सरल भाषा में समझे, नाक पर मक्खी न बैठने देना मुहावरे का अर्थ और वाक्य मे प्रयोग

नाक पर मक्खी बैठने देना मुहावरे का मतलब naak par makkhi na baithne dena muhavare ka matlab – आंच आने देना

दोस्तो आज के जमाने मे हर किसी व्यक्ति पर मुसीबत आती ही रहती है । जिसके कारण उन्हे बहुत कष्ट भी झेलने पड जाते है । क्योकी कष्ट आने को आंच आना कहा जाता है । ‌‌‌जिस कारण से जब कोई व्यक्ति किसी पर जरा सा भी कष्ट न आने दे या फिर यह कह सकते है जरा सी भी आंच न आने दे तो इसे नाक पर मक्खी न बैठने दना कहा जाता है ।

नाक पर मक्खी न बैठने देना  मुहावरे का अर्थ और वाक्य मे प्रयोग

नाक पर मक्खी बैठने देना  ‌‌‌मुहावरे का वाक्य मे प्रयोग Use in sentence

  • राजेश के रहते हुए सुरेश की नाक पर मक्खी न बैठ सकती  है‌‌‌, पहले उसका इलाज करना होगा तभी हम सुरेश को कुछ हानि पहुंचा पाएगे ।
  • अगर महेश को जान से मारना है तो पहले उसके ‌‌‌भाई को रास्ते से निकालना होगा ‌‌‌, वरना वह महेश की नाक पर मक्खी न बैठने देगा ।
  • आपके रहते हुए हमारी नाक पर मक्खी कैसे बठ ‌‌‌सकती है ।
  • दोस्त मेरे रहते हुए तुम्हारी नाक पर मक्खी न बैठ पाएगी ।
  • ‌‌‌मैंने तो पहले ही कहा था की वह अपने दोस्त की नाक पर मक्खी न बैठने देगा ।
  • पिताजी के रहते हुए बेटे की नाक पर मक्खी न बैठ सकती है ।
  • गाव के लोगो पर मुसीबत आ गई पर बलवत के रहते किसी की नाक पर मक्खी न बैठ पाई ।

नाक पर मक्खी बैठने देना  ‌‌‌मुहावरे पर कहानी Idiom story

प्राचिन समय की बात है किसी नगर मे बलवत नाम का एक आदमी रहता था । वह नाम का ही बलवंत नही था । उसमे वह सब गुण थे जो एक बलवान मे होते है । पर वह कभी भी किसी को आपना यह गुण बताना नही चाहता था । उसका मानना था की लोग उसे बल से नही बल्की उसके काम से उसे पहचाने ।

इस कारण से वह ‌‌‌लोगो की मदद करता रहता था । वह यह भी चाहता था की जब तक मै हूं मेरे माता पिता और मेरे गाव के लोगो पर कोई मुसीबत नही आ सकती है । उसके घर मे उसके अलावा उसके माता पिता और उसका एक छोटा भाई था ।

बलवंत को जो भी काम मिल जाता वह उसे कर लेता और अपना और अपने परिवार का पेट भर लेता था । उस गाव के नजदीक ‌‌‌एक जंगल था जिसमे अनेक जंगली जानवर रहा करते थे । इस कारण से लोगो ‌‌‌को भय रहता था की कोई उन्हे ‌‌‌हानि न पहुंचा दे ।

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इसी सोच के साथ गाव के आधे से ज्यादा लोग तो उस गाव को छोडकर शहर की तरफ चले गए थे । पर जिन लोगो के पास पैसे नही थे वे और कर भी क्या सकते थे इस कारण से वे सभी उसी गाव मे पडे रहे ।

‌‌‌एक बार की बात है बलवंत के पिताजी और उसकी माताजी के साथ उसका छोटा भाई भी अपने घर मे ही थे । पर उस समय बलवंत शहर गया हुआ था । जब तक वह वापस आया तो उसे पता चला की उसके माता पिता को जंगली जानवर उठाकर ले गए है ।

साथ ही उसे यह भी पता चला की अब तक तो उनकी मृत्यु भी हो गई है । ऐसा जानकर वह उस जंगल ‌‌‌की तरफ जाने लगा था पर तभी लोगो ने उसे रोक लिया और कहा की बेटा तुम्हारे माता पिता तो अब वापस नही आ सकते कम से कम अपने भाई का तो ‌‌‌तुम कुछ ख्याल रखो ।

