मन न लगना मुहावरे का अर्थ और वाक्य

मन लगना मुहावरे का अर्थ है man na lagana muhavare ka arth – किसी काम में जी लगना या जी लगना

दोस्तो जब व्यक्ति किसी काम को पूरी इच्छा के साथ करना चाहता है तो वह कठिन से कठिन काम को भी कर सकता है । मगर जब किसी काम को करने में इच्छा नही होती है यानि जीस काम को जबरदस्ती किया ‌‌‌जाता है तो इस तरह के कार्यो को करने में बहुत ही अधिक समय लग जाता है ।

इसका सबसे बडा कारण जी का न लगना होता है। यानि उस काम को करने में जी नही लगता है । इस तरह से जी न लगने को मन न लगना भी कहा जाता है और यही इस मुहावरे का अर्थ होता है ।

मन न लगना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग‌‌‌

  • श्याम पढाई में बहुत ही होशियार था मगर पता नही आजकल क्या हुआ है उसका पढाई में मन न लगता है ।
  • सरिता का जब से विवाह हुआ है तब से उसका पढाई में मन नही लगता है ।
  • धर्मवीर का पिता स्कुल का प्रधानाध्यापक है मगर धर्मवीर पढने का नाम ही नही ‌‌‌लेता है लगता है की पढाई मे उसका मन न लगता है ।
  • जब से महेश ‌‌‌का एक्सीडेंट हुआ है तब से घर पर पढाई नही करता है लगता है उसका पढाई में मन न लगता है ।
  • जयसिंह कठिन से कठिन काम को आसानी से कर सकता है मगर आज न जाने इसे क्या हो गया है जो इसका मन न लग रहा है ।
  • विक्रम के जैसा बलवान आस पास के गावों मे ढूंढने पर भी नही मिलता है मगर आज वह एक छोटे से पहलवान से कुस्ती मे‌‌‌ हार गया और पूछने पर बता रहा है की आज उसका कुस्ती में मन न लग रहा था ।
  • ‌‌‌कंचन को कितनी अच्छी नोकरी मिली थी मगर वह उसे छोड कर आ गई और कह रही है उसका नोकरी में मन नही लग रहा था ।

‌‌‌मन न लगना मुहावरे पर कहानी (साधु का अस्थिर ‌‌‌मन)

दोस्तो आज के बहुत समय पहले की बात है जब गावों मे गुरूकुल का समय होता था और विधार्थी ज्ञान हासिल करने के लिए गुरूओ के पास जाता और कई वर्षों तक वही रह कर अध्ययन करता था । उस समय का एक बहुत ही शांत और ज्ञानी साधू था वह जो भी कुछ लोगो को कहता वह शब्द ‌‌‌बडा गहरा होता था यानि उस शब्द का अर्थ बहुत ही महत्व का होता था ।

साधू की इसी आदद के कारण से कोई भी उनकी बातो को समझने में सक्षम नही रहता था । मगर साधू के कुछ चेले हुआ करते थे जो साधू के जाने के बाद में उनके द्वारा कही गई बातो को लोगो को समझाते थे । जहां साधू एक शब्द बोलता उसका अर्थ 100 ज्ञानी मे ‌‌‌निकल सकता था ।

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जिसके कारण से साधू का हर एक शब्द बडा महत्व का था । इसके साथ ही साधू अपनी इसी कला को शुभ कार्यो में ज्ञान बाटने में किया करता था । जिसके कारण से साधू तरह तरह के गावों में जाता और लोगो को ज्ञान देता रहता था । साधू कुस्ती के खेल का बडा शोकिन था जिसके कारण से वह जहां पर भी कुस्ती ‌‌‌के खेल को देखता वही बैठ जाता और अपने अन्य काम भूल जाता था ।

एक बार ऐसा ही कुछ साधू के साथ हुआ था । यानि एक बार साधू इसी तरह से भ्रमण करते हुए दूर किसी नगर मे जा पहुंचे वहां पर उसी दिन दिवाली का समय था । जिसके कारण से लोग बडा आनन्द ले रहे थे । साधू को आते देख कर गाव के लोगो को पता चल गया की ‌‌‌यही तो वही साधू है जो अपने ज्ञान की महिमा के कारण से दूर दूर तक फैला हुआ है ।

रात का समय था और उस गाव में प्रोग्राम भी होता था और गाव के बडे से बडे लोग उस कार्यक्रम में भाग लेते और इसी दिन को प्रभु राम के चरित्र के रूप में कुछ नाटक करते हुए देखते थे । साथ ही अपने अनमोल शब्दो को लोगो को देकर ‌‌‌ज्ञान बाटने का काम भी करते थे ।

