उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे का अर्थ और वाक्य मे प्रयोग

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे का अर्थ unchee dukaan pheeka pakavaan muhaavare ka arth – दिखावे ज्यादा होना पर गुणवान वस्तु न होना या केवल दिखावटी वस्तु का होना ।

दोस्तो आज के समय हर किसी को ऐसी वस्तु चाहिए होती है ‌‌‌जिसमे गणु बहुत हो और अच्छी हो ऐसी वस्तु की तलास मे‌‌‌ हर कोई भटकता रहता है और किसी तरह से उसे अच्छी तरह से सजाई हुई ‌‌‌बडी दुकान दिख जाती है तो वह उसमे वह वस्तु खरीदने के लिए चला जाता है और वही से वस्तु खरीद कर ले आता है पर जब उसे पता चलता है की यह वस्तु तो अच्छी नही है तब उसे पता चल जाता है की उँची दुकान फिके पवान किसे कहते है । अर्थात ‌‌‌दिखावे के अनुसार वस्तु का न होना।

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे का अर्थ और वाक्य मे प्रयोग

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे का वाक्य मे प्रयोग

‌‌‌जब भी शहर मे उँची दुकान से मिठाई खरीदकर लाता हूं तो पैसे भी बहुत लगते है पर खाने मे तो उँची दुकान फिके पवान ही लगते है ।

अरे भाई ‌‌‌बडी दुकानो से ‌‌‌समान नही खरीदना चाहिए क्योकी वहा पर उँची दुकान फिके पकवान ही मिलते है ।

एक तो रामलाल की दुकान से दो सो रुपय ‌‌‌के लड्डू लाए थे और जब खाया तो उसमे कुछ ‌‌‌भी गुण नही था सच कहा है उँची दुकान फिके पवान ।

महेश बाबू की दुकान से कुछ भी नही लाना चाहिए उसकी दुकान मे तो ‌‌‌गुण वाली वस्तु मिलती ही नहीहै सच कहा है उँची दुकान फिके पकवान ।

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे पर कहानी

किसी गाव मे राहूल नाम का एक आदमी रहता था उसके घर मे उसके अलावा उसकी पत्नी व एक बेटी रहती थी । राहूल ने शहर मे मिठाई की दुकान खोल रखी थी । और वह लोगो की ‌‌‌शादियों मे भी मिठाई बनाने के लिए जाया करता था । इस तरह से वह अपना घर चलाता था । उस समय मिठाई की ‌‌‌बहुत माग थी क्योकी उस समय मिठाई की दुकान हर कही पर नही मिलती थी जिस तरह से ‌‌‌अब मिलती है ।

इसी कारण से राहूल  ‌‌‌को ही आस पास के गाव के लोग बुलाते थे । राहूल को मिठाई ठिक तरह से बनानी नही आती थी । उसे मिठाई मे सही तरह से ‌‌‌समान नही गेरना आता था । इस कारण मिठाई की दुकान भी उसकी सही तरह से नही चलती ‌‌‌थी । राहूल की बेटी का नाम ‌‌‌अनामिका था और उसने अपनी बेटी के हाने के बाद मे ही व अपनी बेटी के नाम पर ही अनामिका मिठाई भंडार नाम की दुकान खोल रखी थी ।

उसके गाव मे सभी लोग उसे ही बुलाते थे इस कारण उसकी बहुत कमाई होती थी । पर धिरे धिरे मिठाई की दुकाने और खुलने लगी थी । उन दुकानो को देखकर राहूल ‌‌‌अपनी दुकान को चमकाने लगा और उसमे तरह तरह के रग भी लगाने लगा था साथ ही उसने अपनी दुकान और ‌‌‌बडी कर ली ।

इसी कारण जब भी कोई मिठाई लेने के लिए शहर जाता तो वह अनामिका मिठाई भंडार से ही मिठाई लाता था । इतनी अच्छी दुकान खोलने के कारण उसने अपनी मिठाई के दाम बडा दिए थे । पर लोग तो दिखावे के ‌‌‌को देखकर उसमे मोह जाते थे और उसकी दुकान मे चले जाते थे । जब वे लोग उसकी दुकान से मिठाई ले जाते थे तो वे वापस उसकी दुकान मे नही आते थे ।

उनको लगता था की राहूल की दुकान मे मिठाई अच्छी नही मिलती है । एक ‌‌‌बार राहूल के गाव के कुछ लोग अपनी बेटी का रिस्ता पक्का करने के लिए लडके ‌‌‌के घर जा रहे थे तो वे अनामिका मिठाई भंडार से कुछ मिठाई लेकर लडके के पास चले गए । वहा पर जाकर उन्होने उन लोगो को मिठाई दि और कहा की चलो अब तो मुह मिठा कर लो ।

