धावा बोलना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

धावा बोलना मुहावरे का अर्थ होता है dhava bolna muhavare ka arth- हमला करना ।

दोस्तो प्राचीन समय से चलता आ रहा है की जब भी किसी राजा महाराज पर दूसरे राजा महाराजा हमला कर देते थे तो कहा जाता था की उस राजा ने धावा बोल दिया । इस तरह से हमला करने पर धावा बोलने का प्रयोग होता था ।

‌‌‌ठीक उसी तरह से वर्तमान में होता है यानि जब किसी व्यक्ति पर कोई अन्य लोग हमला कर देते है तो उसे भी धावा बोलना कहा जाता है । अर्थात धवा बोलने का अर्थ हमला करना ही होता है ओर जहां पर हमला करने की बाती होती है वही इस मुहावरे का वाक्य में प्रयोग किया जाता है ।

धावा बोलना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

धावा बोलना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग (use in sentence)

  1. ‌‌‌महाराज अजय सिंह पर पास के ही राजा ने धावा बोल दिया ।
  • रामपूरा एक ऐसा गाव है जहा कुछ दिनो के अंतर से डाकू धावा बोलते ही रहते है।
  • जब से अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ है देशवासियो पर बडे धावे बोले जाते है ।
  • महाराज सुरजमल ने ऐसे राजा पर धावा बोल दिया जो बहुत ही बलशाली थे जिसके कारण से सुरजमल को ‌‌‌हार का सामना करना पडा ।
  • अभी कुछ ही दिनो पहले भारत के ‌‌‌सैनिको ने आतंकवादियों पर धावा बोल दिया था ।
  • ‌‌‌शहर से आए कुछ लोगो ने बेवजह किसन पर धावा बोल दिया ।
  • महेश हर दिन किसी न किसी पर धावा बोलता ही रहता है एक दिन वह अपने हाथ पैर तुडवा कर ही मानेगा ।

धावा बोलना मुहावरे पर एक प्रसिद्ध कहानी (संत और अज्ञानि ‌‌‌शिष्य)

दोस्तो प्राचिन समय की बात है किसी नगर मे एक संत रहा करता था । संत बडा ही ज्ञानी ‌‌‌था । उसके ज्ञान की महिमा दूर दूर तक फैली हुई थी। इसके साथ ही संत को युद्ध कला मे महारत हासिल थी । जिसके कारण से जो भी कोई राजा होता वह उसी संत से अपने बेटो को ज्ञान दिलाना चाहता था ।

मगर संत का एक अलग ही तरीका था वह चाहता था की जब तक शिष्य ज्ञान हासिल न कर ले तब तक उसे मेरी हर बात को मानना ‌‌‌होगा । यहां तक की अगर कभी मेरे पर किसी ने महला तक कर दिया तो मुझे उन लोगो से बचाना भी होगा चाहे फिर हमला करने वाला शिष्य का पिता ही क्यो न हो ।

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यानि संत साधारण भाषा में कहना चाहता था की अगर कभी मेरे पर हमला हुआ तो शिष्य को मेरी हिफाजत करनी होगी । संत की यही बात राजाओ के पल्ले नही पडती ‌‌‌थी क्योकी कोन पिता चाहेगा की उसका बेटा उससे युद्ध करे । मगर संत ज्ञानी था क्योकी उसे पता था की उसके जीवन मे एक दिन ऐसा जरूर आएगा की कोई बलवान राजा उस पर हमला कर देगा ।

मगर संत को यह पता नही था की वह कोन होगा । दरसल एक बार संत को इस बारे मे उसी के गुरू ने बताया था । तब से संत ने यह नियम बना ‌‌‌लिया की जब भी उस पर हमला हो उसके शिष्य उसकी हिफाजत कर सके । संत का हर शिष्य महारत लिए हुए था और जो भी शिष्य संत के पास रहते हुए ज्ञान हालिस करते थे वे युद्ध कला में सबसे अलग होते थे ।

यह सब देख कर एक बार पास के ही एक राजा ने अपने बेटे को संत से ज्ञान लेने के लिए भेजना चाहा । मगर जैसे ‌‌‌ही राजा ने संत से इस बारे में बात की तो संत ने अपनी इसी ‌‌‌शर्त को रखा । जिसे सुन कर राजा चौक गया । क्योकी संत कह रहा था की अगर कभी आपने मुझ पर हमला किया तो आपके बेटे को ही मेरी हिफाजत करनी होगी ।

साथ ही मुझे हर परिस्थिती मे बचाना होगा । क्योकी जो राजा था वह ज्ञानि था और संत के स्वभाव से यह ‌‌‌जान गया की संत जो कह रहा है उसमें कुछ बात छिपी हुई है । मगर राजा को यह भी मालूम था की वह कभी भी अपने बेटे के गुरू पर हमला नही करेगा । तब राजा ने संत से कहा की मुझे आपकी यह ‌‌‌शर्त स्वीकार है ।

