दो चार होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य || do char hona muhavare ka vakya mein prayog

दो चार होना मुहावरे का अर्थ do char hona muhavare ka arth – सामना होना ।

दोस्तो आज के युग की बात करे तो आपको पता ही होगा की हर किसी के जीवन में दुश्मन होते है । और कभी कभार ऐसा होता है की दुश्मनो को देखने पर उनके साथ झगड़ा हो जाता है ।

हालाकी दुश्मन तो दो ही होते है मगर झगड़ा होने पर ‌‌‌दोनो पक्ष वाले लोग अपने साथियो को बुला लेते है और इस तरह से दो दुश्मनो के साथी जब एक दुसरे के पास आते है तो उनकी सख्या बढ जाती है । यानि दो व्यक्ति के साथ जब एक एक और व्यक्ति हो जाता है या अधिक हो जाते है तो उनकी सख्या बढ जाती है और यह दो से चार होना हो गया है । ‌‌‌क्योकी यह सब दोनो दुश्मनो का सामना होने पर ही होता है। और कुछ इसी तरह से कहा जाता है की दो चार होना यानि सामना होना ।

हलाकी इस मुहावरे की उत्पत्ति की कोई सटीक अवधारण नही है । इस कारण से हम यह नही कह सकते है की मुहावरा किस तरह से उत्पन्न हुआ है ।

‌‌‌दो चार होना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग || do char hona muhavare ka vakya mein prayog

  • आजकल न जाने जीवन में किस तरह की समस्या चल रही है हमेशा पुलिस वालो के साथ दो चार हो जाता है ।
  • काफी दिन हो गए आजकल महेश से दो चार नही हुआ ।
  • सरला जी आपका बेटा आजकल रहता कहा है कई ‌‌‌दिन बित गए दो चार नही हुआ ।
  • किसन और मिसन दोनो दुश्मन है जब भी दोनो का दो चार होता है झगड़ा हो जाता है ।
  • सम्राट विक्रम और राम सुरदास जी का आज युद्ध में दो चार होने ‌‌‌वाले है ।

दो चार होना मुहावरे पर सुंदर सी कहानी

दोस्तो सबसे पहले आपको बता दे की दो चार होना मुहावरे का अर्थ सामना होना होता ‌‌‌है । और यह कहानी भी दो व्यक्तियो के सामना होने पर आधारित है । हालाकी वे दोनो अपने अपने राज्य के सम्राट होते है । तो आइए जानते है एक अच्छी सी कहानी के बारे में –

प्राचीन समय की बात है जब हमारे यहां पर राजा महाराजाओ का सासन हुआ करता था । उस समय भी हमारे आस पास के ही इलाको में अनेक तरह के राजा ‌‌‌रहते थे और इसी भारत देश में राजा विक्रम और राजा सुरदास नामक दो राजा हुआ करते थे । जो की दोनो आपस में दोस्त हुआ करते थे । दोनो में इतनी गहरी दोस्ती थी की दोनो में से कोई भी युद्ध कला मे एक दुसरे का साथ देने से पिछे नही हटते थे।

‌‌‌हालाकी जब भी दोनो कही पर जाते थे तो दोनो एक साथ जाते थे । और यहां तक की जब दोनो में से किसी को ‌‌‌कुछ पसंद आ जाता था तो एक अपने आप से पिछे हट जाया करता था । मगर क्या होता है की राजा होते है जो की कुछ ऐसे पल भी आते रहते है जो उनके जीवन का सबसे बड़ा बुरा पल बन जाता है । और उसी तरह से उन दोने के साथ ‌‌‌हुआ था ।  

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दरसल एक बार की बात है जब राजा विक्रम और राजा सुरदास दोनो एक साथ किसी अन्य राज्य में गए हुए थे । उस समय दोनो राजा के भेष में ही थे जिसके कारण से सभी उनको देख कर आदर करते थे । और यहां तक की हर ‌‌‌कोई उनकी मदद करना चाहते थे । मगर क्या होता है की राजा लोग आसानी से किसी की मदद लेते नही है  ।