वहां पर एक बहुत ही धनवान सेठ था जो अपने पैसो के कारण से बहुत से लोगो की मदद तक करता था जिसके कारण से इस कार्यक्रम का अध्यक्ष उसे ही बनाया जाता था । जब साधू के बारे में उस सेठ को पता चला तो सेठ ने साधू से आग्रह किया की वह भी इस कार्यक्रम मे अपने कुछ शब्द कहे । ‌‌‌तब साधू ने कहा की मैं इसी कारण से यहां आया हूं ।

कुछ पल के बाद में साधू को पता चला की ‌‌‌आज इसी गाव में बहुत से पहलवान कुस्त का मूकाबला करने वाले है । यह जान कर साधू का मन चंचल बार बार भटकने लगा था । तभी सेठ ने उसे याद दिलाया की आपको आज यहां पर कुछ कहना है । यह सुन कर साधू हैरान हो गया ‌‌‌क्योकी उसे मालूम था की अगर आज मैंने कुस्ती का मूकाबला देखे बगेर ही कुछ कहा तो मैं जो भी कहुगा वह आम शब्द होगे ।

तब साधू ने सेठ को मना कर दिया । यह देख कर सेठ को बडा बुरा लगा जिसके कारण से सेठ ने कहा की साधू बाबा आप तो अपनी ही बात को वापस ले रहे हो पहले तो आपने कहा था की आप यहां पर कुछ कहने के ‌‌‌लिए ही आए हो और आज आप यहां पर कुछ नही कहने की बात कर रहे हो । तब साधू ‌‌‌ने कहा की पास का कुस्ती का मुकाबला देख कर आता हूं फिर मैं यहां पर दो शब्द कह सकुगा ।

मगर सेठ ने कहा की नही बाबा आप ऐसा नही कर सकते क्योकी मैने इस गाव मे इस बारे मे ढिढोरा पीट दिया की आप कुछ कहने के लिए आए हो । यह सुन कर ‌‌‌साधू ने जन्ता की तरफ देखा तो भीड बहुत ही अधिक थी । यह देख कर साधू को भी लगा की अगर आज मैं यहां पर नही रहुआ और कुछ नही कहुगा तो मेरा ही नाम खराब होगा ।

मन न लगना मुहावरे का अर्थ और वाक्य

तब साधू ने बेवजह कह दिया की ठिक है सेठ जी आपकी बात मैं मान लेता हूं । मगर साधू अब मन ही मन सोच रहा था की कुस्ती का मूकाबला निकलता जा ‌‌‌रहा है और साधू बार बार ‌‌‌मंच से बाहर जाने के रास्ते की तरफ देख रहा था । जब सेठ ने यह देखा तो सेठ को कुछ समझ में नही आया तो उसने साधू से पूछ लिया की साधू बाबा आप बार बार इधर क्या देख रहे हो ।

तब साधू ने कहा की वहां कुस्ती का मूकाबला है और मैं यहां बैठा हूं । यह सुन कर सेठ को समझ में आ गया की ‌‌‌साधू का मन नही लग रहा है । कुछ समय के बाद में सेठ ने साधू को भाषण देने के लिए भेज दिया । मगर अभी भी साधू बाहर के रास्ते की तरफ देख रहा था । यह देख कर सेठ ने कहा की आप केवल दो लाईन ही कह दो और आपके शिष्य बाकी कुछ संभाल लेगे ।

साधू की इस हालत के बारे में शिष्यो को पता था जिसके कारण से शिष्य ‌‌‌समझ गए की इनके कुछ ही शब्दो को उन्हे बडे विश्तार से समझाना होगा । तब साधू ने अपना भाषण शुरू किया और लोगो को ज्ञान देना शुरू किया तो साधू ने एक शब्द बोला और बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ देखा । दूसरा शब्द बोला और बहार जाने वाले रास्ते की तरफ देखा ।

इस तरह से दो लाईनो को पूरा किया मगर लोगो ‌‌‌को कुछ समझ नही आया की साधू ने क्या कह दिया । तभी साधू वहां से जाने लगा तो लोगो ने आवाज लगा दी की महाराज जरा और ज्ञान दो । यह सुन कर बाकी सभी लोगो ने भी शोर करना शुरू किया तो मजबूरन साधू को वहां पर रूकना पडा ।

