कलंक का टीका लगाना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग क्या होता है

कलंक का टीका लगाना मुहावरे का अर्थ kalank ka tika lagana muhavare ka arth –  लांछन लगना

दोस्तो मनुष्य के जीवन मे अनेक ऐसे पल आते है जिन पर उसे फुक फुक कर पैर रखना होता है वरना वह गलत न होते हुए भी गलत हो जाता है । और ऐसा होता भी है क्योकी जो अच्छे कार्य करते है उन्हे बर्बाद करने के लिए और उनका नाम डुबाने के लिए लोग उन्हे गलत कहने लग जाता है ।

इस तरह से बेवजह गलत ‌‌‌कहने को लाछन लगना कहा जाता है । और जब कभी किसी व्यक्ति पर किसी कारण से लाछन लग जाता है या लगा दिया जाता है तो इसे कंलक का टिका लगाना कहा जाता है ।

कलंक का टीका लगाना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग क्या होता है

कंलक का टिका लगाना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग kalank ka tika lagana muhavare ka vakya me pryog

  • ‌‌‌राम कुमार ने अपने पूरे जीवन मे लोगो की सेवा की मगर बुडापे में उन पर कंलक का टिका लग गया ।
  • तुम्हारी कर्तुतो के कारण से तुम्हारे पिता की इज्जत पर कंलक का टिका लग गया ।
  • राम ने अपनी नोकरी में कभी भी किसी से रिश्वत का एक रूपया भी नही लिया मगर फिर भी फिर भी उस पर कंलक का टिका लग गया ।
  • ‌‌‌तुमने कुलदिप पर कलंक का टिका लगा कर अच्छा नही किया ।
  • तुम क्यो उस भले मानुष पर कलंक का टिका लगाने को तुले हो ।
  • ‌‌‌मेरे पास रूपयो की कोई कमी नही है और तुम मुझे चोर कह कह कर कलंक का टिका लगा रहे हो ।
  • तुमने तो अपने भाईयो को ही चोर शाबीत कर कर उस पर कलंक का टिका लगा दिया ।

‌‌‌कलंक का टिका लगाना मुहावरे पर कहानी kalank ka tika lagana muhavare par kahani

बहुत ही पहले की बात है किसी नगर मे एक राजा रहा करता था । जिनका नाम बाहदुर शाह था । राजा बहुत ही बलशाली और अपने धर्म का पक्का था । इसके अलावा राजा कभी भी अपनी प्रजा को दूख देने की बात तक नही करता था । मगर राजा बहादुशाह को अपने राज्य ‌‌‌के खिलाफ जाने वाला कभी भी पसंद नही आता था ।

इस तरह के लोगो को वे सरे आम बिना सोचे समझे ही उनका सिर धड से अलग करते थे । इस तरह का राजा होने के कारण से हर कोई उनके राज्य में डरता की कही वह देशद्रोह का शिकार न हो जाए । इसी तरह से राजा की सेना और बाकी महल मे काम करने वाले लोग डरते थे । मगर राजा ‌‌‌की सेना मे एक ऐसा नोजवान था जो कभी भी इस बात से डरता तक नही था ।

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इसके अलावा राजा के सामने वह सीर उठा कर कहता की महाराज मैंने जो किया वह सही है । इसका कारण यह था की वह कभी भी अपने राज्य के खिलाफ कुछ नही करता था । उस व्यक्ति का नाम अलीखान था । अलीखान की वफादारी के कारण से राजा ही नही बल्की उसके ‌‌‌राज्य की प्रजा भी काफी अधिक खुश रहा करती थी ।

जिसके कारण से अली को राजा ने सेनापति बना रखा था । अगर राजा की अनुपस्थिती होती और युद्ध जैसी भावना अलीखान को दिखाई देती तो वह स्वयं ही राज्य की हिफाजत के लिए कदम उठा लेते थे । जिनकी बात राजा की प्रजा और उनकी पूरी सेना तक मानती थी । इस ‌‌‌तरह से वे ईमानदारी और देशवासी होने की मिशाल बने हुए थे ।

मगर एक दिन उनकी इस बात पर धब्बा लग गया । क्योकी राजा अपने राज्य मे थे नही और किसी कारण से पास के राजा ने इस बात का फायदा उठा कर राजा के राज्य पर हमला कर दिया । जिसके कारण से अलीखान ने अपने राज्य की हिफाजत के लिए राजा का इंतजार‌‌‌ नही किया और उस समय इंतजार करने का समय भी नही था और अलीखान ने समाने वाले राजा के साथ युद्ध करने के लिए चला गया ।