मगर इसी तरह से सफर करते रहने के कारण से जब वे उस राज्य में पहुंचे तो उन्हे काफी थकान महसुस होने लगी थी । जिसके कारण से वे पास के ही घर में पहुंच गए थे । वह घर एक सुनार का था । और वह धनवान था । जिसके ‌‌‌कारण से राजा विक्रम और राजा सुरदास को कुछ बुरा नही लगा था । बल्की वे सोचते की वे किसी धनवान के घर में रूके हुए है । तब दोनो राजाओ ने उस सुनार से रात के लिए आश्रम मागा । तब सुनार ने राजाओ को रहने के लिए कह दिया था ।

तभी सुनार की बेटी वहां पर आती है जो की देखने में काफी अधिक सुंदर होती है । ‌‌‌उसकी सुदरता इतनी अधिक होती है की राजा विक्रम जैसे ही उसे देखता है वह उसे पसंद आ जाती है । मगर एक राजा होने के कारण से वह नही चाहता था की उसी समय वह सुनार को विवाह के लिए पूछे । एक कारण यह भी रहा था की जीसके पास आश्रय मागा जाता है उसी से और उसी समय ऐसा प्रशन पूछना सही नही है जिसके कारण से राजा ‌‌‌विक्रम ने सुनार से कुछ नही पूछा था ।

जब राजा की बेटी ने दोनो राजाओ को देखा तो उसे भी उनमे से एक पसंद आ गया था । हालाकी इसके बारे में सुनार की बेटी ने किसी को नही बताया । क्योकी वह सोचती थी की वह एक राजा के साथ विवाह करना चाहती है मगर राजा उसके साथ भला विवाह क्यो करेगा ।

कुछ समय के बाद में ‌‌‌सुनार और उसकी पत्नी के साथ साथ सुनार की बेटी ने दोनो राजाओ को भोजन करवाया और उनकी खुब सेवा की थी । जब रात हो गई तो सभी विश्राम करने के लिए अपने आपने कक्ष में चले गए थे । मगर सुरदास बाहर की हवा खाने के लिए कुछ समय के लिए घर से बाहर खड़ा था । और राजा विक्रम आराम से निंद लेने के लिए कक्ष में ‌‌‌चला गया था ।

जब सुनार की बेटी ने राजा सुरदास को बाहर देखा तो वह भी उसके पास चली गई थी । क्योकी सुनार की बेटी को राजा सुरदास ही पसंद आया था । और पास जाकर राजा से बात करने लगी थी । राजा सुरदास से काफी समय से बात करने के बाद मे जब राजा सुरदास निंद लेने के लिए अपने कक्ष की तरफ जाने लगा तभी सुनार की ‌‌‌बेटी ने राजा सुरदास से विवाह करने का प्रसताव रखा था ।

मगर सुरदास यह सोच कर मना कर देता है की वह एक सुनार की बेटी के साथ विवाह नही कर सकता है । साथ ही वह सोचता है की अगर वह इससे विवाह करेगा तो उसका दोस्त क्या कहेगा और बाकी राजा लोग भी कहेगे की एक सुनार की बेटी से राजा ने विवाह कर लिया है ।

‌‌‌इस कारण से राजा सुरदास ने सुनार की बेटी से कह दिया की मैं आपसे विवाह नही कर सकता हूं । जब सुनार की बेटी ने राजा सुरदास के मुंह से यह सुना तो वह दुखी होने लगी । तभी सुनार की बेटी ने विवाह न करने का कारण पूछा और कहा की मैं इतनी सुदर हूं फिर भी आप मना क्यो कर रहे हो ।

तब सुरदास ने कहा की मैं एक ‌‌‌राजा हूं । जो की किसी ऐसी वैसी सुनार की बेटी से विवाह नही कर सकता हूं । मैं केवल उसी कन्या से विवाह करूगा जो की कोई राजकुमारी होगी । यानि वह राजघराने से होगी वही मेरी पत्नी बनने के काबिल है ।

