बलि का बकरा मुहावरे का अर्थ और वाक्य व कहानी

बलि का बकरा मुहावरे का अर्थ bali ka bakra muhavare ka arth – किसी दोषी व्यक्ति को बचाने के लिए निर्दोष या कम दोष वाले व्यक्ति को दोषी ठहराना।

दोस्तो अनेक धर्मो में अपने ईश्वर को खुश करने के लिए बकरे की बली दी जाती है। इसके अलावा लोग अपने दोष को कम करने के लिए भी ‌‌‌अपने ईश्वर के नाम पर बकरे को मारते है । इस तरह से बकरे को मारने को बकरी की बली देना कहा जाता है ।

क्योकी अपने दोष या दूखो को कम  करने के लिए ही बकरे की बली दी जाती है तो यह किसी दोषी को बचाने के लिए निर्दोष या कम दोष वाले व्यक्ति पर दोष लगाना ही होता है । ‌‌‌और वही बकरे की बली देना दोनो एक समान हो जाते है । और यही कारण है की जहा पर किसी दोषी व्यक्ति को बचाने के लिए निर्दोष या कम दोष वाले व्यक्ति को दोषी ठहराना की बात होती है वही पर बली का बकरा बनाना मुहावरे का प्रयोग होता है ।

बलि का बकरा मुहावरे का अर्थ और वाक्य व कहानी

बलि का बकरा ‌‌‌मुहावरे का वाक्य में प्रयोग

  • किसन जब चोरी करते हुए पकड़ा गया तो वह अफसरो को गलत बता कर ‌‌‌अपने मित्र को बलि का बकरा बनाने लगा ।
  • जब देश में आतकवादियो का हमला हुआ तो सभी देश के सनिको को गलत बाता कर बलि का बकरा बनाने लगे ।
  • जुर्म तुमने किया है और बलि का बकरा मुझे बना रहे हो यह सही नही है ।
  • रामलाल को बलि का ‌‌‌बकरा बनाना आसानी नही है।
  • नेताजी के घर में चोरी हो गई तो नेताजी ने चोर को पकड़ने के लिए पुलिस पर काफी दबाव बना दिया जिसके कारण से पुलिस ने महेश को बलि का बकरा बना दिया और नेताजी के सामने खड़ा कर दिया ।
  • ‌‌‌जब पुलिस से मुजरिम नही पकड़ा गया तो छोटे मोटे चोर को पकड़ कर बलि का बकरा बना दिया ।
  • ‌‌‌जुर्म आपके बेटे ने किया है और उसे बचाने के लिए आप मेरे भाई को बलि का बकरा बना रहे हो मैं ऐसा होने नही दूगा ।

‌‌‌बलि का बकरा मुहावरे पर कहानी

‌‌‌प्राचीन समय की बात है किसी नगर में एक राजा रहा करता था । राजा जब भी न्याय करता था तो वह इस तरह का न्याय करता की सभी को पसंद आ जाता था । और यही कारण था की राजा के न्याय पर कोई भी उंगली नही उठाता था । राजा के घर में उसका एक पुत्र था जिसका नाम राजवीर था ।

राजा अपने पुत्र राजवीर से काफी अधिक ‌‌‌प्रेम करता था । भला कोन पिता अपने बेटे से प्यार नही करता है तो राजा क्यो नही करेगा । ऐसा प्रशन पूछने वाले बहुत लोग होगे ।मगर राजा का अपने बेटे के प्रति इस तरह का प्रेम था की वह अपने न्याय करने के जो नियम बना रखे थे वह भी भूल जाया करता था ।

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और इसी तरह से राजा के साथ एक बार हुआ था । ‌‌‌ दरसल एक बार की बात है राजवीर अपने पास के ही गाव में गया हुआ था । जहां पर वह अपने गुरूओ के पास शिक्षा लेता था । वह एक ऐसा गाव था जहां पर केवल गुरू ही रहते थे । इसके अलावा गुरूओ के शिष्य रहते थे जो की ज्ञान लेते रहते थे । 

राजवीर ने भी वही से शिक्षा ली थी और वह भी अपने गुरू से मुलाकात के लिए ‌‌‌गया था । प्राचिन काल में जो गुरू हुआ करते थे वे अपने सभी शिष्यो को समान समझते थे और न ही किसी को बड़ा मानते न किसी को छोटा मानते थे । मगर राजवीर एक राजा का बेटा था जिसे इस बात पर काफी अधिक घमंड हो रहा था । ‌‌‌

और इसी घमंड के कारण से वह उस गाव में किसी लड़के से झगड़ा करने लगा और गलती से उसका चाकू उस लड़के के पेट में जा लगा । दरसल हुआ यह था की जीस समय राजवीर उस गाव में पहुंचा तभी उसका एक साथी जिसने उसके साथ ही शिक्षा ग्रहण की थी वहां पर पहुंचा था । ‌‌‌जिसका नाम ‌‌‌कुलदिप था ।