साधू ज्ञान देने लगा मगर उसका मन नही लग रहा था । जिसके कारण से कुछ समय के बाद में अपने ‌‌‌शिष्यो के हाथ में माईक थमा कर चला गया । यह देख कर जंता खडी हो गई और वह भी वहां से जाने लगे । तभी शिष्यो ने सभी को आवाज लगाई और कहा की जरा शांती से बैठो महाराज किसी काम से गए है वे कुछ समय के बाद आ जाएगे।

और इतना कह कर साधू के द्वारा कही गई बातो को विस्तार से बताने लगे । यह सब सेठ ने देखा तो ‌‌‌सेठ को समझ में आ गया की आखिर साधू को कुस्ती का मुकाबला कितना अधिक पसंद है और यह भी जान गए की अगर कभी कुस्ती का मुकाबला हो तो साधू अपना मन किसी भी काम में नही लगा पाते है।

मगर सेठ ने यह बात किसी को नही बताई बल्की अपने मन में ही रखी । बहुत समय बित जाने के बाद में साधू वापस आया और मंच पर बैठ ‌‌‌गया तभी साधू ने देखा की जन्ता बहुत ही कम रही है । यह देख कर साधू ने सेठ की तरफ देखा तो सेठ ने कहा की महाराज जैसे ही आप गए सभी चले गए । यह सुन कर साधू ने कहा की सेठजी पास जो कुस्ती का मुकाबला हो रहा था उसने मेरे मन को अस्थिर कर दिया था यानि मेरा ज्ञान देने में आज मन न लग रहा था ।

इस तरह से ‌‌‌फिर साधू वहां से अगले दिन चला गया । मगर उस गाव के लोगो को अभी भी पता नही चला की साधू आखिर गए कहा था । क्योकी साधू कुस्ती को देखने के लिए तो गए थे मगर दूर से ही देख रहे थे की किसी को पता चल चले की ज्ञान देने वाला साधू ज्ञान को छोड कर कुस्ती देखने के लिए आ गया है ।

इस तरह से मन का अस्थिर ‌‌‌होने पर भी साधू ने बुद्धि का उपयोग किया । इस घटना में सेठ के अलावा किसी को भी साधू के इस तरह से बरताव के बारे में पता न चला । इस तरह से आपको भी पता चल गया की किस कारण से साधू का मन न लग रहा था ।

‌‌‌मन न लगना मुहावरे पर कहानी (साधु का अस्थिर ‌‌‌मन)

मन न लगना मुहावरे पर निबंध

‌‌‌दोस्तो मनुष्य के दिल्ल को मन कहा जाता है और यह तो आपने सुना होगा की जीस काम में मन लगता है वह काम बडी आसानी से हो जाता है । इसी के विपरित मन न लगने पर होता है यानि जब मन नही लगता है तो छोटा सा काम कठिन लगने लग जाता है और वह हमे मुसीबत में भी धकेल सकता है ।

जिस तरह से चौर चोरी करता है तो ‌‌‌वह इस काम में अपना पुरा मन लग लेता है इसके बाद में ही चोरी जैसे काम को अंजाम देता है । मगर वही अगर चोर का चोरी करने में मन नही लगता है तो वह कुछ न कुछ ऐसी गलती कर देता है जो उसके लिए सही नही होती है और वह मुसीबत में पड जाता है ।

इस तरह से बार बार प्रयोग हो रहे मन न लगाना मुहावरे का मलतब जी न लगने ‌‌‌से होता है क्योकी जी लगने पर ही मन की तरह काम आसानी से हो जाते है । इसी तरह से उपर कहानी में समझाया गया की किस तरह से जब साधू का मन ज्ञान देने में नही लग रहा था तो वह उसे ‌‌‌छोड कर जाना चाहता था ।

और बार बार कोशिश करता मगर लोगो को की वजह से उसे रूकना पडता था । जिसके कारण से साधू का जी न लगने पर भी ज्ञान की बाते बतानी पडी । इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है की जब कोई बच्चा किसी अनजान जगह पर जाता है तो वह कई दिनो तक गुमसुम रहता है क्योकी वह जगह उसके लिए अंजान होने के कारण से वहां पर उसका मन नही लग रहा था और ऐसा कहते हुए मुहावरे का प्रयोग भी होता है । ‌‌‌इस तरह से मन न लगने का अर्थ जीन लगने से होता है ।

इस तरह से आप समझ गए होगे की इस मुहावरे का अर्थ क्या है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।