंत ईश्वर भग्ति काफी अधिक करता ‌‌‌है ।

और रही बात युद्ध कला की तो ‌‌‌बलवंत नही चाहता था की वह युद्ध कला सिखे । मगर राजा होने के नाते राजा ने अपने बेटे ‌‌‌बलवंत को युद्ध कला सिखाई । और ‌‌‌बलवंत को काफी अच्छा योद्धा बना दिया था । जब राजा का बेटा 21 वर्षों का हुआ तो

‌‌‌‌‌‌बलवंत पूरी तरह से बदल गया था । क्योकी वह एक साधू के भैष में रहने लगा था । वह एक राजा की तरह जीवन न गुजातरे हुए एक साधू की तरह रहना पसंद करता । मगर तभी एक रात अचानक राजा को तेज दर्द आया । जिसके कारण से राजा की मोत हो गई ‌‌‌यह देख कर राजा ‌‌‌का बेटा ‌‌‌बलवंत काफी अधिक दूखी हो गया था ।

मगर ‌‌‌अगले ही दिन ‌‌‌बलवंत ने मान लिया की यह सब ईश्वर की कृपा है  जिसके कारण से वह अपने पिता की मोत का दूख नही मनाता था । बल्की वह इसी तरह से अपना जीवन गुजारने लगा । जब राजा को मरे हुए 1 महिना बित गया तो जंता महारानी से कहने लगी की युवराज को राजा ‌‌‌बना दे । उनका राज तीलक कर दे ।

ऐसा कहने पर महारानी ने युवराज को राजा बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी । और ‌‌‌बलवंत को किसी तरह से समझा कर राजा बना दिया । मगर ‌‌‌बलवंत एक साधू की तरह रहता था । जिसके कारण से वह अपने राज्य की और ध्यान नही दे रहा था । यह देख कर ‌‌‌जन्ता काफी दुखी थी । क्योकी उनको लग रहा था की राजा की तरह ‌‌‌बलवंत नही है।

मगर महारानी ने यह देख कर अपने बेटे ‌‌‌बलवंत को समझाया और राज्य चलाने का आदेश दिया। जिसके कारण से ‌‌‌बलवंत को भी लगा की यह सही है मुझे राज्य को चलाना होगा । ‌‌‌और यह सोच कर ‌‌‌बलवंत धिरे धिरे अपने पिता की तरह बनता जा रहा था । मगर सेवको को यह यकिन नही था की राजा ‌‌‌बलवंत की भुजाओ में बल है क्या ।

क्या वे किसी युद्ध को जीत सकते है। मगर ‌‌‌बलवंत को यह मालूम था की राजा के जीवन में युद्ध तो होगा ही और इसी सोच के साथ वह अंदर ही अंदर अपनी युद्ध कला को बेहतर ‌‌‌बनाने में लगा रहा था । इस तरह से ‌‌‌बलवंत को राजा बने हुए 1 वर्ष 3 महिने बित गए थे । मगर अभी भी वह एक राजा की तरह न रह कर एक साधू की तरह रहता था ।

तो जंता को लगता की एक साधू हमारी हिफाजत क्या कर सकता है । मगर जैसे ही लोगो में यह सोच पनपी तभी एक दिन राजा ‌‌‌बलवंत के राज्य पर हमला हो गया । तब राजा ‌‌‌‌‌‌बलवंत ने शत्रुओ को रोकने के लिए अपनी आधी सेना के साथ ही चले गए । यह देख कर बाकी सेना या सेवको को लगा की राजा को तो पता ही नही की कैसे युद्ध होता है ।

मगर राजा ‌‌‌बलवंत काफी बाहादूर था । जिसके कारण से उसने पल भर में शत्रुओ को मार ‌‌‌भगाया । यह देख कर सभी चोक गए थे । ‌‌‌क्योकी ‌‌‌बलवंत ने अकेले ही अनेक शत्रुओ को मोत के घाट उतार दिया । इस युद्ध के कारण से लोगो को यह तो मालूम चला की राजा ‌‌‌बलवंत को युद्ध करना आता है । मगर साधू की तरह रहने के कारण से कोई भी राजा ‌‌‌बलवंत से डरता नही था ।

और कमजोर समझ कर हर कोई हमला कर देता था । और इसी तरह से दो महिने के बाद में फिर ‌‌‌से राजा ‌‌‌बलवंत के राज्य पर हमला हुआ । तो उसने पिछली बार की तरह शत्रुओ को कुछ ही समय में मार भगाया । यह देख कर शत्रु कहने लगे की राजा ‌‌‌बलवंत तो बारूद की पुड़िया है ।

‌‌‌जब बार बार शत्रु इसी तरह से राजा ‌‌‌बलवंत से हार कर भागने लगे तो शत्रुओ को ही नही बल्की राजा की प्रजा और सेना को भी पता चल गया की राजा ‌‌‌बलवंत बारूद की पुड़िया है । जो भी इनसे युद्ध करता है वह अच्छी हार हासिल करता है । ‌‌‌

‌‌‌बारूद की पुड़िया मुहावरे पर कहानी

इस तरह से फिर जब भी राजा ‌‌‌बलवंत से कोई युद्ध करने के लिए जाता तो यही बात होती की उससे युद्ध करना बारूद की पुड़िया का सामना करना होगा । इस तरह से फिर राजा ‌‌‌बलवंत से हर कोई डरने लगे थे । और फिर राजा अपने उसी भेष में राजा का कार्यालय चलाते रहे ।

‌‌‌बारूद की पुड़िया मुहावरे पर निबंध

साथियो बारूद के बारे में आज हर कोई जानता होगा । क्योकी यह छोटे से लेकर बड़े धमाको में उपयोग होता है । जैसे हम दिवाली के समय जीन पटाखो का उपयोग करते है उनमें भी बारूद होता है । और इसी कारण से पटाखो से धमाका होता है । ‌‌‌यह बारूद जहां पर बनाया जाता है वहां पर इसको इकट्ठा करने के लिए किसी थेली में बद करते है जिसे बारूद की पुड़िया कहा जाता है ।

अधिक मात्रा में बारूद होना हानिकारक हो सकता है। जिसके कारण से इससे सावधानी रखी जाती है। मगर जब इससे सावधानी नही रखी जाती है तो यह काफी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है ‌‌‌और बहुत बड़ा नुकसान तक हो सकता है । ‌‌‌

इसी कारण बारूद को खुले आम नही बेच सकते है । मगर यह एक तरह का मुहावरा है जिसका उपयोग दैनिक जीवन में होता है । जिसका मतलब होता है अत्यधिक खतरनाक होना ।

और मनुष्य जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक खतरनाक होता है उसके लिए इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है ।   ‌‌‌जैसे एक पहलावान से एक कमजोर व्यक्ति का लड़ना कमजोर व्यक्ति के लिए अत्यधिक खतरनाक साबित हो सकता है । और इसी कारण से इसे बारूद की पुड़िया कहा जाता है ।

‌‌‌इस तरह से मैं आसा कर सकता हूं की आपको मुहावरा पूरी तरह से समझ में आ गया होगा ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।