तुनककर बोलना मुहावरे का अर्थ (tunakkar bolna idiom in Hindi)

तुनककर बोलना मुहावरे का अर्थ tunakkar bolna muhavare arth – चिड़चिड़ा होकर बोलना या चिड़कर बोलना

दोस्तो आज हर कोई अपने बारे में अच्छा ही सुनना चाहता है । ऐसा कोई नही है जो यह नही चाहता है की वह दूसरो के मुंख से अच्छा न सुने । इसी के चलते जब कोई व्यक्ति सामने वाले को अच्छा न कह कर बुरा कह ‌‌‌देता है या कोई कडवी बात कह देता है तो सामने वाला नाराज हो जाता है ।

और इस तरह से नाराज हो जाने के बाद में वह वापस जबाब देता है तो उसमें चिड़चिड़ाहट होने का आभाष होता है । और इस तरह से चिड़चिड़ा होकर बोलना या चिडकर बोलना कहा जाता है । और जब कोई इस तरह से बोलता है तो इसे तुनककर बोलना कहा जाता है।

तुनककर बोलना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग // tunakkar bolna sentence in hindi

1. जब राहुल को उसकी सच्चाई बताने लगा तो वह तुनककर बोलने लगा ।

2. अपने भाई की कमियो के बारे में सुन कर राहुल तुनककर बोलने लगा ।

3. शरबती को जब औरते बुरा भला कहने लगी तो वह तुनककर बोलने लगी ।

4. इसमें तुनककर बोलने की क्या बात है मैंने जो है वही कहा है ।

‌‌‌5. जब मैं सरला के गुण गाने लगी तो पार्वती तुनककर बोलने लगी ।

6. जैसे ही मैंने महेश की बात की राहुल तुनककर बोलने लगा ।

‌‌‌7. तुम्हारे और महेश के बिच में जरूर कुछ बात हुई है तभी महेश तुम्हारी बात सुनते ही तुनककर बोलने लग जाता है ।

तुनककर बोलना मुहावरे पर कहानी (साधू का ज्ञान हुला विफल) // tunakkar bolna idiom story in hindi

दोस्तो प्राचीन समय की बात है एक साधू हुआ करता था जो की अलग अलग गांवो में जाकर ऐसे शिष्यो को चुनता था जो की कुछ अलग होते थे । और उन्हे अपना ज्ञान देकर अन्य लोगो को भी ज्ञान की बाते बताने का काम दिया करता था । इस तरह से साधू दुनिया में सत्य ‌‌‌की बात बताने के लिए अपना ज्ञान बाटता रहता था ।

साथ ही साधू हमेंशा ही यह कहा करता था की सामने वाला चाहे जो भी कहे मगर हमें कभी भी किसी भी हाल में ऐसा नही बनना है जो की देखने में ऐसा लगे की हम सामने वाले की बात से प्रभावित हो रहे है । मगर एक बार साधू ने एक ऐसे शिष्य को चुन लिया था जो की ‌‌‌साधू के ज्ञान के हमेशा ही विपरीत रहता था ।

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उस समय की बात है …………….

                            एक बार साधू अपने सभी शिष्यो के साथ साथ अलग अलग गावो में जा रहा था । उस समय साधू के पास कुल 15 शिष्य थे । जो की साधू की हर बात इशारो से समझ जाया करते थे । साधू इस तरह से तरह तरह के गावो में जाता था जहां पर कोई उसे ढोगी साधू कहता ‌‌‌तो कोई कुछ और कहता था ।

इस तरह से साधू को ऐसे गाव में भी जाने का मोका मिलता था जिसमे सभी लोग बहुत ही अच्छे होते थे और साधू का हर तरह से आदर किया ‌‌‌करते थे । इसी तरह की बात है एक दिन साधू किसी पूर्वनगर नाम के गाव में जा पहुंचे थे ।

