नहले पर दहला मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

नहले पर दहला मुहावरे का अर्थ है nahale par dahala muhavare ka arth – करारा जवाब देना ।

दोस्तो जिस तरह से ‌‌‌ताश के खेल में हर एक बडे अक्सर का महत्व होता है जिस तरह से दुगी पर तीगी आ जाती है तो दुगी की कोई अहमियत नही होती है उसी तरह से नहले पर दहला आ जाने से नहले की कोई अहमियत नही ‌‌‌रहती है । क्योकी नहले को दहले ने दबा दिया है और इस तरह से दहले का प्रभाव नहली पर पडता है और इस तरह से खेल में सामने वाले को करारा जबाब मिलता है ।

अगर इसी तरह से मानव जीवन में किसी कार्य के अंदर करारा जबाब मिलता है जिससे पहले वाले का प्रभाव नष्ट हो जाता है तो इस मुहावरे का प्रयोग किया जा ‌‌‌सकता है । दोनो में करारा जबाब देने का अर्थ निकलता है । यही कारण है इस मुहावरे का प्रयोग होता है ।

नहले पर दहला मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग

नहले पर दहला मुहावरे को कुछ अन्य रूप –

नहले पे दहला

नहले पे दहला मारना

नहले पर दहला मारना

इन सब मुहावरो के अर्थ एक ही होते है जो है करारा जबाबा देना ।

नहले पर दहला मारना मुहावरे का वाक्य में ‌‌‌प्रयोग

  • सुरेश ने राहुल की बात पर नहले पर दहला मार दिया ।
  • ‌‌‌कंचन ने अध्यापक को एक कविता सुनाई और उसी के बाद पार्वती ने एक कविता सुनाई जिसके कारण से कंचन की कविता फिकी पड गई इसे कहते है नहले पर दहला ।
  • अध्यापक के पूछे गए प्रशन का उत्तर महेश ने लगभग सही सही दिया मगर सुसिला ने उसका उतर ‌‌‌सटिक सही सही देकर महेश के उत्तर पर नहले पर दहला मार दिया ।
  • किसन और रामू मे झगडा हो गया तो किसन ने रामू को खुब मारा मगर दुसरे ही दिन रामू ने किसन के खिलाफ गाव के मुखिया मे ‌‌‌शिकायत करा कर उसे सजा दिला दी इसे कहते है नहले पर दहला मारना ।
  • ‌‌‌सुरेश स्कुल में अपने मित्र रामप्रताब के साथ झगडने लगा था मगर रामप्रताब ने तुरन्त उसकी सिकायत अध्यापक से कर कर नहले पर दहला मार दिया जिसके कारण से सुरेश को बडी सजा मिली ।
  • किशोर गाव के मुखिया के सामने महेश को चोर बता रहा था मगर महेश चालाक निकला उसने किशोर को ही चोर साबित कर कर नहले पर ‌‌‌दहला मार दिया ।

नहले पर दहला मुहावरे पर कहानी

प्राचिन समय की बात है किसी नगर में एक राजा रहा करता था । जिसका नाम राजा प्रताबसिंह था । राजा बडा ही नेक दिल्ल आदमी था जिसके कारण से वह अपनी प्रजा की परेशानियो की हमेशा ही फिकर किया करता था। और अपनी प्रजा की परेशानी देख कर किसी अन्य राजा ‌‌‌से मदद मागने में सकोच नही करता था ।

इसी आदद के कारण से एक दिन राजा प्रताबसिंह को एक अन्य राजा जिसे राजा ‌‌‌शुरसेन के नाम से जानते ‌‌‌था उसने बडा लज्जित कर दिया । ‌‌‌उस समय की बात है एक बार राजा प्रताबसिंह अपने राज्य में नही थे और वे किसी अन्य राज्य में भ्रमण करने के लिए गए थे । जिसके कारण से राजा को लगभग एक महिना होने को था ।

मगर इसी बिच में राजा ने जितना धन अपने साथ लिया था वह सब चोरी हो गया । और एक ‌‌‌हमले के कारण से राजा के कुछ ‌‌‌आधे सैनिक भी मारे गए ‌‌‌थे । इस हमले से अपनी जान बचा कर राजा प्रताबसिंह और उसके बाकी के सैनिक पास के ही राजा के पास चले गए । वह राजा और कोई नही बल्की राजा शुरसेन ही था ।