मगर सामने वाला राजा भी किसी से कम नही था जिसके कारण से उसने अलीखान को बंदी बना लिया और उसे राज्य मे ले जाकर पूरा राज्य लूट लिया । जब इस बारे मे राजा बाहदुरशाह को खबर पहुंची तो वे ‌‌‌तुरन्त ही अपने राज्य के लिए रवाना हो गए और उन्होने किसी तरह से वापस अपने राज्य को बचा लिया था । इ

सका कारण यह था की पास का राजा धन लेकर अपने राज्य में वापस चला गया था । जब राजा बहादुरशाह को पता चला की अलीखान को बंदी बना कर पास के राजा ने सारा धन लूट लिया है तो उन्हे बहुत ही क्रोध आया । ‌‌‌क्योकी वे अपने धन को अपनी प्रजा के अलावा किसी और को देते तक नही थे । मगर तभी गाव के कुछ लोग अलीखान पर दोष लगाने लगे की इन्होने जान बुझ कर ऐसा किया है ।

 तभी राजा को इस बारे मे कुछ ‌‌‌सबुत मिले क्योकी पास का राजा यह एक पत्र मे लिख कर चला गया की इस काम में अलीखान तुमने मेरी मदद की है इस कारण से ‌‌‌तुम जब चाहो मेरे राज्य आ जाना तुम्हे यहां सरण मिल जाएगी । जब इस बारे मे राजा बाहदुरशाह ने अलीखान से पूछा तो उसने कहा की ऐसा कुछ नही है ।

मगर सबुत समाने थे जिसके कारण से अलीखान की सारी की सारी बहादुरी और ईमानदारी मिट्टी में मिल गई और उस पर कलंक का टिका लग गया । तब राजा ने भी इस बारे में ‌‌‌नही सोचा और अलीखान को देशद्रोह करार देते हुए कुछ वर्षो की सजा सुना दी ।

उस दिन के बाद मे हर कोई अलीखान को देशद्रोह कहने लगा । जब उसकी सजा पूरी हुई तो वह जेल से बहार निकला मगर प्रजा अब भी उसे इसी तरह से देख रही थी । जो वह स्वयं बर्दाश नही कर रहा था । जब इसी तरह से चलने लगा तो उसने सोचा की मेरी ‌‌‌सच्चाई सबके सामने लनी होगी ।

यह सोच कर रात को ही चुपके से वह अपने राज्य से बहा निकल गया और पास के राजा के पास चला गया । तब उसके पास जाकर कहने लगा की महाराज मैंने उनकी कितनी सेवा की थी मगर उन्होने तो मुझे ही द्रेशद्रोही बना दिया । अब मैं उस पूरे राज्य को खत्म करना चाहता हूं ।

यह सुन कर राजा ‌‌‌ने सोचा की यह सही हुआ इसकी मदद से मैं अनेक राजाओ को हरा सकता हूं । इसके अलावा उस चालाक राजा ने अपनी चालाकी दिखाते हुए उसे अपने पास रख कर एक सेनिक बना दिया । जब इस बारे मे बहादुरशाह को पता चला तो उसने कहा की वह तो पूरा ही देशद्रोही निकला मैंने उसकी ईमानदारी को देखते हुए उसकी सजा कम की थी मगर ‌‌‌वह ‌‌‌तो उस राजा के साथ हाथ मिला लिया है ।

यही प्रजा कह रही थी । मगर अब अलीखान अपनी बेगुनाही साबित करने में लगा था । करीब 8 वर्षो तक उस राज्य मे रहने के बाद मे अलीखान ने अपनी बेगुनाही के सबुत तलाश कर लिए और वापस अपने नगर मे चला गया । मगर उसे नगर के लोग देखते ही कहने ‌‌‌लगे की यह तो वही देशद्रोही है ‌‌‌मारो इसे ।

इस तरह से कह कर लोग उसके पिछे भागने लगे थे । मगर अलीखान को पता था की लोग उसकी बात नही सुनेगे जिसके कारण से उसने तुरन्त ही राजा के पास जाने का फैसला किया और महल के पास जाने लगा । जब राजा के पास वह पहुंचा तो राजा ने उसे पकड लिया और लोगो से बचा लिया ।

 मगर राजा अब उसे आजीवन कारावा‌‌‌स देने ही वाले थे की उसने कहा की महाराज मैंने उस राजा के मंत्री को मारा था जिसके कारण से वह बदला लेने की भावाना से ऐसा कर कर चला गया। बल्की मैंने तो उसका साथ तक नही दिया था । मगर राजा बहादुरशाह को यकिन नही हो रहा था ।

