दुहाई देना मुहावरे का अर्थ duhai dena muhavare ka arth — संकट आने पर रक्षा के लिये पुकारना ।
दोस्तो जब मानव के जीवन में किसी तरह कार संकट आ जाता है तो उस संकट से बचने का वह काफी प्रयास करता है । मगर जब संकट से नही बचा जाता है तो इस संकट से रक्षा करने केलिए किसी दूसरे को बुलाया जाता है। और इसके लिए चिल्लाकर की याचना की जाती है की मुझे इस संकट से बचा लो ।
तो इस तरह से संकट आने पर रक्षा के लिए पुकारा जाता है। क्योकी रक्षा करने के पुकारने के लिए चिल्लाकर की जाने वाली याचना के समान ही होती है और चिल्लाकर की जानेवाली याचना को दुहाई के नाम से जाना जाता है । तो इस तरह से दुहाई देना मुहावरे का अर्थ संकट आने पर रक्षा के लिये पुकारना होता है और वही पर इसका वाक्य में प्रयोग होगा जहां पर संकट आने पर रक्षा के लिये पुकारने की बात होती है ।
दुहाई देना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग || duhai dena use of idioms in sentences in Hindi
1. जब अपराधी को सरे आम पुलिसकर्मी गोली मारने लगा तो अपराधी संविधान में लिखे गए कानून की दुहाई देने लगा ।
2. किशोर हमेशा अपराध का साथ देता रहा मगर अदालत में उसे मोत की सजा सुनाई गई तो किशोर गांधी जी की बातो की दुहाई देने लगा ।
3. राहुल हमेशा अपने मित्र सुरज को हानि पहुंचाते आ रहा था मगर जब आज सुरज राहुल को नुकसान पहुंचाने लगा तो राम नाम की दुहाई देने लगा ।
4. राजा ने सुरजमल को पहाड़ी से गिरा कर मार डालने की सजा दी, तो सुरजमल सेनिको को अपनी जान बचा लेने को कहा तब सेनिको ने कहा की हम बचाने वाले कोन है राजा सहाब की दुहाई दो वही बचाएगे ।
5. राहुल हमेशा पुलिस को निकमा कहता रहा मगर जब उसे गुंडे पकड कर ले जाने लगे तो वही पुलिस के नाम की दुहाई देने लगा ।
6. संतवीर कभी भी भगवान को नही मानता था मगर जब संतवीर के सामने शेर आ गया तो भगवान नाम की दुहाई देने लगा ।
दुहाई देना मुहावरे पर कहानी || duhai dena story on idiom in Hindi
दोस्तो बहुत समय पहले की बात है एक राजा हुआ करता था जिसका नाम राजा दुष्यंत था । राजा दुष्यंत जो था वह हमेशा नेक दिल राजा रहा करता था और हमेशा लोगो के लिए कुछ अच्छा करने की सोच रखता था ।
हालाकी जब राजा दुष्यंत को पता चलता की कोई है जो की लोगो कोनुकसान पहुंचाने का काम कर रहा है या लोगो का बुरा करता जा रहा है तो इससे राजा जो था वह हमेशा ऐसे लोगो को अच्छी सजा देता था ।
मगर कहते है की गुन्हेगारो को चाहे कितनी भी सजा क्यो न दी जाए इतनी आसानी से गुन्हेगारो का सिर कम नही होता है । और इसी तरह से एक बार की बात है । राजा दुष्यंत जो था वह तो अपना काम करता था ।
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मगर पीछे पीछे उसका ही वफादार सेनिक था जिसका नाम अविचंद्र था । वह हमेशा लोगो को नुकसान पहुंचाने वाला काम ही करता था । राजा जो भी काम करने को कहता था वह अविचंद्र को ही पूरा करना होता था ।
क्योकी सभी सेनिको में उसकी एक अलग ही टीम थी और उसका मुख्यिा जो था वह अविचंद्र था । आपको बात दे की अविचंद्र जो था वह युद्ध भुमी में न जाकर लोगो के लिए जो भी काम होता था उसे पूरा करता था ।
तो इसी तरह से राजा जो भी कुछ काम देता था वह अविचंद्र को मिलता था । कभी धन लोगो के अंदर बाटना होता था तो कभी अन्न लोगो को देना होता था । मगर अविचंद्र जो था वह उसक कुछ ही हिस्सा लोगो को देता था और बाकी सभी अपने पास रख लेता था ।