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राजा प्रताबसिंह सोच रहा था की यह राजा मेरी मदद कर देगा । मगर राजा को उसके बारे में कुछ भी पता नही था । जब राजा प्रताबसिंह ने राजा शुरसेन से मदद ‌‌‌मागी तो शुरसेन ने मदद के नाम पर राजा को बडा ही लज्जित किया । जिसके कारण से राजा प्रताबसिंह को अधिक बुरा नही लगा मगर अगले ही पल राजा शुरसेन ने राजा प्रताबसिंह को अपनी प्रजा के सामने अधिक लज्जित किया और अपने महल से बाहर निकला दिया ।

जिसके कारण से राजा की प्रजा राजा प्रताबसिंह ‌‌‌और उसके सैनिक पर हंसने लगी थी । सैनिको को यह अच्छा नही लगा जिसके कारण से सैनिको ने राजा से कहा की महाराज यह हमारे साथ अच्छा नही हो रहा है अगर मदद नही करनी थी तो साफ साफ मना भी तो कर सकते थे इस तरह से लज्जित तो नही करना था ।

तब राजा ने अपने सैनिको से कहा की अब चुप रहो समय आने पर ‌‌‌सब कुछ सही हो जाएगा । तब राजा ने अपने एक सैनिक को अपने राज्य भेजा ताकी धन और कुछ सैनिको को अपने साथ लेकर आ जाए । राजा की अज्ञा के रूप मे एक सैनिक राजा प्रताबसिंह के राज्य में उससे पहले चला गया और समाने से कुछ सैनिक लेकर आ गया ।

जिसके कारण से राजा प्रताबसिंह आसानी से अपने राज्य पहुंच गया ‌‌‌था । मगर अब भी राजा और उसके सैनिक उसी राजा शुरसेन के बारे में सोच रहे थे क्योकी राजा प्रताबसिंह की अब वहा पर कोई भी इज्जत नही थी । और एक राजा के लिए इज्जत का बने रहना काफी अधिक अहमियत देता है ।

इसी बात पर राजा प्रताबसिंह ने अपने सैनिको से कहा की उस राजा ने हमारे साथ जो किया वह किसी और ‌‌‌के साथ कभी नही होना चाहिए । क्योकी जिसको मदद की जरूरत होती है उसे मदद मिलनी चाहिए । इस तरह से कहने पर राजा के वे सैनिक बोले की महाराज उस राजा को सबक सिखाना होगा की आप कोन हो और क्या कर सकते है यह उस राजा को बताना होगा ।

साथ ही वहां की प्रजा में भी किसी प्रकार की इंसानियत नही है वे हर किसी ‌‌‌को लज्जित करते देर नही लगाते है उन्हे सबक तो मिलना ही चाहिए । तब राजा को लगा की सैनिक भी सही कह रहे है इस तरह के लोग अपने राज्य के लोगो के लिए भी कुछ नही कर सकते है ।

इस तरह से फिर राज ने अपने सभी सैनिको से कहा की चलो युद्ध की तैयारी कर लो । ‌‌‌इस युद्ध की भनक राजा प्रताबसिंह ने अपने राज्य से बहार न जाने दी और कुल 10 दिनो मे युद्ध के लिए तैयार हो कर युद्ध करने के लिए चले गए । और जब राजा प्रताबसिंह राजा शुरेसेन के पास पहुचने ही वाले थे तो शुरसेन को पता चला की वह राज जिसका उसने अपमान किया था वह बदला लेने के लिए हमला कर रहा है । ‌‌‌

तब राजा शुरसेन ने अपने सैनिको को तैयार होने को कहा ही थी की राजा प्रताबसिंह के सनिक महल में घुस गए और कुछ ही समय में सभी सैनिको को बंदी बनाते हुए राजा को भी बंदी बना लिया । जिससे राजा अपने किए हुए अपमान पर माफी मगाने लगा था । मगर अब राजा प्रताबसिंह ने शुरसेन से कहा की अगर तुम किसी की मदद ‌‌‌नही कर सकते हो तो कम से कम उसका अपमान तो मत करो ।

तुम्हारी तरह ही तुम्हारी प्रजा भी है जिसको अब सुधरना होगा । इस तरह से राजा प्रताबसिंह ने कहा जिसे सुन कर शुरसेन ने कहा की आइंदा ऐसा नही होगा । तब प्रताबसिंह ने कहा की अगर तुम एक महिने तक इन ही लोगो के बिच में जीवन यापन करने के लिए तैयार ‌‌‌हो तो तुम्हारा राज्य तुम्हारा ही रहेगा ।