उन लोगो ने मिठाई ली और खाने लगे तभी उन लोगो को मिठाई अच्छी नही लगी और उन्होने कहा की मिठाई कहा से लाए हो । तब लडकी का पिता ‌‌‌बोला की शहर की सबसे बडी दुकान से लाए है । तब लडके वाले बोले की आज कल बडी दुकानो मे लोगो को अच्छी मिठाई नही मिलती है उँची दुकान फिके पवान उन्ही दुकानो मे मिलते है ।

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे पर कहानी

इसी तरह से एक बार उसी आदमी की के घर मे उसकी बेटी की शादी थी । तब लोग उस आदमी से कहने लगे की आप लोग किस हलवाई को बुलाओग कही राहूल ‌‌‌को तो नही बुलाओगे  उसे मत बुलाना वरना पिछली बार की तरह ही लडके वालो को मिठाई पंसद नही आएगी । और पंसद आ भी कैसे सकती है उसकी मिठाई मे तो कोई स्वाद भी नही है और पैसे भी ज्यदा लेता है ।

आप लोग तो ऐसे समझ लो उँची दुकान फिके पकवान । ‌‌‌उस दिन से राहूल के गाव के लोग भी उसे नही बुलाने लगे और धिरे धिरे शहर मे भी उसकी खरीदारी कम हो गई थी । इस तरह से आप इस कहानी का अर्थ समझ गए होगे ।

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे पर निबंध || unchi dukan fika pakwan essay on idioms in Hindi

साथियो आप लोगो को पता ही होगा की आज के समय मे अगर हम शहर से कोई वस्तु खरीदने के लिए जाते है तो हम देखकते है कि हर कोई अपनी दुकान को ‌‌‌इतना सजाता है की लोग उसकी दुकान से ही ‌‌‌समान खरीदने के लिए आए । और आज कल ऐसा ही होता है दिखावा देखकर हम लोग यही सोचते है कि इस दुकान मे ही अच्छी वस्तु मिलेगी वरना यह ‌‌‌दुकान इतनी बडी व इतनी सुंदर नही होती ।

जब हम उस दुकान से कुछ खरीद कर ले आते है और समय आने पर हमे पता चलता है की उस दुकान मे तो अच्छी वस्तु मिलती ही नही है तब हमे समझ मे आ जाता है की उँची दुकान फिके पकवान क्या होता है । जैसे मान लो की अगर मिठाई खरीदने के लिए हम शहर गए और वहा से हम जो भी बडी दुकान दिखी उस मे जाकर मिठाई खरीद कर ले आते है

और वहा पर पैसे भी ज्यादा लगते है पर हम उस समय सोचते है की मिठाई अच्छी होगी तभी तो इतने रुपय व इतनी बडी दुकान है जब हम उसे खाते है तो उसमे भी स्वाद दुकान से भी हलका मिलता है इसी को उँची दुकान ‌‌‌फिके पकवान कहतेहै । और आज के समय मे ऐसा ही होता है ।

कहने का अर्थ तो यह है की उँची दुकान देखकर किसी का पता नही लगाया जा सकता की उसमे वस्तु अच्छी है की नही । और इस मुहावरे का अर्थ यह है की उँची दुकान ‌‌‌से अगर हम कोई वस्तु खरीदने जाएगे तो उसमे गुण वाली वस्तु नही मिलेगी । इस तरह से आप समझ गए होगे ।

उँची दुकान फीका पकवान मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है बताइए || What is the meaning of unchi dukan fika pakwan in Hindi

दोस्तो जब भी हम बाजार जाते है तो कुछ खरीदते है तो दिखावटी वस्तु को कभी खरीददते नही है । क्योकी हमे पता है की इसमें किसी तरह का गुण नही है और यह घर पर जाते ही खराब हो सकती है ।

जैसे की आप एक सुंदर दिखाई देने वाली एक चंपल की जोड़ी लेते ‌‌‌हो मगर यह जब आप लेकर घर तक पहुंचते हो तो बिच रास्ते में जबाबा दे देती है यानि नष्ट हो जाती है तो इससे हमे पता चलेगा की दिखावटी वस्तु की तुलना में गुणवान वस्तु लेनी चाहिए । मगर आपको बता दे की उंची दूकान फिका पकवान भी कुछ ऐसा ही अर्थ देता है ।

दरसल यह उस स्थिति को ही दर्शाता है जहां पर ‌‌‌ केवल दिखावटी वस्तु होती है । तो जीवन में कभी भी दिखावटी वस्तु नही लेनी चाहिए क्योकी यह एक तरह की उंची दुकान फिका पकवान होता है और आप इस बात को समझ सकते है ।
वैसे आप इस मुहावरे को कहा पर देख कर आए हो कमेंट में बताना ।

Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।