मगर आपको ‌‌‌मेरे बेटे को एक अच्छा योद्धा बनाना है । राजा के जैसे कहे अनुसार संत ने भी बात मान ली और राजा ‌‌‌का बेटा छोटी सी उम्र में ही संत के पास रह कर युद्ध कला सिखने मे लग गया । मगर तब संत को यह पता चला की यह युद्ध कला तो सिखने मे माहिर है मगर यह एक मुर्ख बालक है जिसके कारण से ज्ञान हासिल करने मे पिछे रह जाएगा ।

जब संत ने राजा को यह बात बताई तो राजा ने कहा की आप बेटे को युद्ध कला मे माहिर करे ‌‌‌और जो उसका मुर्खमन है उसकी फिकर न करे । राजा के ऐसा कहने पर संत ने सोचा की यह राजा का बेटा है जिसके कारण से इसे दोनो ही गुण मिलने चाहिए । तब संत ने कठिन कार्य देते हुए राजा के बेटे को युद्ध कला सिखाने लगा ।

और जब भी किसी प्रकार के ज्ञान मे पिछे रहता तो उसे सजा के रूप में ‌‌‌कठिन युद्ध कला देने लग जाता था । जिसके कारण से शिष्य को लगता की संतगुरू मे साथ अन्याय कर रहे है । मगर इससे शिष्य यानि राजा के बेटे को फायदा ही होता गया क्योकी वह युद्ध कला में माहिर बन गया ।

एक दिन की बात है राजा संत कें पास आया हुआ था तभी संत ने राजा के बेटे और कुछ शिष्य को जंगल से ‌‌‌लकडिया लाने के लिए भेजा था । तब राजा के बेटे के साथ तीन शिष्य और थे । अब तक राजा का बेटा काफी अधिक बडा हो गया था मगर ‌‌‌उन तीनो शिष्यो ने गलती के कारण से राजा के बेटे को वही जंगल मे छोड दिया और स्वयं राजा और संत के पास आ गए ।

जब संत ने पूछा की राजा का बेटा कहा है तब जाकर शिष्यो को याद आया ‌‌‌की वह तो जंगल में ही रह गया है । तब संत ने उसे लाने के लिए अपने शिष्यो को वापस भेजा । उधर राजा का बेटा जंगल में इधर उधर भटकने लगा था क्योकी वह पहली बार ही उस जंगल में गया था जिसके कारण से उसे वापस जाने का रास्ता नही मिल रहा था ।

काफी समय बित जाने के बाद भी उसके बाकी के ‌‌‌साथी यानि शिष्य ‌‌‌नही आए तो राजा के बेटे ने सोचा की यह ‌‌‌करने के लिए गुरू ने ‌‌‌ही उन शिष्यो से कहा होगा । यह गलतफहमी वह अपने मन मे पालने लगा था । रात होने ‌‌‌को थी तब जाकर वे शिष्य राजा के बेटे को खोज पाए और उसे लेकर वापस संत के पास गए । तब संत ने तीनो शिष्यो को रात भर काम करने की सजा दी ।

 मगर यह देख कर ‌‌‌राजा के बेटे को लगा की यह तो बहुत ही छोटी सजा है । तब उसे और अधिक लगने लगा था की संत ने ही अपने शिष्यो को मुझे जंगल मे छोडने को कहा था और पिताजी के पूछने पर ही संत ने वापस मुझे लाने के लिए इन्हे भेजा होगा और अब यह नाटक कर रहा है ।

इसी बात की गलतफहमी राजा के बेटे ने अपने मन मे बैठा ली । एक ‌‌‌सप्ताह के बाद में राजा के बेटे ‌‌‌ने पूरी शिक्षा ग्रहण कर ली है ऐसा कहते हुए ‌‌‌संत ने उसे राजा के पास भेज दिया था । तब राजा ने अपने बेटे का बहुत ही अच्छी तरह से स्वागत किया था ।

दूसरे दिन ही राजा ने अपने बेटे का तीलक करते हुए उसे युवराज बना दिया । और उसे भी एक ताज पहना दिया । साथ ही अब अपने बेटे ‌‌‌को अपने जीवन में अहम फैसले लेने का जीमेदारी भी दे दी । एक महिने तक राजा का बेटा यानि युवराजा अपने संत को सजा देने की सोच मे टिका रहा ।

धावा बोलना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

तभी उसे मोका मिल गया क्योकी उसका पिता एक सप्ताह के लिए अपने राज्य से बहार चला गया और अपने बेटे को ‌‌‌राजकार्य संभालने की जीमेदारी दे दी । जब युवराज ने राजा ‌‌‌का पद संभाल लिया तो सभी उसकी बात मानने लगे थे । यह देख कर युवराज अपने गुरू यानि संत से बदला लेने के लिए चला गया था ।

जब संत ने युवराज को अपने पास आते हुए देखा तो संत खुश हुआ क्योकी उसका एक शिष्य उससे मिलने के लिए आ रहा था । तभी युवराज ने संत को देखा और उस पर पल भर मे धावा बोल दिया । यह ‌‌‌जैसे ही संत ने देखा तो वह घबरा गया क्योकी उसका ही शिष्य उस पर हमला कर रहा है ।