वह दोनो एक दूसरे के केवल गुरू के सामने ही साथी थे । ‌‌‌जब गुरू सामने नही होता था तो राजवीर अपने राजा के बेटे होने का अहसास कुलदिप को दिलाना चाहता था । और कुलदिप कहता की यह गुरू का स्थान है यहां पर कोई राजा और कोई धोबी नही है  । क्योकी कुलदिप एक धोबी का बेटा था । और अपने साथ जब राजवीर उसे देखता तो उसे काफी अधिक क्रोध आता था ।

क्योकी राजवीर ‌‌‌सोचता की उसे एक धोबी के साथ भौजन और शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है । इसी बात को लेकर अक्षर वे दोनो झगडते रहते थे । और जब राजवीर और कुलदिप वापस उसी गाव यानि अपने गुरू के पास एक ही समय में आए तो एक दूसरे के साथ झगड़ने लगे थे । क्योकी दोनो की अब शिक्षा पूरी हो गई थी ।

जिसके कारण से उन्होने गुरू ‌‌‌के बारे में नही सोचा और एक दूसरे से झगड़ने लगे । और इसी झगड़े के कारण से कुलदिप के पेट में एक चाकू लग गया था जो की राजवीर का था ।  जिसके कारण से कुलदिप को काफी कष्ट सहना पड़ा । यह सब देख कर तुरन्त राजवीर वहां से भाग कर अपने राज्य चला गया । मगर कुलदिप वहां पर ही रहा था ।

तभी एक गुरू ने उसे ‌‌‌इस हालत में देख लिया था । जिसके कारण से उस गुरू ने उसे उठा कर अपने आश्रम लेकर चला गया और वहां लेजाकर उसके घाव पर जडी बुंटी लगवाई । जिसके कारण से दो दिनो के बाद में कुलदिप को होस आया था । बडी मुश्किल से उसकी जान बंच पाई थी । ‌‌‌

तब उस गुरू ने कुलदिप को पूछा की तुम कोन हो और तुम्हारे साथ यह कैसे हो गया है । तक कुलदिप ने राजवीर और अपने बारे में सब कुछ बता दिया । जिसके कारण से उस गुरू ने कुलदिप और राजवीर के गुरू को अपने पास बुलाया और उसे भी कुलदिप की इस हालत के बारे में बताया था ।

वह बड़ा गुरू था जो की वहां पर हर तरह ‌‌‌का फैसला लेता था । जिसके कारण से कुलदिप की यह हालत देख कर वह न्याय करने की सोची और तभी राजा को इस बारे में सुचना दी और अपने पास बुलाया । राजा को अभी तक मालूम नही था की उसके बेटे ने क्या कर दिया है । जिसके कारण से राजा अराम से बड़े गुरू के पास चला गया ।

वहा जाने के बाद में उसे अपने बेटे के ‌‌‌द्वारा की गई करतुतो के बारे में पता चला । तब राजा को यह तो पता चल गया था की उसके बेटे ने यह कर दिया होगा । मरग फिर भी वह बड़े गुरू के सामने कहने लगा की महाराज यह मेरा बेटा नही कर सकता है । तब बड़े गुरू ने उसे बुलाने को कहा । क्योकी वहां पर बड़ा गुरू ही राजा था ।

‌‌‌इस कारण सेराजा को अपने बेटे को बुलाना पड़ा ‌‌‌। जब राजवीर गुरूओ के पास आया तो उसे कुलदिप की इस हालत के बारे में पूछा गया । तब उसने अपने पास खड़े एक सेनिक का नाम लिया और कहा की गुरूदेव इसने यह सब किया है । क्योकी कुलदिप मेरे साथ झगड़ा कर रहा था मुझ पर हमला करने की कोशिश कर रहा था । तो सेनिक ने मेरे बचाव के लिए यह सब कर दिया है ।

इस ‌‌‌तरह से कह कर राजवीर अपने दोष को दूर करने लगा और अपने सेनिक को दोषी बताने लगा । तब गुरूओ ने सेनिक से पूछा की यह तुमने किया है क्या । तब सेनिक ने इस बारे में हां भर दी थी । मगर तभी कुलदिप ने कहा की गुरूदेव यह इस सेनिक ने नही किया है बल्की राजा जी का ‌‌‌पुत्र राजवीर ने ही यह सब किया है ।

यह ‌‌‌सुन कर बड़े गुरू को कुछ समझ नही आया । तब उसने अगले दिन इस बात का न्याय राजा के उपर छोड दिया और राजा से कहा की राजा जी आपको एक सच्चा न्याय करना है अगर आपका बेटा दोषी है तो उसे उचित सजा देनी है । इस तरह से अगले दिन गाव के बिचो बिच राजा और बड़ा गुरू और अन्य गुरू बैठे थे । और दोनो तरफ ‌‌‌राजीवर और कुलदिप खड़ा था ।

तब राजा ने गुरू से कहा की महाराज मैंने कल से ही इस बारे में बहुत कुछ पता लगाया है । और मुझे पता चला है की मेरा बेटा जो कह रहा है वह सत्य है । क्योकी कुलदिप राजवीर पर हमला कर रहा था और बचाव में सेनिक ने यह सब कर दिया । तभी सेनिक ने कहा की हां गुरूदेव यह सत्य है । ‌‌‌