 इस तरह से कह कर राजा सुरदास ने कह दिया था की सुनार की बेटी उसके ‌‌‌काबिल नही है । यह सुन कर सुनार की ‌‌‌बेटी को काफी बुरा लगा । मगर इतना कहने के बाद में राजा सुरदास आराम करने के लिए कक्ष मे चला गया था । इस तरह से राजा सुरदास रात को जारकर सो गया था । मगर सुनार की बेटी रात भर नही सो पाई थी । क्योकी उसे यह अच्छा नही लगा की एक राजा यह कह कर उसे मना कर देता है की वह एक सुनार की बेटी है ।

‌‌‌तभी उसने सोच लिया की अगर यह राजा मेरे साथ विवाह नही कर पाता है तो क्या मैं भी एक सुनार की बेटी हूं जो की किसी ऐसे वैसे से विवाह नही करूगी । इस तरह से रात भर सोचने के बाद में सुनार की बेटी ने फैसला लिया की वह राजा विक्रम से विवाह करेगी ।

मगर इस बार वह स्वयं राजा विक्रम से विवाह के बारे ‌‌‌में नही पूछने वाली है । बल्की राजा विक्रम ही स्वयं उससे पूछेगे और वही विवाह करने के लिए पिताजी से बात करने के लिए आएगे । और अगले ही दिन जब राजा विक्रम उठे तो सुनार की बेटी ने उनका अच्छे से ख्याल रखा और उनको जीस किसी चिज की जरूरत होती थी वह राजा विक्रम को लाकर दे देती थी । इस तरह से ‌‌‌राजा विक्रम के पास पास सुनार की बेटी रहने लगी थी ।

जिसके कारण से राजा विक्रम का प्रेम और अधिक बढ गया था । और जब राजा विक्रम जाने लगा था तो सुनार की बेटी उदास सा मुंह बना लेती है जिसके कारण से राजा विक्रम को लगता है की वह भी मुझे पसंद करती है । मगर राजा विक्रम अपने साथी राजा सुरदास के साथ ‌‌‌चला जाता है । तभी सुरदास राजा विक्रम को कहता है की मैं आपको एक बात बतना चाहता हूं । तभी राजा विक्रम भी कहता है की मैं भी आपको एक बात बताना चाहता हूं । और विक्रम ने कहा की मुझे वह सुनार की बेटी पसंद आ गई है और में चाहता हूं की मैं उससे विवाह करू ।

‌‌‌तब राजा सुरदास ने कहा की राजा विक्रम आप एक राजा हो और आप सुनार की बेटी से विवाह करना चाहते हो । तब राजा विक्रम ने कहा की इसमें क्या है वह भी एक अच्छे परिवार से है और इतना मेरे लिए काफी है । मैं पद से राजा हूं न की शरीर से । क्योकी मैं भी मनुष्य हूं और वह भी मनुष्य तो इस बिच में राजा पद ‌‌‌दिवार मैं नही देखना चाहता हूं ।

यह सुन कर सुरदास को भी लगा की उसने सुनार की बेटे के विवाह के प्रसताव को ठुकराकर अच्छा नही किया है । मगर अब सुरदास कुछ नही कहना चहाता था क्योकी वह सुनार की बेटी से विवाह नही करेगा । इसके पिछे का कारण यह बन जाता है की राजा विक्रम उससे विवाह करना चहाते है ।

‌‌‌तभी राजा विक्रम बोलते है की सुरदास आप भी कुछ कहना चाहते थे तो क्या कहने वाले थे जरा बताओ । मगर अब सुरदास कहता है की कुछ नही बस ऐसे ही । इस तरह से सुरदास अपने मन की बात राजा विक्रम को नही बता पाते है ।

