अग्नि परीक्षा देना मुहावरे का अर्थ agni pariksha dena muhavare ka arth – कठिन परिस्थिती में फसना ।
दोस्तो जैसा की बताया जाता है की माता सिता जब रावण की लंका से राम के साथ अयोध्या लोटी थी तो उन्हे अग्नि परीक्षा देनी पडी थी । और उसी के अनुसार अग्नि परीक्षा का मतलब व्यक्ति का आग में जाना और फिर वापस बच निकला होता है ।
क्योकी यह एक तरह की कठिन परिस्थिति है जिसमें से सभी का बंचना आसान नही होता है । और वर्तमान में तो ऐसा बहुत ही मुश्किल है । हालाकी जब कोई व्यक्ति अग्नि परीक्षा देता है तो वह एक कठिन परिस्थिती में फसने के समाना होता है । इसी कारण से अग्नि परीक्षा का अर्थ कठिन परिस्थिती में फसना में फसना होता है ।
अग्नि परीक्षा देना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग
- माता सिता को अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पडी ।
- जब कंचन गुंडो के चंगुल से छूट कर घर आई तो उसे अग्नि परीक्षा देने को कहा गया ।
- बैंक में चोरी कोई और कर कर चला गया मगर वहां पर पुलिस ने राहुल को पकड लिया और राहुल को अपने आप को बेगुनाह साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड गई ।
- भाईसाहब अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नही है तो मैं अग्नि परीक्षा देने को तैयार हूं ।
- गलत लोगो का साथ देने के कारण से महेश पकडा गया जिसके कारण से उसकी हालत अग्नि परीक्षा देने वाले की तरह हो गई ।
- पत्नी के साथ झगडा करने के कारण से लखाराम पर कैस हो गया तब मानो लखाराम की हालत अग्नि परीक्षा देने वाले की तरह हो गई ।
- तुमने उन बुरे लोगो का साथ दिया था जिसके कारण से ही आज अग्नि परीक्षा दे रहे हो ।
अग्नि परीक्षा देना मुहावरे की उत्पत्ति
दोस्तो अग्नि परीक्षा देना मुहावरा माता सिता की अग्नि परीक्षा देने के समय से उत्पन्न हुआ है । क्योकी जब माता सिता ने अग्नि परीक्षा दी थी तब अग्नि परीक्षा देने का मूल कारण माता सिता को अपनी पवित्रता साबित करने का था । और इस अग्नि परीक्षा में माता सिता पास हो गई थी यानि जब माता अग्नि में समाई तो अग्नि ने उन्हे किसी तरह की हानी नही पहुंचाई थी । वह सही सलामत बाहर आ गई थी । इसी अग्नि परीक्षा के बाद में इस मुहावरे का जन्म हुआ था और आज यह एक मुहावरे के रूप में प्रयोग होता है ।
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माता सिता की अग्नि परीक्षा
रामायण की कथा के अनुसार माता सिता की अग्नि परीक्षा कुछ इस कारण से हुई थी –
जब माता सिता का विवाह राम से होता है तो उन्हे 14 वर्षों तक वनवास प्राप्त हो जाता है जिसके कारण से माता सिता और भगवान राम वनवास जाते है मगर इनके साथ लक्षमण भी जाते है । इस तरह से वनवास में माता सिता और राम लक्ष्मण का जीवन चल रहा था । मगर एक बार माता सिता का हरण हो गया और यह हरण रावण ने किया था ।
जिसके कारण से माता सिता रावण की कैदी बन गई और वह रावण की कैद में रहने लगी थी । और इस तरह से माता सिता रावण की कैद में कुल दो वर्षों तक रही थी । मगर इस बिच में माता सिता को किसी तरह का कष्ट सहना नही पडा था बल्की वह पुरी तरह से पवित्र थी । जिसके बारे में माता सिता को ही नही बल्की पूरी प्रकृती को मालूम था ।
जब राम और रावण में युद्ध हुआ तो माता सिता को राम ने रावण से छुटा लिया और फिर माता सिता के साथ राम रावण की नगरी से लोटने लगे थे । अभी वनवास का समय बाकी थी । मगर यह अधिक नही था और जब वनवास समय पूरा हुआ तो माता सिता और राम व भाई लक्ष्मण तीनो अपने नगर को लोटने लगे थे ।
सभी भगवान राम के दर्शन करना चाहते थे । सभी नगर के लोग भगवान की राह देख रहे थे । और जब राम माता सिता के साथ और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लोटे तो प्रजा बडी खुश हुई । क्योकी राम के पिता एक राजा थे और जब राम आ गया तो राम को राजा बनाया गया । जिसके कारण से राम राजा का पद संभालने लगे ।
मगर तभी राम को एक बात सुनने को मिली जो की माता सिता की पवित्रता से जुडी थी । क्योकी लोग कह रहे थे की माता सिता रावण के पास दो वर्षों तक रह कर आई है तो इतने वर्षो में माता का पवित्र है या नही । यानि माता के पवित्रता पर उंगली उठने लगी थी ।
हालाकी राम को मालूम था की माता सिता पवित्र है । मगर प्रजा कहने लगे की जीस स्त्री का पवित्रता का हमें पता न हो वह हमारी महारानी नही बन सकी है ।
कुछ समय के बाद में एक धोबीनी के द्वारा कहा जाता है की माता सिता पवित्र है की नही । इस बात को कह कर उस धोबीनी के द्वारा माता सिता पर फिर से उंगली उठ जाती है । मगर राम जानते थे की माता सिता पूरी तर हसे पवित्र है ।