तभी संत के बाकी के शिष्यो ने यह देखा तो संत की हिफाजत के लिए आगे आ गए और युवराज की पूरी की पूरी सेना को हरा दिया । अब युवराज ‌‌‌में एक ही बचा था जो किसी से मार नही खा रहा था । मगर संत बडा योद्धा था इस बारे में युवराज ‌‌‌को भी नही पता था । जिसके कारण से संत ने एक वार में अपने शिष्य यानि युवराज को जमीन पर गिरा दिया ।

मगर इस घटना में युवराज ने जिस हाथ मे तलवार पकड रखी थी वह हाथ कट कर निचे जा गीरा । तब संत ने शांति से सोचा की अपने शिष्य को मारना सही नही है जिसके कारण से संत ने उसे बचाने के लिए अपने बाकी ‌‌‌के शिष्यो को कहा । यह सुन कर कोई भी समझ नही पाया था ।

मगर फिर से संत के कहने पर सभी ने युवराज के रक्त को रोका और उसके हाथ पर पट्टी कर दी । जिसके कारण से युवराजा कुछ समय के लिए होस में भी नही आया था । तभी संत ने अपने प्रिय शिष्यो को राजा के पास भेजा और उसे सुचना दिलवाई की आपके बेटे ने संत ‌‌‌पर धावा बोल दिया था जिसके कारण से संत ने अपनी हिफाजत करते हुए उसे रोका जिससे युवराज का हाथ कट गया ।

साथ ही शिष्य ने राजा से कहा की संत ने अभी आपको बुलाया है । यह खबर जैसे ही राजा ने सुनी तो वह तुरन्त ही संत के पास आ गया और संत के पास आकर कहने लगा की संतजी ‌‌‌क्या हुआ । तब संत ने कहा की राजा मैंने ‌‌‌जिसे शिक्षा दी थी उसी ने मुझे मारने की कोशिश की है ।

यह अच्छा नही हुआ फिर भी मैं अपना शिष्य समझ कर उसे छोड रहा हूं। अगर फिर कभी उसने मुझ पर हमला किया तो मेरे शिष्य रूकेगे नही और उसे मार डालेगे । ‌‌‌यह सुन कर राजा ने कहा की संत जी फिर कभी भी ऐसा नही होगा । तब राजा को समझ में आ गया की उसका बेटा तो सच में मुर्ख है उसे ज्ञान की ज्यादा जरूरत थी।

धावा बोलना मुहावरे का अर्थ और वाक्य

यह समझते हुए राजा ने अपने बेटे को सही सलामत महल मे लेकर गया और फिर अपने बेटे को हर पल निगरानी मे रखने लगा था । इस तरह से संत की शिक्षा संत पर ही ‌‌‌भारी पड गई और उसी पर उसके ही शिष्य ने धावा बोल दिया । इस तरह से ज्ञानी हमेशा ही ज्ञानी रहता है यह साबित होता है ।

धावा बोलना मुहावर पर निबंध

साथियो आपने उपर जो कहानी दी गई है उसे पढा होगा और उसमे बताया गया है की अपनी मुर्खता के कारण से युवराज यानि शिष्य अपने ही गुरू को गलत समझ जाता ‌‌‌है और उसी पर हमला कर देता है । तब युवराज यानि शिष्य को यह समझ में नही आया की जीस पर वह हमला कर रहा है उसी ने उसे ज्ञान दिया है तो वह उसे हरा भी सकता है ।

मगर यहां पर जैसे ही हमला करने की बात हुई वही धावा बालने का प्रयोग हुआ था । जिससे सिद्ध होता है की जहां पर हमला होता है वही धावा बोलना कहा ‌‌‌कहा जाता है । इस तरह से धावा बोलना मुहावरे का अर्थ हमला करना ही होता है ।

इस तरह से आप समझ गए होगे । अरग लेख पंसद आया तो कमेंट करे ।

धावा बोलना मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है || What is the meaning of  dhava bolna in Hindi

दोस्तो  dhava bolna एक ऐसा मुहावरा है जो की उस समय को दर्शाता है जब कोई हमला करने या फिर ​किसी के द्वारा हमला किए जाने पर प्रयोग में लाया जाता है।

तो इस बात से यह समझे की dhava bolna muhavare ka arth- हमला करना ही होता है । और जहां पर भी हमला करने की बात होती है वहां पर इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है । जैसे की आप अपने दोस्त से बदला लेना चाहते है और एक अच्छे से मोके की तलास कर रहे है  ।

मगर एक दिन आपको वह मोका मिल जाता है जिसके कारण से आप उसी समय अपने दोश पर हमला कर देते है । और उस समय इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है क्योकी आपने हमला किया है और असल मे मुहावरे का अर्थ भी यही होता है।

तो इस तरह से आप मुहावरे के बारे में समझ गए है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।

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