इस बात को 27 दिन बित गए थे । तभी राजा विक्रम ने राजा सुरदास को अपने पास बुलाया और राजा ‌‌‌विक्रम अपने परिवार के साथ कही पर जाने लगा था । तभी राजा सुरदास ने कहा की राजा विक्रम हम कहा जा रहे है । तब राजा विक्रम ने कहा की सुरदास जब दो चार होगे तो आपको पता चल जाएगा । इस तरह से विक्रम ने राजा सुरदास को कुछ नही बताया था ।

इस तरह से राजा विक्रम और उसके बाकी का परिवार और सुरदास किसी ‌‌‌ ‌‌‌स्थान में पहुंचे जीसे देख कर सुरदास ने कहा की यह नगर तो जाना पहचाना है । इस तरह से चलते चलते वे एक घर में जा पहुंचे जिसे देखने के मात्र सुरदास को पता चल गया की यह तो वही सुनार का घर है । तभी सुनार की बेटी दरवाजा खोलने के लिए आती है और राजा विक्रम और सुरदास का सुनार की बेटी का दो चार हो जाता है ।

‌‌‌यह देखने के मात्र सुनार की बेटी को पता चल गया की राजा विक्रम उनसे विवाह करने की बात करने के लिए आए है । तब सुरदास की बेटी कहती है की आप अंदर आए । अंदर जैसे ही सभी आते है सुनार आराम कर रहा होता है और राजा को देखते ही वह तुरन्त खड़ा हो जाता है और उन्हे किसी आसन पर बैठाता है ।

जब सभी आराम से ‌‌‌बैठ जाते है तो सुनार की बेटी सभी के लिए पानी लेकर आ जाती है और सभी को पानी पिलाती है । और जब सभी पानी पी लेते है तो सुनार राजा विक्रम ओर सुरदास को उनके आने का कारण पूछने लगा । तब राजा विक्रम कहता है की सुनार जी आपकी बेटी मुझे बहुत ही अधिक पसंद है मैं उनसे विवाह की बात करने के लिए आपके ‌‌‌पास आया हूं ।

राजा के मुंह से ऐसी बात सुन कर सुनार को कुछ समझ नही आया की क्या बोले । तभी सुनार ने कहा की महाराज आप एक राजा हो और मैं एक मामूली सुनार । यह सुन कर राजा विक्रम हसने लगे और कहा की सुनार तुम क्या इंसान नही हो । इस राजा पद से कोई छोटा बड़ा नही होता है बल्की मनुष्य सभी समान होते है ।

‌‌‌राजा की ऐसी बाते सुनने के कारण से सुनार को अच्छा लगा और जब राजा विक्रम ‌‌‌ने फिर से सुनार से विवाह के लिए पूछा तो सुनार ने कहा की अगर आप जैसा राजा स्वयं मेरी बेटी से विवाह करना चाहता है तो मैं कैसे आपको मना कर सकता हूं ।

इस तरह से सुनार की हां होने के बाद में राजा की बेटी और राजा विक्रम का ‌‌‌विवाह हो जाता है । यह विवाह होने के बाद में सुनार की बेटी एक राजा की पत्नी बन जाती है और वह भी राजा के समान पद वाली बन जाती है । और सभी उसे महारानी कहने लग जाते है ।

इसके बाद में जब भी राजा सुरदास राजा विक्रम के यहां पर आता था तो राजा सुरदास का सुनार की बेटी से दो चार होता था । और ‌‌‌दोनो को वह पल याद आ जाता है जब सुरदास ने सुनार की बेटी के विवाह के प्रसताव को ठुकरा दिया था । मगर इस बात का किसी को बुरा नही लग रहा था । बल्की दोनो ने इस बारे में विक्रम ओर अन्य किसी को कुछ नही बताया था ।

इस तरह से फिर सुनार की बेटी महारानी बन कर अपना जीवन गुजारने लगी थी ।

‌‌‌इस तरह से दोस्तो दो चार होना मुहावरे का अर्थ सामना होना होता है और वह सामना किसी भी तरह से हो सकता है । इस अर्थ को इस कहानी में साफ दर्शाया गया है ।

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