‌‌‌बलि का बकरा मुहावरे पर कहानी

तभी कुलदिप ने कहा की क्यो बिचारे सेनिक को बली का बकरा बना रहे हो । आपके बेटे ने यह सब किया है । तब गुरू ने पूछा की कुलदिप तुम्हारे पास इस बात का क्या सबुत है की यह सब राजवीर ने किया है । तभी कुलदिप ने कहा की नही महाराज ।

तभी एक आवाज आई और उसने यह कहा की राजवीर ने ही कुलदिप को मारा है ‌‌‌। यह आवाज सुन कर सभी आवाज की तरफ देखने लगे थे । तब सभी ने देखा की एक छोटा शिष्य यह सब बोल रहा है । तब छोटे शिष्य को गुरूओ ने अपने पास बुलाया और पूरी बात पूछी तो उसने सारी घटना विश्तार से बता दी । जो की कुलदिप के द्वारा बताई गई बात से हुब हू मिल रही थी। तब गुरूओ को पता चल गया की यह बस ‌‌‌राजवीर ने ही किया है ।

तब गुरूओ ने राजा से कहा की राजा अब न्याय कर तुम क्या न्याय करते हो । तुमने तो अपनी बेटे की गलती के लिए बलि का बकरा सेनिक को बनाना चाहा था मगर एक छोटे से शिष्य के कारण से तुम्हारा यह झूठ पकड़ा गया ।

तब राजा ने कहा की गुरूदेव यह मेरा बेटा है एक राजा का बेटा इसे सजा ‌‌‌नही मिल सकती । तब बड़ा गुरू बोला और कहा की मुर्ख राजा तुम्हे यह पता नही की यह गाव किसी भी राजा के अधिन नही है । बल्की यहा पर सभी राजा के बेटे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते है । और सभी मेरी बात मानते है । अगर तुमने नही मानी तो मैं जो फैसला करूगा वह बड़ा कठिन होगा । ‌‌‌

मगर राजा ने कहा की नही गुरूदेव एक राजा के बेटे को ही सजा यह नही हो सकता है । यह कहने पर गुरूदेव ने राजा को अपने राज्य लोटने को कहा और कहा की तुम्हारे बेटे के द्वारा किए गए कार्यों के कारण से इसे एक वर्ष कुलदिप के निचे और उसका सब काम करना होगा ।

‌‌‌ऐसा कहने पर कुलदिप ने कहा की नही गुरूदेव आप इसे यह सजा न दे । यह मेरा काफी समय पहले से दुश्मन रहा है जो की अच्छा नही है । तो मैं चाहता हूं की आज से हम दूश्मनी भूला कर एक नया जीवन जीए । और इसका एक वर्ष इसी गाव में आपके शिष्य बन कर फिर से गुजारे ।

कुलदिप की यह बात सुन कर गुरूदेव ने कहा की ‌‌‌राजवीर तुमने जीसके साथ बुरा किया उसी ने तुम्हे क्षमा किया है और तुम तो अपनी गलती के लिए अपने सनिक को बलि का बकरा बना रहे थे ।

तब राजवीर ने गुरू से माफी मागी और कहा की आज से एक वर्ष तक हम आपके शिष्य बन कर फिर से अपना जीवन गुजारेगे । इस तरह से एक वर्ष तक दोनो ने साथ काम किया और फिर दोनो ‌‌‌मित्र बन कर वहां से वापस गए थे । इस तरह से राजा के बेटे राजवीर और धोबी कुलदिप का झगड़ा हमेशा के लिए मिट गया और दोनो मित्र बन गए ।

बलि का बकरा मुहावरे पर निंबध

दोस्तो बकरे की बलि देना एक धार्मीक महत्व समझा जाता है । जिसमें अनेक धर्मों में बकरे की बलि दी जाती है । और इस बारे में आपको आसानी से पता है ।

मगर प्राचीन समय में बलि उस व्यक्ति को दी जाती थी जिसने किसी तरह का जुर्म किया हो । मगर बकरे ने किसी तरह का जुर्म ‌‌‌नही किया होता फिर भी इसे बलि क्यो दी जाती है ।

बलि का बकरा मुहावरे पर निंबध

दरसल मानव वर्तमान में अपने किसी दोष को मिटाने के लिए बकरे की बलि देता है । और इस बारे में मैं नही बल्की आपको भी पता है । इसके अलावा किसी तरह की इच्छा पूरी होने पर भी बकरे की बलि दी जा सकती है ।

‌‌‌दरसल किसी दोषी व्यक्ति को बचाने के लिए निर्दोष या कम दोष वाले व्यक्ति को दोषी ठहराना यह बकरे पर पूरी तरह से निर्भर करती है । क्योकी बकरा किसी तरह का दोष नही करता फिर भी उसे दोषी ठहराया जाता है । जिसके कारण से इस मुहावरे का अर्थ यही हो जाता है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।