इतना सुनने के बाद में राजा शुरसेन ने कहा की ठिक है मैं तैयार हूं । इस तरह से फिर राजा शुरसेन एक महिने के लिए लोगो के बिच में रहने लगा था । तब वे ही लोग आपस में बात करने लगे थे की महाराज ने उनका अपमान किया था मगर राजा प्रताबसिंह ने इन्हे ही महल ‌‌‌से निकाल कर हम लोगो के बिच में लाकर खडा कर कर नहले पर दहला होने वाली बात कर दी ।

इस बात को राजा शुरसेन ‌‌‌सुन रहा था मगर अब उसे भी पता था की ये लोग सच कह रहे है जिसके कारण से वह कुछ नही कर सका । जब एक महिना बिता तो राजा प्रताबसिंह ने उसे उसका राज्य दिया और कहा की मैंने तुम्हारे साथ जो किया ‌‌‌श्रमा मागता हूं ।

 इस तरह से राजा प्रताबसिंह के कहने पर शुरसेन को पता चल गया की यह कोई आम इंसान तो नही है । जिसके कारण से जब वह फिर से राजा बना तो उसके बारे में पता लगाया तो पता चला की राजा प्रताबसिंह के निचे अनेक राजा है जो की युद्ध कला में महरत हासिल कर रखे है ।

अब राजा शुरसेन को पता चल गया ‌‌‌की अगर वह अब वापस बदला लेगा तो उसका अंत निश्चित है क्योकी इतने राजाओ के बिच में मैं अकेला कुछ नही कर सकता हूं इस तरह से शुरसेन सोच कर चुप रहा । और जो हुआ वह सही हुआ समझता रहा ।

नहले पर दहला मुहावरे पर कहानी

साथ ही वह यह तक समझ गया था की राजा प्रताबसिंह ने नहले पर दहला मार दिया है जिसके कारण से अब मैं कुछ नही कर सकता हू। ‌‌‌इसके बाद मे शुरसेन राजा प्रताबसिंह का सहयोगी बन गया और उसी के अनुसार अपने राज्य को चलाने की कोशिश कर रहा था ।

जिसके कारण से वह जब भी किसी की मदद करने का मोका दिख जाता तो उस व्यक्ति की मदद कर दिया करता था । इस तरह से इस कहानी में नहले पर दहला मुहावरे का प्रयोग किया गया है ।

नहले पर दहला ‌‌‌मुहावरे पर निबंध

साथियो ‌‌‌ताश की 52 पत्तीयों मे कुल 4 नहले और 4 दहले होते है । और हर खेल में नहले से बड़ा दहला होता है । जिसके कारण से जब नहले (9) की चाल होती है और उसके उपर दहला (10) की चाल हो जाती है तो नहले का कोई महत्व नही रहता ।

क्योकी उससे शक्तिशाली चाल उस पर हो जाती है । इस ‌‌‌तरह से चाल होने के कारण से नहले की चाल करने वाले खिलाडी को करारा जबाब मिलता है । ठिक वैसे ही जैसे राजा शुरसेन को मिला था । यानि उसे प्राजीत कर कर अच्छा सबक सिखा दिया जिससे राजा शुरसेन कुछ न कर सकता ।

इस तरह से राजा प्रताबसिंह ने करारा जबाब दिया था । ‌‌‌क्योकी खेल में भी इस तरह का करारा जबाब दिया जाता है तो जब भी कही पर करारा जबाब दिया जाता है तब नहले पर दहला मुहावरे का प्रयोग होता है ।

इस तरह से ताश के खेल से ही इस मुहावरे का जन्म हुआ है ।

नहले पर दहला मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है || What is the meaning of  nahale par dahala in Hindi

दोस्तो अगर आपने कभी तास का खेल खेला है या फिर कह सकते है की पत्ती का खेल अगर आपने कभी खेला है तो आपको पता है की उस खेल में 9 और 10 की एक पत्ती होती है । और इन दोनो में से 10 वाली पत्ती जो होती है वह बड़ी होती है ।

और जब 9 वाली पत्ती पर 10 वाली पत्ती आती है तो इससे 9 वाली पत्ती दब जाती है ओर इससे 9 वाली पत्ती चलने वाले खिलाड़ी को करारा जवाब मिलता है ।

और केवल इसी बात से आप यह समझ सकते है की nahale par dahala muhavare ka arth – करारा जवाब देना होता है । वैसे हमने आपको इस मुहावरे के बारे में उपर इतना कुछ बताया है की आपके लिए यह समझना आसान हो जाता है की इसका अर्थ करारा जवाब देना ही क्यों होता है ।

आशा है की आपको लेख पसंद आया होगा ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।