गाव के लोगो की बात सुनकर वह सोचने लगा की गाव के लोग कह तो सही रहे है । अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे भाई का क्या होगा । ऐसा सोचकर उसने अपने पैर वही ‌‌‌पर दबा लिए और जोर जोर से विलाप करने गला था ।

जब कुछ समय बिता तो वह कुछ सांत हुआ और गाव के लोगो को कहा की अब किसी और पर यह मुसीबत नही आएगी । मै आप लोगो से वादा करता हूं की जब तक मै हूं तब तक मेरे भाई और आप लोगो की नाक पर मक्खी न बैठने दुगा ।

ऐसा वादा कर कर उसने योजना बनाई और एक तिर कमान लाय ‌‌‌साथ ‌‌‌ही उसने शहर से अच्छे अच्छे खंजर भी ले आए थे । तब उसने उन सब से शिकार करने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी । धिरे धिरे समय बित गया और अब उसे निशाने बाजी बहुत ही अच्छी तरह से आने लगी थी ।

इस बारे मे गाव के लोगो को पता नही था पर अपना पैट भरने के लिए उसने गाव के लोगो को खेल दिखाना शुरु ‌‌‌किया। जिसके कारण ही गाव के लोगो को पता चला की इसे निशाने बाजी आ रही है । एक बार की बात है जक बलवंत लोगो को निशाने बाजी दिखा रहा था । तभी उस गाव मे एक शेर आ गया था ।

जिसकी दाहाड सुन कर सभी लोग इधर के उधर हो गए थे । तब बलवंत ने लोगो से कहा की आप जल्दी से अपने घरो मे घुस जाओ । ऐसा सुन कर वे ‌‌‌सभी अपने अपने घरो मे चले गए थे । बलवंत भी कही पर छुप गया था ।

उसे पता था की अगर वह बाहर जाएगा तो उसे शेर खा जाएगा इस कारण से वह छुप कर उस पर वार करने लगा था । दस बारह तिर लगने के बाद शेर कुछ घायल हो गया था पर अभी भी यह पता नही था की वह मर गया है की नही क्योकी शेर जमीन पर लेटा था ।

तब बलवंत ने ‌‌‌अपनी जगह पलटी और उस शेर पर और वार करने लगा था । पर अब उसके पास तिर खत्म हो गए थे तो उसने अपने चाकु निकाले और उस शेर पर वार किए दो चार वार करने के बाद वह शेर मर गया था । और जब वह नही उठा तो लोगो को पता चल गया था की यह शेर मर गया है ।

इस कारण से वे सभी बाहर आ गए थे । तब बलवंत ने लोगो को कहा ‌‌‌आज मेरी तरफ से आप लोगो को भर पेट मास खाने को मिलेगा । तब लोग समझ गए और छुरी लाकर शेर की गर्दन काट ‌‌‌दी। फिर उसे पकाने लगे और जब वह पक गया तो वे सभी खुशी के साथ उसे खाने लगे थे ।

तब लोग आपस मे बात करने लगे की बलवंत ने हमसे वादा किया था की आप लोगो की नाक पर मक्खी न बैठने दुगा और उसने उस वादे को ‌‌‌पूरा कर दिया है । इस तरह से आप इस कहानी से यह समझ गए होगे की इस मुहावरे का अर्थ आच न आने देना होता है ।

नाक पर मक्खी न बैठने देना मुहावरे पर निंबंध || naak par makkhi na baithne dena essay on idioms in Hindi

दोस्तो जैसा की आपने उपर दी गई कहानी को पढा है तो आपको पता चल गया होगा की बलवंत नाम का एक ताक्तवर और बहादुर व्यक्ति था जिसने शेर को मार दिया और लोगो की जान बचा ली ।

बलवंत ने बिना डरे लोगो की जान बचाई और कहा की जब तक मैं हूं तब तक किसी पर भी आंच न आने दूगा, यानि किसी पर भी जरा सा कष्ट न आने दूगा ।

अगर मक्खी भी नाक पर बैठने की कोशिश की जाएगी तो वह भी नही होगा क्योकी जिस तरह से कष्ट न आ रहा है वैसे ही मक्खी भी जरा सा कष्ट नही दे रही है और ऐसा कुछ कहानी से समझा जा सकता है।

तो इस बात से आप यह समझ सकते है की ​naak par makkhi na baithne dena muhavare ka matlab – आंच न आने देना होता है और अब आप इसका वाक्य में प्रयोग जहां पर भी करना चाहते है वहां कर सकते है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।