 वहां पर साधू ने केवल एक ही रात बिताई और पूरी रात गाव के सभी ‌‌‌को ज्ञान की बाते बताई थी । मगर उस समय साधू ने पूरे गाव में एक ही लडके पर नजर रही थी ‌‌‌जो पूरी रात लोगो की सेवा कर रहा था । दरसल वह एक पढा लिखा लडका था और गाव में जो भी काम हुआ करता था उसकी जिमेद्दारी उसे ही प्राप्त होती थी । ‌‌‌मगर इस बारे में साधू को कुछ पता नही थी बल्की साधू को लगा की यह एक नेक लडका है जिसके कारण से साधू ने उसे अपना शिष्य बनाने का प्रस्ताव उसके सामने रखा ।

जब उस लडके ने इस बारे में अपने पिता से कहा तो उन्होने कह दिया की साधू बाबा जब स्वयं कह रहे है तो इसमें हर्ज ही क्या है । दरसरल उस लडके का ‌‌‌पिता एक किसान था जो की अपनी मेहन्त की रोटी खाना जानता था । साथ ही वह अपने बेटे की एक आदद से काफी अधिक परेशान रहता था और वह उसका ‌‌‌चिड़चिड़पन था ।

यह कारण रहा था की उसने साधू के पास ज्ञान लेने के लिए हां कही थी क्योकी वह सोच रहा था की इससे लडके को अपने ‌‌‌चिड़चिड़पन पर काबू पाने में साहयता प्राप्त होगी । ‌‌‌मगर साधू को इस बारे में कुछ पता नही था और दो वर्षो तक तो इस बारे में उसे पता भी कुछ नही चला था ।

क्योकी वह लडक जब भी साधू होता तो एक सरल शिष्य बन जाता था और देखने में बहुत ही मासूम लगता था । मगर उसकी एक आदद रही थी वह हमेशा ही अपनी कडवी सच्चाई सुन कर चिढ जाया करता था । जिसके कारण से जब भी अन्य ‌‌‌शिष्य उसे कुछ कह देते तो वह चिढजाता और चिढकर बोलता था । और इस तरह से दो वर्षों के बादमें एक दिन साधू ने किसी काम के लिए उस लडके को डाट दिया था ।

जिसके कारण से साधू के अन्य शिष्य उस लडके का मजाक बनाने लगे थे और इसी बिच वह लडका तुनककर बोलने लगा था । तभी साधू ने यह सब देख लिया तो साधू ने ‌‌‌उसे अपने पास बुलाया और उसे पूरी तरह से समझाने की कोशिश की थी । और इसका फायदा यह हुआ था की वह समझ गया और उसने फिर कभी भी अपने आश्रम में ऐसा नही होने दिया था ।

इस तरह से चलते हुए कुल 15 वर्ष बित गए थे । और साधू हर किसी को इतना ही ज्ञान देता था । जिसके बाद में उसे अपने जीवन में अच्छे कर्म करने ‌‌‌की कह कर अपने गाव भेज देता था । इस तरह से वह लडका भी अपने गाव चला गया था । जिसे देख कर उसके गाव के साथी उसका मजाब बानते हुए उसे कहने लगा की देखा की ज्ञानी बाबा आया है, देखो ज्ञानी बाबा आया है ।

इस तरह से एक दिन तो उसने सुन लिया । मगर जैसे ही ‌‌‌अगले दिन गया तो फिर से वह लडके ऐसी बाते कर हरे थे । ‌‌‌भला साधारण लोग साधू के ज्ञान को कैसे समझ पाते थे । मगर इन 15 वर्षों के ज्ञान पर भी पानी फिरने लगा था क्योकी उस लडके ‌‌‌का चिड़चिड़पन वापस आने लगा था और वह फिर अपने गांव के साथियो की बाते सुन कर तुनककर बोलने लगा था ।

भला साथी का काम ही मजाक करने का होता है तो वे लडके उसका पिछा नही छोडते थे और उसे ‌‌‌इसी तरह से ‌‌‌चिड़ाया करते थे । इस तरह से चलते हुए वर्ष हो गया था । मगर अब उन्होने ऐसा करना बंद कर दिया था । मगर अब वह लडका जैसे ही अपने बारे में कुछ गलत सुनता या अपने परिवार के बारे में गलत सुनता तो वह चिड जाया करता था और ऐसे ही बोलने लग जाता था ।