और राजा जो था उसे इस बारे में कुछ पता नही था । जिसके कारण से राजा दुष्यंत के यहां ऐसा ही काफी समय तक चलता रहा था ।
मगर कहते है की बुरा या बुराई कितने दिनो तक रुक पाई है एक न एक दिन तो सच सामने आ ही जाता है । और इसी तरह से राजा दुष्यंत को पता लग लगया की जो उसका सेनिक है जो कीअविचंद्र है वह उसे और उसकी प्रजा को काफी बड़ा धोका देने का काम कर रहा है ।
हालाकी राजा दुष्यंत को पता लगने के बाद भी सच अपनी आंखो से जानना चाहता था जिसके कारण से एक दिन राजा दुष्यंत ने अविचंद्र को अपने पास बुलाया और कहा की हमारे बेटे का जन्म दिन आने वाला है इस कारण से पुरी प्रजा को धन बाट दिया जाए और सभ से कहा जाए की बेटे का जिस समय जन्म हो उस समय पूरे राज्य में खुशिया होनी चाहिए ।
और यह कह कर अविचंद्र को धन की एक पोटली दे कर प्रजा के पास जाने को कहा । मगर अविचंद्र जो था वह महल से बाहर निकल कर अपने सेनिको के साथ अपने घर जाता है और पीछे से उस पोटली को आधी घर में खाली कर कर बाकी आधी प्रजा में बाट देता है ।
यह सब कुछ राजा दुष्यंत जो था वह देखता जा रहा था । इस कारण से राजा को काफी अधिक क्रोध आ रहा था । मगर सब कुछ सच अपनी आंखो से देखने के बाद में राजा ने भी सोचा की अविचंद्र को सजा तो मिलेगी ही मगर उसे अहसास होना चाहिए की राजा दुष्यंत से गदारी करने का क्या नतीजा होता है।
इस कारण से राजा दुष्यंत ने अपने मंत्री को बुलाया और सब कुछ समझा कर अविचंद्र को बंदी बना लिया गया और प्रजा के सामने लेकर जाया गया । वहां पर अविचंद्र को बतारया की तुमने प्रजा का बहुत सारा धन खाया है इस कारण से राजा तुम्हे पहाड़ से फैंक कर मार देने हुकम दिया है ।
और इसके बाद में पास के ही पहाड़ पर अविचंद्र को लेकर जाया गया । और इसके बाद मे जब अविचंद्र को पता चला की अब उसकी मोत पक्की है तो वह सेनिको से कहा की मेरी जान बचा लो । मैं मरना नही चाहता हूं ।
यह सुन कर भी सेनिक नही माने और उसे फैकने ही वाले थे की अविचंद्र ने सेनिको को भगवान की दुहाई दी और कहा की मेरी जान बचा लो । तब सेनिको ने कहा की जब तुम बुरा कर रहे थे तब तुम भगवान के बारे में नही सोचे की वह देख रहा है । और अब भगवान की दुहाई दे रहे हो ।
और इस तरह से कह कर फिर से फैकनेलगे तो अविचंद्र चिलाते हुए बचाओ बचाओ कहने लगा । मगर तब सेनिको ने कहा की इस तरह से करने से कुछ नही होगा तुम्हे बचाने वाले न तो हम है और न ही कोई और तुम तो राजा दुष्यंत की दुहाई दो वही तुम्हे बचा सकते है ।
क्योकी मारने वाले भी वही बचाने वाले भी वही । और इस तरह से कहने पर अविचंद्र ने कहा की मेरी आखिरी इंच्छा है और में राजा सहाब से मिलना चाहता हूं । सेनिको ने राजा साहब को बुलाया ।
तब अविचंद्र ने राजा से माफी मागी और कहा की मेरी जान बचा लो आप जैसा कहेगे वैसे ही मैं कर दूगा । और यह सुन कर राजा ने पहले तो मना किया मगर फिर कहा की ठिक है अपना जो भी है वह सब जंता के नाम कर दो और तुम्हारी जान बच जाएगी ।
मजबुरन अविचंद्र को अपना सब कुछ जंता को देना पड़ा और तब जाकर उसकी जान बच पाई थी। तब आखिर में राजा ने अविचंद्र को सजा के रूप में जंता के बिच में रहने की सजा दी ।
तो इस तरह से राजा दुष्यंत ने गुन्हेगार को सजा भी दी और लोगो के साथ न्याय भी हो गया ।
क्योकी कहानी में दुहाई देने की बात की गई है तो उसका मतलब है संकट आने पर रक्षा के लिये पुकारना ।
अगर कुछ पूछना है तो कमेंट कर दे ।
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