मगर एक राजा होने के नाते राम को लोगो के सामने यह सिद्ध करना था की माता सिता पूरी तरह से पवित्र है और इस बात को सिद्ध करने के लिए भगवान राम ने माता सिता से एक तरह की परीक्षा ली थी जो की अग्नि में जाकर वापस आने की थी।
यह सुन कर माता सिता सोचने लगी की वह तो कठिन परिस्थिती में फस गई है मगर माता सिता डरी नही बल्की उन्होने अग्नि परीक्षा दी । जिसके कारण से माता अग्नि के अंदर चली गई । और यह सब प्रजा व राम देख रहे थे । कुछ समय के बाद में फिर से माता सिता वापस अग्नि से बाहर आ गई ।
यह देख कर प्रजा को पता चल गया की माता सिता पुरी तरह से पवित्र है और वह हमारे राज्य की महारानी बनने के योग्य है । मगर प्रजा को यह भी समझ में आया की उन्होने माता सिता पर उगली उठानी नही चाहिए थी । इस तरह से माता सिता की अग्नि परीक्षा हुई थी ।
जिसमें माता सिता आग के अंदर जाकर बाहर निकली थी । और इसे ही अग्नि परीक्षा कहा जाता था ।
माता सिता की अग्नि परीक्षा दूसरी कथा
कुछ ग्रंथो और पूराणो में एक कथा और मिलती है जिसके आधार पर माता सिता एक नही बल्की दो थी और जो सिता अग्नि में गई थी वह असली सिता नही थी । बल्की वह माता सिता की माया थी । और फिर जो अग्नि से बाहर आई थी वह असली सिता थी ।
यह कथा कुछ इस तरह से थी –
भगवान राम को वनवास प्राप्त था और राम को यह मालूम था की उन्हे बहुत से राक्षसो का विनास करना है । इस बिच में उन्होने माता सिता से विनती करते हुए अग्नि देव के पास जाने को कहा था । क्योकी माता सिता अग्नि देव की पूजा करती थी जिसके कारण से माता सिता को आसानी से अग्नि देव ने स्थान दे दिया था और इसके बदले में भगवान अग्नि देव ने माता सिता की माया को राम के साथ छोड दिया था ।
जिसके कारण से रावण ने माता सिता की माया का हरण किया था । जिसके कारण से माता पुरी तरह से पवित्र थी । इस बात का राम को पहले ही मालूम था । मगर राम ने रावण का अंत कर कर माता सिता को अपने साथ लेकर आ गए । मगर प्रजा के उगली उठाने के कारण से रामजी को मोका मिल गया की माता सिता को वे वापस अग्नि से लेकर आ जाए ।
जिसके कारण से भगवान राम ने माता सिता से विनती की और माता सिता की माया को अग्नि में भेज दिया और असली माता सिता बाहर आ गई । इस तरह से माता सिता की अग्नि परीक्षा थी ।
इस तरह से माता सिता की अग्नि परीक्षा में माता सिता की माया और माता सिता का असली रूप का खेल था । क्योकी रावण के पास माता सिता नही बल्की उनकी माया थी तो पवित्रता का प्रशन ही नही उठता है । इस तरह की अग्नि परीक्षा थी।
अगर आप इस कथा को पूरा जानना चाहते है तो विवरण पद्म पुराण में देखने को मिल जाता है ।
अग्नि परीक्षा देना मुहावरे पर निबंध
साथियो हमने उपर यह तो जान लिया की माता सिता की अग्नि परीक्षा कुछ इस तरह से हुई थी ।
जिस तरह से माता सिता को जब अग्नि परीक्षा देने को कहा गया तो माता सिता को अग्नि में समाना पडा था। जिसके कारण से माता सिता को काफी अधिक कष्टो को सहना पडा होगा । हालाकी माता सिता को इन कष्टो के कारण से किसी तरह की हानि नही पहुंची थी क्योकी माता सिता पूरी तरह से पवित्र थी ।
और कहा जाता है की जो लोग पवित्र होते है उन्हे अग्नि कुछ नुकसान नही पहुंचाती है । दरसल हिंदु धर्म में अग्नि को देव के रूप में मानते है और देव हमेंशा ही अच्छे और नेक व पवित्र को किसी तरह का नुकसान नही पहुंचाते है ।
जिस तरह से आपने सुना होगा की भूत पिशाच आग से डरते है क्योकी उन्हे मालूम है की उन्हे आग नुकसान पहुंचा सकती है । मगर वही देव नही डरते क्योकी आग स्वयं देव ही है ।
और इसी तरह से माता सिता के साथ हुआ था क्योकी माता सिता पुरी तरह से पवित्र सच्ची थी जिसके कारण से आग ने उन्हे किसी तरह का नुकसान नही पहुंचाया और वे आसानी से अग्नि परीक्षा में पास हो गई । इस तरह से अग्नि परीक्षा देने का मतलब पवित्रता साबित करना हुआ करता था ।
मगर आज के जीवन में जब भी अग्नि परीक्षा देना किसी भी वाक्य में प्रयोग होता है तो इसका मतलब यह नही की उसे आग में जाकर वापस आना है । बल्की इसका मतलब कुछ ओर हो जाता है ।
जिस तरह से आग में अगर कोई जाएगा तो वह कठिन परिस्थिती में फसने के समान होता है । क्योकी आग उसे नष्ट भी कर सकती है । जिसके कारण से यह कहना गलत नही होगा की अग्नि परीक्षा देने का मतलब कठिन परिस्थिती में फसना होता है ।
इस तरह से यह वर्तमान में एक मुहावरा बन चुका है जिसका प्रयोग वाक्यो में होता है और इसका अर्थ कठिन परिस्थिती में फसना होता है ।
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