जिसके कारण से जब इस बारे में गाव के लोगो को ‌‌‌पता चला तो वे सभी कहने लगे की देखो की साधू बाबा तुनककर बोल रहे है । यह सब सुन कर दुसरे लोग कहते की एक साधू में यह गुण तो होने ही नही चाहिए । जरूर यह कोई ढोगी है साधू थोडे है । इस तरह से गाव के लोगो की नजरो में वह लडका एक ढोगी बन कर रह गया था और गाव का कोई भी उसे साधू नही मानता था ।

तुनककर बोलना मुहावरे पर कहानी (साधू का ज्ञान हुला विफल)  tunakkar bolna idiom story in hindi

तीन वर्षो के ‌‌‌बाद में साधू वापस उस लडके के गाव से होकर जा ‌‌‌रहा था । जिसे देख कर गाव के लोग कहने लगे की देखो तुनककर बोलने वाले लडके का शिक्षक आ गया था । मगर साधू यह सब सुनता और न ही किसी को कुछ कहता बल्की वह मुस्कुराता रहता था । यह सब देख कर समझदार लोग समझ जाते की साधू एक सचा साधू है ।

बाकी तो लोगो का कहना ही ‌‌‌क्या । इस घटना के बाद में साधू को यह पता चल गया की उसका एक शिष्य आज अपनी आदतो से बाज नही आया और उसने जो अपने शिष्य को 15 वर्षों तक ज्ञान दिया था वह पूरी तरह से विफल रहा है ।

 इस घटना के बाद में साधू ने जब भी किसी को चुना तो पहले उसके बारे में सब कुछ पता करना शुरू कर दिया और फिर ही उसे ‌‌‌अपना शिष्य बनाता था । इस तरह से आपको इस कहानी से समझ में आया होगा की इस मुहावरे का अर्थ क्या है ।

तुनककर बोलना मुहावरे पर निबंध // essay on tunkar bolna idiom in Hindi

साथियो आज मनुष्य अपनी मधुर वाणी के जरीय लोगो ‌‌‌के दिल्लो में घर बानते देख नही लगता ‌‌‌है । और फिर लोग भी उसे केवल इसी वाणी के कारण से बहुत अधिक महत्व देने लग जाते ‌‌‌है । क्योकी आज ऐसे अनेक लोग है जिसके बोलने के तरीको के कारण से लोग उनके दिवाने है मगर उन्हे जानते नही है ।

इसी तरह से कुछ ऐसे भी लोग होते है जो की अपनी बोलचाल भाषा को सुधारने का नाम ही नही लेते है । और इसी वाणी के कारण से वे बुरे बन जाते है ।

तुनककर बोलना मुहावरे पर कहानी (साधू का ज्ञान हुला विफल)  tunakkar bolna idiom story in hindi

इसके अलावा कुछ ऐसे भी लोग होते है जो अपने बारे मे ‌‌‌या अपने प्रिय के बारे में बुरा सुन कर या कमियो के बारे मे सुन कर ऐसे बोलते है जैसे मानो की उन्हे कोई काटने को दोड रहा हो ।

 यानि वे इस तरह से सुन कर चिड़ जाते है और वे चिड़कर बोलने लग जाते है । बस इसी तरह से चिड़कर जो लोग बोलते है उन्ही के लिए ‌‌‌यह मुहावरे को बनाया गया है और जब इस तरह से ‌‌‌बोला जाता है तो इसे तुनककर बोलना कहा जाता है ।

इस तरह से इस मुहावरे का अर्थ चिड़चिड़ा होकर बोलना या चिड़कर बोलना होता है ।

क्या आपने ‌‌‌कभी इस मुहावरे का प्रयोग किया है बताना न भूले ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।