जिसके कारण से वे उसकी बात सुनने को तैयार नही था मगर फिर उसने सबुत दिखाए।‌‌‌ तब जाकर राजा को पता चला की यह तो सच मैं बेगुनाह है । मगर अब राजा को अपने किए पर बहुत क्रोध आया । जिसके कारण से राजा ने तुरन्त प्रजा के सामने अलीखान से माफी मागी और कहा की मैंने तुम्हे बुरा साबित कर कर कलंक का टिका लगा कर अच्छा नही किया मुझे माफ कर दो ।

‌‌‌कलंक का टिका लगाना मुहावरे पर कहानी kalank ka tika lagana muhavare par kahani

यही उसकी प्रजा कह रही थी । जिसे देख ‌‌‌कर अलीखान ने कहा की महाराज ऐसा मत ‌‌‌करीए मैं आपसे नाराज नही हूं । इस तरह से फिर महाराज ने उसकी इमानदारी को देखते हुए अपना मंत्री बना लिया । उस दिन के बाद मे लोग भी उसे अच्छी तरह से जानने लगे थे । मगर लोगो को पता था की ‌‌‌उनकी इज्जत पर कलंक का टिका लगा था जिसका कारण हर कोई अपने आप को मान रहा था । इस तरह से आपको  कहानी से मुहावरे का अर्थ समझ मे आ गया होगा की इसका अर्थ क्या है ।

‌‌‌कलंक का टिका लगाना मुहावरे पर निबंध kalank ka tika lagana muhavare par nibandh

साथियो ‌‌‌संसार मे तरह तरह के लोग रहते है । जिनमे से आज के समय मे सभी अपने जीवन मे अच्छे है और यह सच भी है की वर्तमान मे ज्यादातर लोग अच्छे होत है जो गलत कार्य नही करते है । इस तरह के लोग अपनी मेहन्त कर कर अपना पेट भरते है । अगर इस तरह के लोगो को कभी गलत बता दिया जाता है या लोग इन्हे मेहन्त न करने ‌‌‌वाले कहने लग जाते है और उसे गलत कह कर उसकी इमानदारी को बेईमानी कहते है ।

जिस तरह से एक पुलिस को अगर रिश्वत खोर कहा जाता है तो वह उसकी इमानदारी पर धब्बा लगने के बराबर होता है । और इस तरह से जब भी किसी व्यक्ति पर किसी कारण से धब्बा लगाया जाता है तो इसे ही लाछन लगाना कहा जाता है और इन ‌‌‌दोनो को एक नाम से बुलाकर ‌‌‌मुहावरा बनाया जाता है की कलंक का टिका लगाना ।

क्योकी की कलंक का अर्थ ही धब्बा और लाछन से होता है और जब इसका टिक्का मनुष्य पर लगाया जाता है तो इसे मनुष्य पर धब्बा लगाना कह सकते है । इसी कारण से इस मुहावरे का अर्थ लाछन लगना या धब्बा लगना होता है । ‌‌‌और इस मुहावरे का वही प्रयोग होता है जहां पर इस तरह की बात होती है ।

कलंक का टीका लगाना मुहावरे का तात्पर्य क्या होता है || What is the meaning of kalank ka tika lagana in Hindi

दोस्तो यह एक ऐसा मुहावरा है जिसका प्रयोग जिस पर भी होता है उस पर लांछन लगाया जाता है । जैसे की समझे की आपने कुछ गलत नही किया है मगर फिर भी आपको कोई गलत बताता है और आपके बारे में गलत बाते करता है तो इसका मतलब हुआ की वह आप पर लांछन लगा रहा है । और यही पर इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है ।

मगर आपने ऐसार कुछ किया ही नही है और आपने यह सब माना है तो इसका मतलब हुआ की यह बात आप समझने के लिए मान रहे है ।

मगर ऐसे ही कई बार लोगो के साथ होता है जब उन्हे सच में गलत ठहराया जाता है और उसी समय इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है । दरसल इसका प्रयोग वही पर होता है जहां पर इसके अर्थ का पता चलता हो और आपको यह तो पता ही होना चाहिए की kalank ka tika lagana muhavare ka arth –  लांछन लगना होता है ।

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Mohammad Javed Khan

‌‌‌मेरा नाम ‌‌‌ मोहम्मद जावेद खान है । और मैं हिंदी का अध्यापक हूं । मुझे हिंदी लिखना और पढ़ना बहुत अधिक पसंद है। यह ब्लॉग मैंने बनाया है। जिसके उपर मैं हिंदी मुहावरे की जानकारी को शैयर करता हूं।